पैरेंट्स को समझने की जरूरत है ...

पैरेंट्स को समझने की जरूरत है ...

फीचर्स डेस्क। आज बार बार ध्यान दरवाज़े की ओर जा रहा था। अभी तक मेरी मेड सुनीता नहीं आई थी और उसका कोई फोन भी अभी तक नहीं आया था। बेचैनी से इधर उधर टहल रही थी कि डोर बेल बजी। दरवाजा खोला तो सुनीता हाथ में मिठाई  का डिब्बा लिए खड़ी थी। पूछने पर उसने बताया कि उसकी बिटिया के दसवीं की परीक्षा मे 95% अंक आए है। यह बताते हुए उसकी आँखे छलछला गई। खुशी के आँसु तो अनमोल होते हैं। उसको बधाई दे ही रही थी कि मेरा बेटा से कमरे से निकला और आँखो में आँसू लिए तेजी से घर से बाहर निकल गया। रिजल्ट उसका भी आया था और उसने 78% अंक प्राप्त किए थे।

अब सवाल यह उठता कि किसी के मार्क्स कम आते है तो वह कुंठा, खीझ या फिर inferiority Complex का शिकार क्यों हो जाते है।

बच्चे यह क्यों नहीं सोचते जिनके मार्क्स ज्यादा है उनको भी वही मौके, वहीं पाठ्यक्रम और तैयारी के लिए उतना ही समय मिला था लेकिन हो सकता है कि आपके प्रयासों में कोई कमी रह गई हो। किसी भी तरह के नकरात्मक  विचार में लाने से पहले आप अपना मूल्यांकन करे। पेपरो की तैयारी के दौरान आपने अपना कितना परसेंट दिया था। रिविजन कैसे और कितनी बार की थी। पढ़ते समय sincerity level क्या था।

आज के समय में बच्चों के पास स्कूल की पढ़ाई को अच्छे से समझने के लिए कोचिंग,  इंटरनेट, प्री बोर्ड जैसे external options भी है। इन सब का इस्तेमाल बच्चे ने कितना और कैसे किया था।

यह सब सवाल जब मैने अपने बेटे से पूछे तो उसने भी अपनी गलतियाँ स्वीकार की। अब महत्वपूर्ण बात यह है कि आप के बच्चे ने जितने भी अंक प्राप्त किए है बच्चा उन अंको का भविष्य में कैसे इस्तेमाल करते है। यह ज्यादा जरूरी है ।

कई बार देखा गया है जिनके 10वीं / 12वीं मे  ज्यादा अच्छे अंक नहीं भी थे वह भी भविष्य में बड़ा अच्छा कर रहे है। और सफल भी हुए है । क्लास टॉपर बनना ज्यादा अहम नही है भविष्य मे आपने क्या achieve  किया है यह ज्यादा important है। माता पिता भी बच्चे की तुलना दूसरे बच्चो से ना करें  और अपने बच्चों को निराशा और हताशा से बचाये । डांट फटकार से अच्छा उनको मनोबल बढ़ाए, नहीं तो बच्चे inferiority  complex का शिकार हो सकते है।