लघुकथा: अधूरा ज्ञान

अरे यार, क्या बताऊँ, मैं रातभर सोई नही, कल शीशे में देखा, मुँह में छाले के साथ एक सफेद दाग भी था। बस डॉक्टर गूगल के चक्कर मे पड़ गयी, उसमे लिखा था, एक बहुत बड़ी बीमारी में ऐसा होता है....

लघुकथा: अधूरा ज्ञान

फीचर्स डेस्क। सबको हंसाने वाली सखी रितिका आज पार्क में में कुछ देर से आई। कुछ ही दिनों में वो सबकी प्यारी सी दोस्त बन चुकी थी। रीना ने पूछा, "कहाँ रह गयी थी, हम सब बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे।"
पूछना था कि आंखों से उसके गंगा जमुना बह निकली। सब सखियां परेशान, "अरे, क्या हुआ, बताओ तो।"
"बहुत छाले हो गए थे मुँह में, अभी डॉक्टर के यहां से आई हूं। उन्होंने दवाई दी और कहा दो तीन दिन में ठीक हो जाएंगे।"

"तो इसमें रोने की क्या बात है।"

"अरे यार, क्या बताऊँ, मैं रातभर सोई नही, कल शीशे में देखा, मुँह में छाले के साथ एक सफेद दाग भी था। बस डॉक्टर गूगल के चक्कर मे पड़ गयी, उसमे लिखा था, एक बहुत बड़ी बीमारी में ऐसा होता है। मैं घबरा गई, कल से आज तक यही सोचने लगी, मैं किसी को कष्ट नही दूंगी, चुपके से ऊपर खिसक लूँगी, सारे उपाय दिमाग मे आने लगे, बार बार आंसू बहना शुरू हो गया। दोपहर को श्रीमान जी को बताया, डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लिया। डॉक्टर ने इतना सहज रिस्पांस दिया और कहा, "इन्फेक्शन है, ठीक हो जाएगा।"
और मेरी सारी चिन्ता खत्म.......

इनपुट सोर्स: भगवती सक्सेना गौड़