लघु कथा : प्रायश्चित

घोर आश्चर्य यह था कि आज की भ्रमित पीढ़ी ऐसा कर रही है खुले आम अपने सहचर ,सहचरी को धोखा देकर,लेकिन इस खेल में एक संन्यासी का होना कई प्रश्न खड़े कर रहा था....

लघु कथा : प्रायश्चित

फीचर्स डेस्क। अथाह जल से लबालब गंगा।साँझ अब उतरने वाली है।कई नौकाएं गंगा की लहरों पर उतरी।सैलानियों का समूह नौकायन को निकला है।कुछ तो पतवार वाली मल्लाह  की नाव है कुछ मोटरबोट सी।कुछ पर समूह में लोग बैठे है।कुछ एकल ,कुछ जोड़ों में।
जल अभी स्थिर है ,सूरज छिपा नहीं ।घाटों पर बने मंदिर से घंटी घड़ियाल के साथ भजन श्लोक गूंज कर वातावरण को और शुद्ध कर रहा है।
एक नाव में तीन लोग बैठे है।बीच मे एक युवा सन्यासी, गेरुआ वस्त्र धारण किए हुए। दाएं एक अप्रतिम सुंदरी जिसकी सिर्फ  सुगढ़ पीठ और पतली लोचदार कमर दिख रही थी।उसने साड़ी पहनी थी।बाएं एक  सुदर्शन पुरुष जो सुंदरी का पति था।
ठीक  पीछे एक नाव थी।हाथ में ब्रिज कैमरा लिए हुए युवक अकेला बैठा था।वेशभूषा देख कोई भी कह दे कि वह कुशल फोटोग्राफी कर सकता है।सुंदर नजारे शाम के ,गंगा की लहरें,
मृदुल हवा, डूबता सूरज हरियाली से भरी पहाड़ियां।
जीवेश ने देखा स्त्री का एक हाथ पति के कंधे पर था और पीठ के पीछे संन्यासी ने उसके हाथ को कसकर पकड़ा था।पति सुदेश 
बेखबर प्रकृति के नजारे देख रहा था।
जीवेश हतप्रभ तो हुआ लेकिन आनन फानन में उसने कई फ़ोटो क्लिक कर लिया।वह चकित था इस सुंदरी को यह संन्यासी कैसे मिला?क्योंकर उसने सुंदरी को इस दोराहे पर खड़ा किया?
निश्चित दूरी तय कर सभी नावें किनारे लगी।जीवेश होटेल में लौटा।डिनर के लिए डाइनिंग हॉल में वही सुंदरी पति के साथ डिनर के लिए आई थी।वह संन्यासी आश्रम लौटा होगा ऐसा अनुमान लगाया उसने।सुबह लॉन में संन्यासी 
और सुंदरी धीरे धीरे बात करते हुए टहल रहे थे।
उसने समझने की ...चेहरा पढ़ने की कोशिश की ,हावभाव देखे और निर्णय पर पहुंचा कि मामला उचित नहीं।
घोर आश्चर्य यह था कि आज की भ्रमित पीढ़ी ऐसा कर रही है खुले आम अपने सहचर ,सहचरी को धोखा देकर,लेकिन इस खेल में एक संन्यासी का होना  कई प्रश्न खड़े कर रहा था।
उसने दो दिन बाद वही फ़ोटो होटेल मैनेजर को 
दिखाए कि वह पोस्टर के लिए अपनी ली हुई छवियां बेचता है।फ़ोटो के अच्छे दाम मिले उसे।

उसने कमरा नम्बर बता कर सुंदरी की जानकारी और पता ठिकाना मालूम किया।यह होटल प्रबंधन के लिए गैर कानूनी था लेकिन पैसे के लिए कानून कौन मानता है।

इस घटना के पांच साल बीते।सुदेश इस बीच बिजिनेस की बात कह कई रात घर नहीं आता था।सुंदरी ने महसूस किया अपने लिए सुदेश के ठंडे भाव।एक शाम बड़े मनुहार से वह शहर के सुंदर पार्क में उसे लाया।एक बेंच पर पहले से कोई स्त्री मोर्डन जैसी बैठी थी।चेहरे पर असुरक्षा आ का भाव तिर रहा था।उसके बगल में सुंदरी बैठी थी।उसका सिर पति के कंधे पर था।सुदेश और उसके बग़ल की स्त्री का हाथ पीछे से आपस मे गूंथे हुए थे।आज यहां कोई फोटोग्राफर नहीं था लेकिन सुंदरी अनुभवी थी पीछे की फ़ोटो उसके हृदय में उतर तीर सी चुभ रही थी।
कुछ पल बाद ही वह घर जाने को आतुर थी।सुदेश को छोड़ वह घर पहुँची।रुआँसी ,उसके आंसू थम नहीं रहे थे।उसने लैपटॉप ऑन किया
संन्यासी निरंजन को ब्लॉक ही नहीं अपना प्रोफाइल भी डिलीट किया। फोन नंबर को ब्लॉक किया।दो घंटे बाद सुदेश आया ।हाथ में बड़ा लिफ़ाफ़ा था।पांच साल पहले जीवेश फोटोग्राफर ने ये फोटोज उसे भेजे थे।लिफ़ाफ़ा सुंदरी को दिया उसने..मौन था लेकिन कठोर निर्णय के साथ।
इतना ही कहा कि

" तुम्हें क्षमा करूँ यह शक्ति मुझमें नहीं "
कुछ जरूरी सामान के साथ सुदेश ने घर छोड़ दिया।

इनपुट सोर्स: मीना दत्त