80 के दशक का वैलेंटाइन्स वीक और वैलेंटाइन डे

ये hug day तो हमारा संस्कार नहीं है ना और ऊपर से  मुहल्ले की ही है ऊ भी दूर के रिश्ते में। ज़्याद इधर उधर किए तो अपने ही घरवाले पीट पाट के इश्क़ का सारा भूत माथा से उतार देंगे। आ…. Kiss day आजकल जो बड़ी अदा से फ्लाइंग किस का आदान प्रदान सिनेमा और विज्ञापन में आप देख रहे है ना ।उसका ईजाद तो उस दिन हुआ जब हम अपनी छोटी बहन को उसके घर किसी काम से लेकर गए थे।अब ऐसे घबराए थे कि जान सूख रहा था

80 के दशक का वैलेंटाइन्स वीक और वैलेंटाइन डे

फीचर्स डेस्क। जिधर देखिए उधर प्रेम की बयार बह रही है ।इस बयार से धरती का हर कोना कोना सुवासित हो रहा है।अब ये वसंती हवा का असर है या वेवेन्टाइन डे की खुमारी । जो भी हो अच्छा लग रहा है ये प्रेम का सैलाब बाज़ार में ,अख़बार में,बड़े बड़े मौल में ,मल्टीप्लेक्स में ,फ़ूड ज्वाइंट में  और सबसे ज़्यादा सोशल नेटवर्क पर उमड़ा पड़ा है।पिछले तीस सालो में ये उत्साह मोबाइल नेटवर्क के जाल से भी ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है। देखते ही देखते एक दिवसीय वेलेन्टाइन डे का उत्सव साप्ताहिक हो गया।

 पता नहीं क्यूं ऐसा हो रहा है दिमाग़ में उठ रहे ख़्याल कि क्या तीस चालीस साल पहले लोग या यूँ कहिए युवावस्था में नये नये कदम रखे बच्चे प्यार नहीं करते थे को जितनी तेज़ी से झटक रही हूँ उससे दुगुनी तेज़ी से वो पुनः दिमाग़ में विराज रहे है। अजी करते क्यूं नहीं थे खूब करते थे ।हम बिहार के लोग और हमारा रस्टिक अंदाज ।तो चलिए पैंतीस चालीस बरस पहले के अंदाज़े वैलेण्टाइन एरा में चलते है।
                                         

अरे तुम ख़ुद ही गुलाब सी हो तुम्हारे आगे तो असली गुलाब भी शरमा जाए।इतना सुन कैसे गुलाबों सा सूर्ख लाल गाल हो जाता था उसका। इससे बेहतर रोज़ डे और क्या हो सकता है बताइए तो भला।

प्रप्रोज डे का तो बात ही मत करिए कितनी बार वो हवा के झोंके सी बग़ल से निकल जाती और हम उसे देखने के चक्कर में सायकिल से मिनट में धड़ाम हो ठेहुना(घुटना) फोड़वा चुके हैं और आप घुटने के बल बैठ प्रपोज़ करने पर ही अटके है।


अच्छा जी चाकलेट डे वो खुद ही मिश्री की डली सी मीठी है जो उनके दीदार भी हो जाए कानों में मीठी आवाज़ एक बार पड़ जाए तो पूरी दिन उसी मिठास में बौराए निकल जाता है ।

लो भईया ये टेडी डे की पूछ रहे हैं यहाँ  उनके एक  झलक पाने के इंतज़ार में इस चौराहे पर खड़े खड़े रोज़ आठ दस कप चाय पी खुद ही टेडी हुए जा रहे है। सुनिए उनकी ख़ुशी के लिए हम तो कहीं भी फ़िट हो जाए । और पिरौमिस की तो बात ही मत करिए जी- क्या कोई हमारा मुक़ाबला करेगा ।आज तक एक शब्द का दोनों तरफ़ से आदान प्रदान नहीं हुआ लेकिन जब वो मुहल्ले के कोने में इमली के बड़का गाछ के पास रूककर पीछे पलटती है तो वोआँखों आँखों में वादा ही तो करती है कल यही इसी वक्त मिलेंगे। इ कोई अईसा वाईसा प्यार थोड़े ना है । हम तो आँखों की भाषा पढ़ लेते है।उनकी इज़्ज़त पर कभी अंगुली नहीं उठने दूँगा ये तो मेरा खुद से वादा है।

 ये hug day तो हमारा संस्कार नहीं है ना और ऊपर से  मुहल्ले की ही है ऊ भी दूर के रिश्ते में। ज़्याद इधर उधर किए तो अपने ही घरवाले पीट पाट के इश्क़ का सारा भूत माथा से उतार देंगे।


आ…. Kiss day आजकल जो बड़ी अदा से फ्लाइंग किस का आदान प्रदान सिनेमा और विज्ञापन में आप देख रहे है ना ।उसका ईजाद तो उस दिन हुआ जब हम अपनी छोटी बहन को उसके घर किसी काम से लेकर गए थे।अब ऐसे घबराए थे कि जान सूख रहा था कि यहाँ से जल्दी निकले तब तक गरमागरम चाय लिए वो आ गई। मेज़ पर चाय की प्याली रख वो दूर ऐसे खड़ी हो गई जहां वो सामने भी ना थी और आँखों के ओझल भी ना थी। इससे बेख़बर घबराहट में हथेली से ठुड्डी का पसीना हटाते चाय ठंढी करने को फूँक मार रहे थे कि सामने नज़रें उससे टकरा गई और ये अदा उसे भी भी गई।

क्या बताऊँ आपको अपना किस्सा ए वेलेण्टाइन । मै तो उसका valen बन ख़ुशीखुशी ग़ुलामी को तैयार था तभी एक पढ़ा लिखा सरकारी मुलाजिम tine बन बीच में आ गया । वो उसकी हो गई मै बिना उफ़ किए घायल दिल लिए चुपचाप घर वापस आ गया।
                                               

आज अलग अलग राह पर चलते एक मीठी सी याद लिए बिना किसी शिकवा शिकायत के अपनी अपनी दुनिया में दोनों खुश हैं ।ये था उस एरा का प्यारा सा  रूपया पैसा तो छोड़िए बिना एक भी शब्द खर्चे अंदाज़े वेलेण्टाइन । जिसे याद आज भी मन को गुदगुदा जाती है ।देखिए प्यार वाले वैलेण्टाइन वीक मे थोड़ी बहुत मस्ती तो जायज़ है।

इनपुट सोर्स - कनक एस, मेंबर फोकस साहित्य ग्रुप