तुम्हारे प्रेम की गोद…

तुम्हारे प्रेम की गोद…

फीचर्स डेस्क। मैं तुमसे शादी करूँगा, तुमसे बात करके ही पूरी तैयारी करूँगा, तुम्हारे पापा घर आएँगे रिश्ता माँगने तो अपने घर उनका आदर सत्कार करते हुए पीछे पीछे तुम्हें पूरा लाइव दर्शन सुनाऊँगा। दोनों के घर वाले हो जाएँगे तैयार फिर पंडित से पूछकर तुमसे पहली बार शहर में मिलने आऊँगा……।

यह जब भी सोचता हूँ अब तो लगता है कि ज़िंदगी कितनी सुंदर है न..! पहले तुम्हें पसंद किया, फिर तुम्हारी पसंद में खुदको महसूस किया, और जब शादी के लिए तुमसे पूछा तुमने हाँ कह भी दिया । मानों ऐसा लगा कि प्रेम करना और प्रेम करने वाली को अपना बना लेना भी कितना आसान है न! कुछ मुश्किल ही नहीं हुई। इतनी ख़ूबसूरत लड़की को अपना बना लेना, जो कई दूसरे लड़कों की पसंद में टॉप पर हो, एक अलग तरह की सफलता की ख़ुशी देता है..। और फिर तुमसे जब भी मिलने को कहा तुमने कैसे भी मिलने का वक़्त भी दिया। सच में  मैं तो प्राउड से भरा चला जा रहा था, ऐसा लग रहा था कि मुझ जितना कोई हैंडसम लौंडा होगा ही नहीं । और फिर तुमने धीरे धीरे जब मेरी डाँट और ग़ुस्सा को भी क़बूल कर मेरे लिए होना खुदको महसूस कराया…. तब कहीं मुझे महसूस हुआ कि मैं कितनी ग़लत धारणाओं में जी रहा था!

बहुत से लोगों को प्रेम आसानी से मिल जाता है, लेकिन उस आसानी की वजह से अक्सर साथी का सम्मान कम हो जाता है कुछ समय बाद। ऐसा शायद मैं भी तुम्हारे साथ कर रहा था, लेकिन जब तुम्हारी मेरे लिए केयरिंग और प्रेम की आदत ने मुझे महसूस कराया कि मैं तुम्हारे साथ ग़लत कर रहा हूँ, तब वाक़ई बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई सिया…..।

वाक़ई, अब महसूस करता हूँ कि शायद तुम खुदसे भी ज़्यादा मुझमें जीती हो, खुदसे ज़्यादा मुझे यादों में रखती हो। फिर मैं तुम्हें छोड़कर क्यों कहीं जाऊँ…!

पता है सिया…! अब डर लगने लगा है कि जब मैं तुमसे इतना प्रेम करने ही लगा हूँ तो कहीं ईश्वर यह सब कुछ कहीं बिगाड़ न दें! क्योंकि अक्सर ऐसा होता ही है कि पसंद वाली चीजें, जिन पर हम बहुत ज़्यादा ध्यान लगाने लगते हैं, वो दूर हो जाती हैं। और तब याद आती है तुम्हारे साथ गुजरी वो रात जिसमें मैं तुम्हारे साथ बैड पर यूँही बैठा बैठा घंटों गुज़ार गया…।

साड़ी पहने तुम इजाज़त दे चुकी थीं तुम्हें छेड़ने की, पर जब मैं तुम्हारी गोद में सिर रख लंबी लंबी फेकने लगा, तुम्हें पसंद करने की बातों में तुम्हारी तारीफ़ें करने लगा, तो तुमने भी कितने हल्की उँगलियों को मेरे बालों में एक अलग प्रेम की हवा सी दौड़ाई थी …! लगा था कि जैसे कि तुमने ख़ुदमें मुझे रहने की मुस्कुराकर इजाज़त दे दी हो…..।

तुम और मैं में तुममें होना भी कितना सुकून देता है सिया…! बस इसलिए अब तुम्हारा हो जाना ही मेरी चॉइस है सिया।

इनपुट सोर्स : संदीप यादव, वरिष्ठ कहानीकार और देश के सेवा (CRPF) में कार्यरत हैं।