सफलता दो कदम....

चाय की दुकान पर आकर किसी बताया अरे सुलोचना ने तो आत्महत्या करने की कोशिश की वह हॉस्पिटल में एडमिट है, सब हॉस्पिटल की तरफ भागते हैं, वहां सुलोचना की हालत बहुत खराब थी,सुलोचना के घर वाले....

सफलता दो कदम....

फीचर्स डेस्क। कॉलेज का पहला दिन था हम सबके मन में जोश था.। गर्ल्स कॉलेज से पढ़कर यूनिवर्सिटी में पहुंचे थे, यूनिवर्सिटी का माहौल हम सबके लिए बड़ा ही नया था और पहले से ही रोमांचक भरा था.। सुनने को मिलता था, कि वहाँ पढ़ाई कम रोमांस ज्यादा होता हैं,जो पढ़ चुके थे वह यूनिवर्सिटी में आने के लिए आमंत्रित करते थे, हम सब ने भी अपने घर से लड़ कर यूनिवर्सिटी  में एडमिशन तो ले लिया।पर अंदर बड़ी झिझक थी,क्योंकि गर्ल्स कॉलेज से पढ़े होने के कारण पैर अंदर जाने पर ठिठक जाते थे, कभी बालों को ठीक करते,  कभी दुपट्टा ठीक करते, डरे सहमे यूनिवर्सिटी के गेट के अंदर हो गए।

पहले से पता था जो न्यू स्टूडेंट  आते हैं उनकी रैगिंग  होती है, डर के मारे ऊपर की सासे  ऊपर नीचे की सांस नीचे  हो रही थी, सोच लिया था अब जो होना होगा... हो..गा,"जय भोलेनाथ अब तेरा ही सहारा है" तभी एक तिलकधारी लड़के को देखकर हम सभी ने सोचा यह तो निपट देहाती है, थोड़ा जान में जान आ गईं, कि यहां पर ऐसे लोग भी मिलेंगे, हम सब थोड़ा आगे ही बड़े थे, कि तभी उन तिलकधारी ने पीछे से आवाज लगाई, "ए जी तनी सुनी जी " गांव से शहर में तो आ गए थे बिहारी बाबू, पर बोलने की तमीज गांव में ही छोड़कर आए थे, हम में से एक लड़की ने उसको खूब बुरा भला बुरा कहा, और हम आगे चल दिए, बिहारी बाबू अपनी जगह पर  ठिठक  के रह गए,.। जो उन्होंने सोचा ना था वैसा जवाब उनको मिल चुका था।

अब  हम सब अपनी क्लास के सामने पहुंच चुके थे.। अभी तक रैगिंग तो ना हुई थी पर मन में डर तो लगा ही हुआ था, देखने से यह ना पता चल रहा था कौन सीनियर है कौन जूनियर,  हम लोग क्लास में घुस गए, तब तक सामने से बिहारी बाबू भी आ गए, हम सब अपनी सीट पर बैठे थे, तभी क्लास में प्रोफेसर आए, हम सब लोग खड़े हो गए  , हम सब ने उनका अभिवादन किया,उसके बाद वह सबका एक-एक करके नाम और परसेंटेज पूछने लगे। हम सब चौके तो उस समय जब बिहारी बाबू ने अपना इंट्रोडक्शन दिया। बिहारी बाबू बिहार से टॉप करके आए थे। अब  बिहारी बाबू अपनी क्लास में सबसे आगे रहते, धीरे धीरे बिहारी बाबू क्लास में पढ़ाई के लिए तो फेमस हो रहे थे, पर लड़कियों उनका  नाम "  ए जी तनी सुनी जी" रख दिया था। जहां भी वह देखते  लोग बोलते हैं "ए जी तनी सुनी जी," उसके बाद क्या  हमसब जोर से ठहाका लगाकर  हंसने लगते..। पर बिहारी बाबू को इन सब चीजों का बुरा ना लगता  वह भी हम सब के साथ को खूब हॅसते थे।

