बैडमिंटन का खेल

आर्मी के खेल प्रतियोगिता में  कर्नल साहब के हाथों भरे दरबार में पदक या पुरुस्कार लेना एक गर्व की बात होती थी क्योंकि उस समय पूरे रेजिमेंट के सभी रैंक के लोग बैठे रहतें हैं।खेलने के पहले सूचित किया गया कि मेरा फाइनल खेलना कर्नल साहब की मैडम के साथ है...........

बैडमिंटन का खेल

फीचर्स डेस्क। बात उन दिनों की है जब मैं आर्मी ट्रेनिंग के लिए आगरा फोर्ट गया था। शुरू के एक सप्ताह तो फिजिकल फिटनेस आर्मी के मापदंड के अनुसार फिट करने में लग जाता था। फिर आर्मी हॉस्पिटल में सारे टेस्टों से गुजरना पड़ता था। फिर, चैन मिलता था।

इसके बाद ट्रेनिंग का प्रोग्राम इस प्रकार से सेट किया जाता था कि हर इवेंट्स का फिनिशिंग नेशनल लेवल का हो। जिससे रिफाइनरी के टॉप मैनेजमेंट या आर्मी के ब्रिगेडियर रैंक के अतिथि के सामने प्रस्तुत किया जा सके। सभी इवेन्ट्स में खेलकूद एक अहम इवेंट्स होता था। ये प्रतियोगिता के आधार पर होता था। उसी खेलकूद में मुख्य खेल था वॉलीबाल और बैडमिंटन।

मैनें बैडमिंटन खेल का चुनाव किया था, क्योंकि कॉलेज लाइफ से खेलता आया था और कुछ पुरुस्कार भी जीते थे।

बैडमिंटन खेलने के लिए मेरा नाम कर्नल के पास भेजा गया था। और भी कई नाम गए थे।जब जीतते जीतते अंतिम फाइनल में पहुंचा तो सोचा एक प्राइज तो पक्का है। 

आर्मी के खेल प्रतियोगिता में  कर्नल साहब के हाथों भरे दरबार में पदक या पुरुस्कार लेना एक गर्व की बात होती थी क्योंकि उस समय पूरे रेजिमेंट के सभी रैंक के लोग बैठे रहतें हैं।

खेलने के पहले सूचित किया गया कि मेरा फाइनल खेलना कर्नल साहब की मैडम के साथ है। डर के मारे सोचा कि अपना नाम वापस ले लूं। अनुशासन और डर के बीच के अंतर्द्वन्द में मानसिक रूप से फंसा था। किसी प्रकार की गलती होने पर सख्त सजा का प्रावधान था।

मेरे सहयोगी मित्रों को भी गर्व था कि फाइनल खलने के लिए जाना है। सभी लोगों ने मेरी हौसला अफ़जाई की । लोगों ने भरोसा दिलाया कि कम से कम रनर तो बन ही सकता हूँ । इसे क्यों मिस किया जाय।

एक दिन बचा था। रविवार को मैच ऑफिसर्स क्लब में 3 बजे होना था।

शनिवार की रात बड़ी बेचैनी में बीती। रविवार के दिन पूरे रेजिमेंट के लोगों के बीच मैच शुरू हुआ। 

मैं पूरे व्हाइट खेल ड्रेस में नेट के सामने जाकर कर्नल साहब को सल्यूट किया और नेट के नीचे खड़ा हो गया।
दूसरे साइड पर कर्नल मैडम खड़ीं थी। उनको देखते ही डर गया। पसीने आने लगे। अपने को संयत किया।

मैच शुरू करने के पहले मैडम को भी सैल्यूट किया।
हवलदार या रेफरी की विस्सल बजी और मैच शुरू हो गया।
कर्नल मैडम के बारे में कुछ भी लिखना अनुचित होगा।
पहला मैच मैडम जीत गई। दर्शकों ने खूब ताली बजाई।
दूसरा मैच मुझे हर हालत में जितना जरूरी था। एक एक पॉइंट्स के लिए संघर्ष करना पड़ता था और अंत में मैंने मैच जीत ली।
तीसरे राउंड मैच खेलने के पहले मैडम ने इतना कहा कि आप अच्छा खेलते हैं। मन खुशी से भर गया। मनोबल भी बढ़ गया।
इस बार मुझे पता था कि मैडम का कमजोर साइड कौन सा है किस जगह है।
बार बार कॉर्क को उस जगह फेंकने के कारण मैंने मैच जीत ली।
तालियों की गड़गड़ाहट होने लगी। 

जब पुरुस्कार लेने का समय आया तो मेरा नाम पुकारा गया। पुरुस्कार देने के लिए कर्नल मैडम खुद आईं। उनकी मुस्कुराहट के साथ पुरुस्कार लेना एक बहुत गर्व की बात थी। 

आर्मी के कर्नल मैडम के साथ  बैडमिंटन खेलना मेरा पहला और अंतिम अनुभव था जिसे जिंदगी भर भुलाया नहीं जा सकता। यह एक सुनहरे स्वप्न जैसा ही था जिसे आजतक संभाल करके रखा है।


इनपुट सोर्स- बी एन एल दास, मेंबर फोकस साहित्य ग्रुप