लघु कथा : जंग जीत ली

जैसे तैसे बच्चों को बड़े भाई ने सुबह किसी दोस्त के घर से खाना मंगा कर खिलाया। अनिता ने सुबह होते होते फैसला ले लिया और जल्दी से अपने घर पर जितने काम हो सकते थे निपटा कर अपने चार पांच जोड़ी कपड़े बैग में डाले और निकल पड़ी बिटिया के घर के लिए.....

लघु कथा : जंग जीत ली

फीचर्स डेस्क। अनिता , उसके पतिदेव और बेटा तीनो में से कोई भी पूरी रात सो नहीं पाए थे।बेटी पूरी रात रो रो कर उन्हें फोन करती रही और आगे से उसकी आवाज़ सुन कर अनिता भी रोने लगती।पति और बेटा दोनो को समझा रहे थे ।लेकिन बिटिया जो हर मुश्किल घड़ी में सबसे ज्यादा मजबूती से सब को और खुद को संभाल लेती वो ही आज कमज़ोर पड़ गयी थी। 
एक माँ की ममता होती ही ऐसी है।
इस करोना नाम की भयंकर महामारी ने पता नहीं कब बिटिया की सासु माँ को लपेटे में ले लिया । बुखार नहीं उतरने पर जब उनका टेस्ट करवाया गया तो वो पॉजिटिव निकली।उन्हें अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया ।नतीजन पूरे परिवार को जांच करवाने का आदेश मिला।
रिपोर्ट आने तक सब की सांस अटकी हुई थी।घर मे छोटे बच्चे थे ।बिटिया के और जेठानी के भी।
उस प्रभु की लीला तो देखो…,बच्चे सभी नेगेटिव निकले और बड़े सभी पॉजिटिव..!!!
मुश्किल घड़ी आन पड़ी..एक दम से बच्चों को बड़ों से अलग करना पड़ा।जिस घड़ी से बच्चे अपनी माँ से अलग किये गए उन सबकी आंखों से लगातार आंसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।
प्रभु ने एक और किरपा करी कि दामाद जी के बड़े भाई भी नेगेटिव निकले।
सबकी रिपोर्ट्स एक साथ नहीं आई बहुत समय लगा। अब बड़े भाई के साथ बच्चों को रात को ही अलग कर दिया।बाकी सब लोग जो पॉजिटिव थे वो सब अलग हो गए ।अब सुबह उठते ही मुश्किलें शुरू। जो पॉजिटिव थे वो किसी भी चीज को छूते तो बच्चों के लिए रिस्क था। 
जैसे तैसे बच्चों को बड़े भाई ने सुबह किसी दोस्त के घर से खाना मंगा कर खिलाया। 
अनिता ने सुबह होते होते फैसला ले लिया और जल्दी से अपने घर पर जितने काम हो सकते थे निपटा कर अपने चार पांच जोड़ी कपड़े बैग में डाले और निकल पड़ी बिटिया के घर के लिए।
पति ने उसे जाते जाते कहा ,"जानता हूँ जंग के मैदान में जा रही हो..लेकिन अगर जाने का मन बना लिया है तो घबराना नही,ना ही डरना। आखिर तक डटे रहना और जंग जीत कर ही लौटना।"
आम दिनों में जो दो घण्टे का रास्ता फटाफट तय हो जाता था आज कुछ ज्यादा ही लंबा होता जा रहा था।बिटिया के घर पहुंच कर पहला झटका तब लगा जब घर के बाहर कोविड का बोर्ड देखा।लेकिन अनिता न तो डरी न ही घबराई।
उसके मन मे तो बस एक ही जनून था कि उसके बच्चों को आज उसकी जरूरत है। वो मुसीबत में किसी भी कीमत पर उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकती ।भले ही उसके लिए उसकी जान भी चली जाए।
उसके जाने तक बिटिया के जेठ जी ने पूरे घर को अच्छे से  सैनीटाईज़ करके साफ सफाई कर ली थी।
जो लोग पॉजिटिव थे उनकी छुई हुई हर चीज को हटा दिया गया था जैसे चादरें,तोलिये,रसोई में बहुत से खाने का सामान।  बाकी सब  कुछ सैनीटाईज़  कर के इस्तेमाल हो रहा था।
अनिता ने घर मे घुसते ही पहले तो छोटे बच्चे जो कि  छः और सात साल के थे। और अपने घरवालों से अलग होने की वजह से सहमे पड़े थे उनको गले लगा लिया लेकिन अपने आंसू नही रोक पायी।
लेकिन ये रोने का समय नहीं था तो उसने कुछ ही देर में खुद को संभाला और मोर्चा भी सम्भाल लिया। 
दो लोगों को घर के ऊपर वाले फ्लोर पर ही क्वारनटीन किया गया था क्योंकि एक बेटा केवल दस साल का था जो कि पॉजिटिव था और वो अस्पताल के नाम से ही घबरा रहा था। इसलिए उसके साथ उसकी मम्मी (बिटिया की जेठानी)को भी   रखा गया। 
जो ऊपर थे उनको जब भी कुछ समान चाहिए होता वो एक रस्सी से एक थैला नीचे लटका देते और उसमे समान डाल दिया जाता। ऊपर से उनकी छुई कोई चीज नीचे नहीं लायी जाती। बस उन्हें नीचे से खाना पैक करके दिया जाता।
अनिता के पास कोई भी मेड या हेल्प नहीं  थी। ना ही उसको अकेले इतना काम करने की अब आदत थी । लेकिन वो हर रोज़ सुबह उठ कर भगवान से यही प्रार्थना करती कि हे प्रभु मुझे शक्ति देना कि मैं अपने कर्म पर डटी रहूं। ना ही थकूं और ना ही मेरे कदम पीछे हटें।