पहले तो हम सबने सोचा था कि बिहारी बाबू बहुत ही  देहाती हैं नकल करके पास हुए होंगे, पर बाद में क्लास में उनकी परफॉरमेंस देख कर हम सबको यकीन हो गया कि वाकई में बिहारी बाबू पढ़ने में बहुत तेज थे । धीरे-धीरे हम लोगों ने ग्रेजुएशन कर लिया। बिहारी बाबू की अब आगे की पढ़ाई शुरू हो गई। उन्होंने इलाहाबाद में अपना एक कोचिंग में एडमिशन करा लिया "पीसीएस जे " की तैयारी करने लगे । उनके साथ के दो चार लोग और थे। पढ़ाई का खर्चा तो निकालना ही था बिहारी बाबू को, सो उन्होंने  ने एक चाय की दुकान लगा ली। शाम होते ही उनकी दुकान पर कोचिंग के लड़के चाय पीने बैठ जाते, सब चाय पीते बिहारी बाबू उनसे पैसे कम करके चाय पिलाते थे, क्योंकि सबके घर से पैसे ना आते थे, बिहारी बाबू अपनी पढ़ाई भी कर रहे थे, और अपना बिजनेस भी चला रहे थे।

सुबह शाम चाय का स्टाल लगाते, बाकी दिन में अपनी पढ़ाई करते थे, बिहारी बाबू को लड़कियों से कोई लगाओ ना था। पर उनके साथ की पढ़ी सुलोचना, इलाहाबाद अपनी पढ़ाई की तैयारी के लिए आई थी, वह भी बिहारी बाबू की कोचिंग में कोचिंग कर रही थी , सबका एक साल कोचिंग में बीता, किसी तरह पहले साल किसी का ना हुआ   "पीसीएस.जे "में , आज शाम  को  पीसीएस जे "का रिजल्ट आया था पीसीएस जे " के रिजल्ट के पोस्टर दीवारों पर चिपक जाते थे, बिहारी बाबू पोस्टर को बड़े ध्यान से देख रहे थे जैसे उनकी तस्वीर चिपकी हो उस पर उनको  ही दिखाई ना दे रही हो , आज वह बहुत दुखी थे, बड़े होने के कारण और गरीब परिवार से होने के कारण उन पर बहुत सी जिम्मेदारियां  थी, आज उनका हौसला टूट रहा था, वह सबको चाय तो पिला रहे थे पर उनकी आंखें बहुत नम थी, उनका शरीर बस यहां था,मन कहीं और था,। तभी चाय की दुकान पर आकर किसी बताया अरे सुलोचना ने तो आत्महत्या करने की कोशिश की वह हॉस्पिटल में एडमिट है, सब हॉस्पिटल की तरफ भागते हैं, वहां सुलोचना की हालत बहुत खराब थी,सुलोचना के घर वाले भी आ चुके होते हैं, सुलोचना के घर वालों की हालत देख बिहारी बाबू सहम जाते हैं, उन्हें अपने मां-बाप याद आ आते हैं उनका भी तो उसके  सिवा कोई नहीं हैं, वह उन्हीं के लिए तो यहां आया है, क्या एग्जाम में विफल होने का यही रास्ता आसान है कि अपने आप को खत्म कर दो, बिहारी बाबू भी तो सुबह से इसी रास्ते पर जाने के लिए बिस्तर बांध रहे थे अपना,पर सुलोचना के घर वालों को देख कर उनको यह एहसास हुआ यह जिंदगी बड़ी कीमती है, उनके जाने के बाद मां-बाप तो जीते जी मर जाएंगे। हम तो विफल होकर यह सोच रहे हैं कि हम  कुछ नहीं कर सकते.। और अपना जीवन समाप्त करने जा रहे थे,पर मेरे मां-बाप की क्या गलती है जिन्होंने मुझे इतनी परिश्रम से पाला और आज मैं उनको अपने ही हाथों मार देता। आज वह सुलोचना को कहीं ना कहीं बहुत धन्यवाद दे रहे थे, पर सुलोचना की हालत पर बहुत अफसोस भी हो रहा था, उनकी जान तो आज सुलोचना नहीं बचाई थी।

