तुम्हारा छूना
तुम्हारा छूना
तुम्हारे लिए अँगुलियों से
स्पर्श मात्र होता होगा
मेरे लिए
तमाम सुषुप्त संवेदनाओं को जागृत
करने का पर्याय है।
मृतप्राय कोशिकाओं में दौड़ पड़ता है लहू
चहचहाने लगता है मन का पाखी
शून्य में उठता है एक तरंग
भर जाता है उमंग
और उमंग - तरंग के साथ
बह उठती है मेरे अंदर की नदी।
छा जाते हैं अनगिनत रंग
न कोई परवाह न डर
मन होता है मलंग
सचमुच ये मेरे
प्रेम में होने के प्रमाण हैं ।
इनपुट : डॉ. कविता विकास, वरिष्ठ लेखिका व शिक्षाविद्।