ये वादा रहा

कब मिलते मिलाते हमने एक दूसरे से जीवनसाथी बनने का वादा कर लिया, कुछ एहसास ही ना हुआ। अभी एक महीने बाद आलिंद ठीक हो गए तो मिलने गई तो उसने मिलने से मना कर दिया। बहुत रोई मैं! आखिरकार क्या हुआ?? फिर पिताजी मिलने गए तो............

ये वादा रहा

फीचर्स डेस्क। अवन्या कॉल कर रही थी, पर यह क्या? आलिंद उसका फोन ही नहीं उठा रहा था। कुछ दिनों की जान पहचान थी ,परंतु ऐसे लगता था जैसे मैं आलिंद को बरसों से जानती हूं।आलिंद का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था!!! शालीन , सौम्य और मृदुभाषी।

शाम को पहुंच गई उसके घर! पर आलिंद मिलना नहीं चाह रहा था। उसकी तबीयत खराब थी ।उसे बुखार हुआ और चिकनपाक्स। संक्रमण के डर से आलिंद ने खुद को एक कमरे में बंद कर रखा था। मैं उससे मिल नहीं सकती थी।

मैं बुझे दिल से घर वापस लौट आई ।बैठे-बैठे याद आ रही थी आलिंद से पहली मुलाकात! आलिंद उसके पापा की पसंद थे। मैं तो एमबीए करके मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रही थी। आलिंद एक दुकान चलाते थे और अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए थे। एक दुकानदार के साथ मेरा स्टैंडर्ड मैच नहीं करता था परंतु पापा के आग्रह को टाल ना सकी।

मैं आलिंद से मिलने रेस्त्रां में पहुंच गई। मुझे तो मना ही करना था। साधारण से कपड़े पहने बिना किसी तामझाम के आलिंद मुझसे मिलने आ गया। बहुत अजीब लगा मुझे। क्या लेंगी आप?आलिंद ने पूछा ,कुछ भी, जो आप कहें।"मैं भी आलिंद को आजमा रही थी। गर्मी बहुत है लैमनेड ले लेते हैं।"आलिंद ने प्यार से बोला। ठीक है
 

मुझे उसका अंदाज बहुत अच्छा लगा । लैमनेड पीते पीते, कब  हम आपसे तुम पर आ गए पता ही नहीं चला। उसके बाद थोड़ा बहुत कुछ खाया और हम 2 घंटे तक बातें करते रहे। पहली मुलाकात ही यादगार बन गई। सोच कर तो आई थी मना कर दूंगी पर अलिंद के प्रभावशाली व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना ना रह पाई।


कब मिलते मिलाते हमने एक दूसरे से जीवनसाथी बनने का वादा कर लिया, कुछ एहसास ही ना हुआ। अभी एक महीने बाद आलिंद ठीक हो गए तो मिलने गई तो उसने मिलने से मना कर दिया। बहुत रोई मैं! आखिरकार क्या हुआ??
         

फिर पिताजी मिलने गए तो उन्होंने बताया,"बेटा उसके पूरे चेहरे पर दाग हो चुके हैं । शरीर से बहुत कमजोर हो गया है ,इसलिए शादी से मना कर रहा है ।वह तुम्हारा जीवन खराब नहीं करना चाहता।"
   

पर मैं तो अब आलिंद से ही विवाह करूंगी वह नहीं तो कोई नहीं। मैंने अपना फैसला सुनाया पिताजी ने मुझे समझाने की बहुत कोशिश की। परंतु मेरी जिद के आगे उनको झुकना पड़ा। तभी आलिंद ने शादी से पहले मुझे मिलने के लिए बुलाया।"सोच लो, जिद मत करो!"आलिंद ने मुझसे पूछा।

अगर तुम्हारी जगह मुझे कुछ हो जाता तो तुम यूं ही मुझे बीच रास्ते में छोड़ देते क्या??" मैंने सवाल किया। मेरा जवाब सुन आलिंद स्तब्ध रह गया और अगर शादी के पास ऐसा कुछ होता तो ? मैंने फिर पूछा। तुम इस भद्दे चेहरे के साथ कैसे रहोगी? बस! तुम विवाह नहीं करोगे तो मैं भी कभी किसी और के साथ नहीं करूंगी!"मैंने अपना फैसला सुना दिया आलिंद ने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया,"मैं वादा करता हूं तुम्हारी खुशी के लिए सब कुछ करूंगा। ठीक है, पर मुझसे दूर जाने की बात मत करना, वादा करो!"मैं भी नाराजगी से बोली। नहीं करूंगा!....... यह वादा रहा!"आलिंद खुशी से बोला और हम एक नई मंजिल की ओर बढ़ गए।
  
  इनपुट सोर्स - रेखा मित्तल, मेंबर फोकस साहित्य