एक बेचारी .. काम की मारी  

सबसे अधिक दुखद स्थिति होती है,उस नौकरी पेशा लड़की की जो 8-10घण्टे घर से बाहर रहना चाहती है । घर ग्रहस्थी के कामों से स्त्री को छुटकारा मिलना तो असम्भव है । घर बाहर की आवाजाही में वो पिसने  लगती है । अपना शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य.....

एक बेचारी .. काम की मारी  

फीचर्स डेस्क। आज एक ऐसा विषय जो आधुनिक लड़कियों को परेशान कर सकता है पर सच्चाई ये है कि अपनी पहचान बनाने के चक्कर में आज के युग की लड़कियों पर जिम्मेदारी का बोझ डालकर जमाना ताली बजाना चाहता है । 
     

एक जमाने में हम भी नौकरीपेशा रहे, घर परिवार की जिम्मेदारियों का वहन भी किया । उस समय स्त्रियों का घर से निकलकर आफिस या विद्यालयों में जाना, कुछ नया सा प्रयोग था ।

 
सासू मां या अपनी मां उतनी आधुनिक या पढ़ी लिखी नहीं थी , हर तरह से सहयोग कर बहुओं व बेटियों की ग्रहस्थी चला देती थी । पर समय कब एक सा रहता है । आज से 45-50वर्ष पुरानी बुजुर्ग महिलाएं अब चौकन्नी हो चुकी है । उन्हें भी अपने वजूद , अपनी अभिव्यक्ति व अपने नखरे दिखाने आ गये  है । 


क्ई परिवारों में मैंने पाया कि सास इतनी आधुनिक हैं कि साफ साफ declare कर देती है कि - मैं nany बनकर नहीं जी सकती । नौकरी करोगी तो अपने नौकर चाकर ,आया वो सभी सुविधाएं arrange कर लो । 

ऐसे में सबसे अधिक दुखद स्थिति होती है,उस नौकरी पेशा लड़की की जो 8-10घण्टे घर से बाहर रहना चाहती है । घर ग्रहस्थी के कामों से स्त्री को छुटकारा मिलना तो असम्भव है । घर बाहर की आवाजाही में वो पिसने  लगती है । अपना शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य बिगाड़ देती है । 

तो क्या? स्त्रियां नौकरी , बिजनेस या अन्य जीविका सम्बन्धित कार्य करना छोड़ दें । नहीं... बिल्कुल नहीं...बल्कि घर के सदस्यों को , विशेष कर पति को ये समझना चाहिए कि, स्त्री भी एक इन्सान है । उसकी भरकस मदद की जाए । भारतीय परिवेश में पुरूषों को आरम्भ से ही राजा बाबू वाला दर्जा मिल जाता है और वो सारे जहां पर राज करने लगते हैं । 


पुरूष को यदि स्त्री से काम कराना है तो घर परिवार के कामों में हाथ बंटाना होगा । ऐसा प्रशिक्षण व संस्कार आज की माताओं को डालना होगा । मनो चिकित्सक मोनिका दास बताती हैं कि भारत में अवसाद के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं ,जिनमें स्त्रियों की संख्या अधिक है । इसका असर उनकी सेक्स लाइफ पर भी पढ़ रहा है । 


समय रहते यदि हम न चेते ......तो स्थिति भयावह भी हो सकती है । पुरूष यदि सक्षम है तो वो जीविकोपार्जन करें,स्त्री घर सम्हाले , सबकी मदद लें व आगे बढ़े । 

विचार - नीता नय्यर, मेंबर फोकस साहित्य ग्रुप