दरकता शिमला...

पापा की पोस्टिंग कभी चंबा में रही और मां की पोस्टिंग कुल्लू में। बचपन में कल्लू के व्यास नदी का कल कल बहते  पानी का शोर रात को भय का वातावरण पैदा कर देता था और मैं दादी से वापस मुझे अपने साथ सोनीपत ले चलने को कहने लगती। व्यास नदी हमेशा ही मुझे डराती रही है...

दरकता शिमला...

फीचर्स डेस्क। खुशनुमा सी एक शाम में मैंने शिमला अपने घर की छत पर चाय पीते हुए चारों तरफ नजर घुमाई तो खूबसूरत से हरे भरे पहाड़ और उन पर छाते बादल मन को रोमांचित कर गए। मेरा जन्म  शिमला के एक गांव में हुआ इसलिए अपनी जन्मभूमि से एक अलग ही रिश्ता बना हुआ है । पापा की पोस्टिंग कभी चंबा में रही और मां की पोस्टिंग कुल्लू में। बचपन में कल्लू के व्यास नदी का कल कल बहते  पानी का शोर रात को भय का वातावरण पैदा कर देता था और मैं दादी से वापस मुझे अपने साथ सोनीपत ले चलने को कहने लगती। व्यास नदी हमेशा ही मुझे डराती रही है।

चंबा के गांव में जब भी मैं पापा से मिलने जाती तो हर साल एक नया मकान देखने को मिलता क्योंकि स्लेटों वाले कच्चे मकान अक्सर बारिश में ढह जाते थे। चंबा शहर में पोस्टिंग होने के बाद मुझे वहां का चौहान बाजार बहुत अच्छा लगता था और मेरा बड़ा मन लगता था लेकिन डायरेक्टर आफ एजुकेशन बनने के बाद पापा को दोबारा शिमला आना पड़ा  और उन्होंने इसे ही अपना स्थाई निवास बनाया। कल जब समाचारों में शिमला के ताश की पत्तों की तरह ढहते हुए मकान देखें तो मन बहुत उदास हो गया।भोले भाले लोगों की चीख पुकार मन को आहत कर रही थी। अभी कुछ ही समय पहले जब मैं गई थी तो कितना खूबसूरत माहौल था । लेकिन शिमला की बढ़ती आबादी और निर्धारित ढलानों से अधिक ढलान पर बने मकान कटते पहाड़ यह सब शिमला की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है । शिमला में भूकंप का खतरा  सबसे अधिक बना रहता है । अंग्रेजों की गर्मी की राजधानी आज दरकती जा रही है। पहाड़ी नायिका एक गीत गाते हुए शायद बहुत पहले ही शिमला छोड़ने का संदेश दे चुकी है-

माहे नी मेरिये शिमले दी राहें, चंबा कितनी दूर

शिमले नीं बसणा, सपाटुए नीं बसणा, चम्बे बसणा जरूर....