किस्मत का खेल

इधर सुहानी पर मानसिक और शारीरिक अत्याचार चालू पर वो सहनशक्ति की मूरत सब सहन करती जा रही थी । अक्सर बिना कारण जेठानी देवर की पसंद होने के कारण सुहानी तो चरित्रहीन का ताना मारती सास साँवली रंगत के कारण काला होने का ताना। पढ़ी लिखी लड़की नोकरानी भर रह गई.....

किस्मत का खेल

फीचर्स डेस्क। सुहानी एक महत्वाकांक्षी और साँवली सी हँसमुख थी। बचपन से ही सदैव कुछ कर गुजरने का जुनून था पर कुछ परिस्थितिया ऐसी थी जो हमेशा सपनो पर जिम्मेदारी को हावी कर देती थी।


वक्त बीता शादी की बाते चलने लगी घर मे बड़ी थी तो जरूरी था समय पर शादी करना भी। खुद की पसंद का उसने घरवालो की समाज में जातिवाद की खोखली रूढ़ि के कारण त्याग कर दिया और खुद को समझा लिया।


लड़के देखे जाने लगे दहेज ना दे पाने की स्थिति के कारण कोई हाँ नही कर रहा था पर फिर भी सुहानी का मन शांत था क्योकि वो तो जीवन से समझौता पहले ही कर चुकी थी इसलिए उसे कोई भी मिलता वो बिना उम्मीद के साथ होने को तैयार थी।


समय बीत रहा था एक दिन एक लड़का उसे किसी विवाह समारोह में देखा तो देखते रह गया साँवली सी गुलाबी साड़ी में संजीदा सा सादगी भरा रूप सुहानी का उस शैलेष नाम के लड़के को भा गया। जहाँ शैलेष गठीला लम्बा दिखने में आकर्षित था और आर्मी में अफसर था वही सुहानी औसत दर्जे की थी पर उसकी मासूमियत ही बहुत थी दिल लुभाने के लिये । सुहानी  इन सब से अंजान थी । जाति और गोत्र का कोई कोई टकराव ना होने के कारण लड़के के घरवालों ने बिना मर्जी से सहमति दे दी ।


सुहानी के घर रिश्ता गया घरवाले इतने बड़े घर से आये रिश्ते को खोना नही चाहते थे सुहानी ने भी हामी भर ली। सामान्य लेन-देन के साथ विवाह संपन्न हुआ पर वो सामान्य लेन-देन भी सुहानी के घरवालों के लिये पहाड़ की तरह कर्ज लेकर हुआ।


शादी करके बड़े घर की बहू बन गई घर मे घुसने के साथ ही एक धीमी सी आवाज शैलेष की भाभी की सुनाई दी "देवर जी ही फिदा हो गए थे वरना ये काली सी लड़की हम तो कभी ना लाते और दिया भी क्या है 5 तोला सोना" सुहानी ने सोचा शायद गलत सुनाई दिया। नई बहू का कोई स्वागत नही किया गया । धीरे-धीरे कुछ दिन निकले शैलेष अपनी आर्मी की नोकरी पर वापस चला गया। 


इधर सुहानी पर मानसिक और शारीरिक अत्याचार चालू पर वो सहनशक्ति की मूरत सब सहन करती जा रही थी । अक्सर बिना कारण जेठानी देवर की पसंद होने के कारण सुहानी तो चरित्रहीन का ताना मारती सास साँवली रंगत के कारण काला होने का ताना।
पढ़ी लिखी लड़की नोकरानी भर रह गई।


शैलेष को गए 4 महीने हो गए थे और भारत की सीमा पर तैनान था सुहानी से कम ही बात हो पाती और सुहानी भी उसे सब कुछ अच्छा बताती। वो बिल्कुल भी सोच नही सकता था कि उसकी पत्नी के साथ ऐसा सुलूक हो रहा है क्या।


एक दिन किसी रिश्तेदारी में किसी प्रोग्राम में दूसरे शहर जाना था सारा परिवार अकेली सुहानी को ये कहकर चला गया कि "घर को सूना नही छोड़ सकते किसी का रहना जरूरी है"। बेचारी डरती अकेले 3 रात कैसे रहती पर उसने हामी भर दी।


सब चले गये सुहानी ने अनजान शहर में 1 दिन डरते हुए निकाला अगले दिन शैलेष का फ़ोन आता है कि उसे तत्काल ही दूरी जगह डयूटी देनी पड़ेगी कोई एमरजेंसी आ गईं है वो अपने शहर से ट्रेन बदलेगा।
तो 6 घण्टे का दोनो ट्रैन में फर्क है वो घर आ रहा है।
सुहानी की शादी पसन्द की तो नही थी पर पति की सादगी और परवाह ने उसे उससे जोड़ दिया था।
उसने पति के पसंद का खाना बनाया और इंतज़ार करने लगी । 
शैलेष आता और घरवालो के लिए कहता है कि "सिर्फ तुमसे मिलकर चला गया तो माँ पिताजी को अच्छा नही लगेगा तुम उन्हें मत बताना की मैं आया था"।
रात का समय था शैलेष ने अपनी पत्नी को बाहो में भर के प्रेम जताया सुहानी भी जिम्मेदारी या समझौते स्वरूप उस पर समर्पित हो गई। वक्त जल्दी बीत गया भरे मन से जल्दी ही वापस आने का कहकर विदाई ली दोनो ने।


घर वाले दूसरे दिन आ गए सुहानी ने नही बताया कि शैलेष आये थे और और दुर्भाग्य से तीसरे दिन शेलेष बॉर्डर पर शहीद हो गये । सुहानी की तो दुनिया ही लूट गई उसे पहली बार अहसास हुआ कि वो प्रेम करने लगी थी अपने पति से पर अब परिस्थिति अलग थी।
परिवार ने सुहानी तो मनहूस करार दे दिया ।कुछ दिन निकले तो सुहानी की तबियत खराब हुई पता चला वो गर्भवती है। अब परिवार ने उसे कुलटा चरित्रहीन करार दे दिया कि हमारी गैर हाजरी में पता नही कहाँ मुँह काला कर दिया वो कहती रही ये बच्चा उनके बेटे का है। पर किसी ने नही माना यहाँ तक कि उसके माता पिता तक ने नही।


उसे घर से निकाल दिया गया उसे एक महिला आश्रम में शरण मिली बच्चे को जन्म दिया और मानसिक स्तर पर विक्षप्त हो गई।
पर आज भी वो खुद की और अपने बच्चे के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
उसे किस बात की सजा मिली?
बिना गलती के अपने प्रेमी को छोड़ देने की?
अपने सपनो को मार देने की?
जीवन से समझौते की?
या एक सच को छुपाने की?

इनपुट सोर्स - रुपाली कुमावत , मेंबर फोकस साहित्य 

Image Credit- Pintrest