तीन दिन में जो लोग ,बिटिया ,दामाद जी और सासु माँ अस्पताल में रखे गए थे वो भी आकर ऊपर के फ्लोर पर  क्वारनटीन हो गए। क्योंकि उनको किसी को कोई भी सिम्पटम नहीं थे ।बस रिपोर्ट ही पॉजिटिव थी तो हॉस्पिटल वालों ने उन्हें डिस्चार्ज दे दिया।
अब अनिता का काम और भी बढ़ गया। इतने बड़े परिवार का तीन समय का खाना बनाना,उसको पैक भी करना ,बाकी सारे काम,बच्चों को देखना और ऊपर से बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज भी लगवाना। बच्चे उदास न हों इसलिए उनकी सभी घरवालों से वीडियो काल भी कराते रहना। पता नहीं चलता था कब सुबह होती और कब रात हो जाती।

घर मे वो सबकी सांझी माँ बन गयी और सब बच्चों की सांझी नानी भी। उनके सभी रिश्तेदार और पहचान वाले मित्र दोस्त सब ये तो फोन करके पूछ रहे थे कि कोई मदद चाहिए तो बताओ।लेकिन कोई पास आने को तैयार नहीं था।
उन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों और पहचान वालों को अनिता की हिम्मत और दिलेरी के बारे में बताया और उसको बहुत बहुत सम्मान दिया । प्रभु की कृपा और पतिदेव द्वारा हर रोज़ फोन करके दी जाने वाली हिम्मत की बदौलत अनिता ने वो चौदह दिन का कठिन समय पार कर लिया। मेडिकल ऑफिसर की गाइडेंस और सभी रूल्स को फॉलो करके परिवार के सब लोग चौदह दिन बाद अपने घर और बच्चों के पास लौट आये।
अनिता ने भगवान का बहुत बहुत शुक्रिया अदा किया और उनका घर और बच्चे उनके हवाले किये।अगले दिन उनसे अपने घर वापिस जाने की इजाजत मांगी और अपने घर के लिए निकल पड़ी।
जिस घर को उसने कभी एक दिन के लिए भी नही छोड़ा था ।उसके घर मे कोई और महिला नहीं थी तो उसका घर भी उथल पुथल हुआ होगा। जबकि सालों से वो कभी भी एक दिन के लिए कहीं बाहर नहीं जाती थी कि पीछे से घर , पति,बेटे को देखने वाला कोई नही था उन दोनों ने भी ऐसे वक़्त में सब खुद से ही मैनेज किया।
पतिदेव ने ये भी बताया कि उसके इस तरह जाने से बहुत रिश्तेदार बातें भी बना रहे थे कि  ऐसे भी करोना वाले घर मे कोई जाता है भला।
इस सारे प्रकरण में एक बात ये भी हुई कि अनिता अपनी 34 साल की शादी शुदा ज़िन्दगी में पहली बार अपने पतिदेव से पन्द्रह दिन के लिए अलग रही थी।

घर पहुंची तो पतिदेव ने उसको सेल्यूट किया और कहा ," बहुत गर्व है मझे तुम पर..सच में आज तुम जंग जीत कर आई हो। और वो भी कोई ऐसी वैसी नहीं, करोना पर विजय पाई है तुमने।

इनपुट सोर्स: रीटा मक्कड़

इमेज सोर्स: गूगल