 सुलोचना की हालत सुधरने लगी मां बाप, और दोस्त सब उसे समझाने लगे। दूसरे दिन बिहारी बाबू सुलोचना से मिले और उससे कहा, आज तुमको देखकर और तुम्हारी खबर सुनकर मेरा दिल धक से हो गया था जैसे लग रहा था कि प्राण निकल चुका है। मात्र तुम्हारी सुसाइड  की खबर को सुनकर मेरा यह हाल था, तुम्हारे बाद मेरा क्या होता,शायद आज तक मैं तुझे एक दोस्त समझता था.। और दोस्ती ही बने रहना चाहता था.। पर शायद तुम मेरे दिल में कहीं घर कर गई थी। सच में आज मैंने जीवन से दो सीख मिली है एक तो कभी भी हार के मौत को गले नहीं लगाना। और दुगने उत्साह से फिर उस काम को करना। और दूसरी कि मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं,मात्र तुम्हें खोने से मैं इतना डर गया और मौत को बहुत करीब से देखा। सुलोचना क्या तुम मुझसे शादी करोगी। पर अभी नहीं अभी मुझे एक साल का टाइम दो,

सुलोचना ने भी हामी भर दी पर वो शर्मिंदगी से अपनी आंखों को ऊपर नहीं उठा पा रही थी। आज वो आत्मग्लानि से भर चुकी थी। उसने जो कदम उठाया था वह पढ़े लिखे लोगो पर शोभा नहीं देता था। सुलोचना मां-बाप के पैरों पर गिर गई और उनसे क्षमा मांगने लगे मां मुझे माफ कर दो पापा मुझे माफ कर दो मैंने आप लोगों के बारे में कुछ नहीं सोचा अब मैं ऐसा काम कभी नहीं करूंगी। मां मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हुँ, मां मेरा रिजल्ट अच्छा नहीं आया था इसीलिए मैंने यह कदम उठा लिया था मैं भावुक हो गई थी ,मां-बाप की आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, अगर आज कुछ अनहोनी घट गई होती तो उनकी सारी जमा पूंजी  आज लूट चुकी होती, वह अपनी बेटी को वापस पाकर बहुत खुश थे। और ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रहे थे,। बिहारी बाबू चुपचाप खड़े सब देख रहे थे उनकी आंखों में आंसुओं से भर गई थी, अपने आंसुओं को रोकने का प्रयास कर रहे थे.। पर आंखों के समंदर में तो  तूफान कि बाढ़ आई हुई थी, वह कहां किसी बांध से बंधने  वाली थी। बिहारी बाबू अपने आंसुओं को रोकना भी नहीं चाहते थे..। आज वह अपने पश्चाताप  के अशुओ को बहा देना चाहते थे..।

सुलोचना और बिहारी बाबू की एक नई सुबह थीं,दोनों ने फिर से तैयारी शुरू की सुलोचना अपने मां-बाप के साथ गांव चली गई बिहारी बाबू भी एक साल के लिए अंडरग्राउंड हो चुके थे, अब ना चाय की दुकान थी, न बिहारी बाबू.। दोस्त बिहारी बाबू को बहुत मिस कर रहे थे उन लोगों ने बहुत खोजा पर बिहारी बाबू कही ना मिले।

"पीसीएस जे "का रिजल्ट दूसरे साल जब निकला सुलोचना और बिहारी बाबू क्वालिफाई कर गए थे। दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे इस पोस्टर में बिहारी बाबू और सुलोचना की फोटो चिपकी हुई थी। आज पोस्टर को देखकर सुलोचना को पहले वाला साल याद आ रहा था... जब उसका पीसीएस जे में नहीं हुआ था और वह यही पोस्टर देखकर, उसने आत्महत्या करने की कोशिश की थीं। आज सुलोचना की आंखों से आंसू बह रहे थे, पर यह आंसू खुशी के थे, तभी बिहारी बाबू फोन आया विल यु मेर्री मी , फोन पर ही शरमाते हुए सुलोचना ने एस बोला। आज दोनों अपनी लाइफ में बहुत खुश हैं.। अगर शिद्दत से किसी चीज को चाहो तो वह जरूर मिलती है। सफलता न मिलने पर आत्महत्या उसका रास्ता नहीं है किसी भी सफलता के लिए परिश्रम बहुत जरूरी है। बस सफलता आपसे दो कदम दूर होती है।

इनपुट सोर्स : साधना सिंह स्वप्निल