जैसे किसी स्त्री के संनिग्ध गालों को छू लिया हो...

जैसे किसी स्त्री के संनिग्ध गालों को छू लिया हो...

फीचर्स डेस्क। इस बार गर्मी की छुट्टियों में परिवार संग जब मसूरी जाना हुआ तो मसूरी के जूलॉजिकल गार्डन में घूमते हुए गाइड ने अमरबेल दिखायी। देख कर मन अचरज से भर उठा कैसे वह पेड़ों के तनों पर लिपटी हुई पेड़ों का मुंह चूम रही है । असीम गुणों की खान फिर भी अपना कोई वजूद नहीं उसको बढ़ने के लिए पेड़ों के मजबूत तने का सहारा लेना पड़ता है।

हाथ बढ़ाकर जब उसकी पत्तियों को छुआ तो ऐसा लगा मानो किसी स्त्री के संनिग्ध गालों को छू लिया हो। स्त्रियों भी तो अमरबेल की तरह ही होती हैं शादी से पहले पिता और भाई का सहारा फिर शादी के बाद पति का सहारा। हमारी समाज की जटिलता ऐसी है कि औरत बिना पुरुष के सहारे के आगे बढ़ नहीं सकती ।

औरत कितना भी कितना भी फले फूले असुरक्षा की भावना उसके अंदर इतनी है कि उसे पुरुष रूपी तने का सहारा चाहिए। ऐसा नही है कि स्त्रियां कमजोर होती हैं वह तो बिना तने के भी मजबूत होती है शायद इसलिए की स्त्रियों में पुरुषों की तरह पुरुषत्व का अहम नहीं होता शायद इसीलिए उसमें तना नहीं होता। अमरबेल को भी शायद स्त्रियों की तरह सुरक्षा कवच की जरूरत होती है इसीलिए पेड़ के तने से लिपटी रहती हैं।

यह मेरी एक व्यक्तिगत राय है हो सकता है कि कोई मेरे से सहमत ना हो। स्त्रियां मन और तन से कोमल होती हैं कठोरता उन को छूकर भी नहीं जाती। हमेशा झुके रहना उसका स्वभाव है शायद इसीलिए उस में तना नहीं होता। प्रकृति का यह संदेश अगर  हर कोई स्वीकार कर ले तो परिवारों के बिगड़ने की नौबत ही ना आए।  साथ साथ रहते हुए भी बिना किसी विरोधाभास के पेड़ भी अपने सुरक्षा कवच प्रदान कर उसको अपने बराबर ले आते हैं । आपके क्या विचार हैं बताये जरूर।