स्वर्णमयी, क्या तुम मेरे साथ चलोगी

क्या तुम मेरे साथ चलोगी.. खुश का पाखंड करोगी तुम आखिर कितना दंड भरोगी तुम क्या दर्द छुपाना जरुरी है तेरा हंसना क्यों मजबूरी है सिर का बोझा अभी उतारो अपना जीवन स्वयं संवारो.....

स्वर्णमयी, क्या तुम मेरे साथ चलोगी

फीचर्स डेस्क। स्वर्णमयी!!
क्या तुम मेरे साथ चलोगी.. 

दिन-भर तपती रहती हो
अंगारों में तुम जलती हो
सिर पर कोई छांह नहीं
कोई शीतल सी राह नहीं
रेत के कण-सी दहकती हो
बेखौफ बुलबुल-सी चहकती हो

स्वर्णमयी!! 
क्या तुम मेरे साथ चलोगी.. 
खुश का पाखंड करोगी तुम
आखिर कितना दंड भरोगी तुम
क्या दर्द छुपाना जरुरी है
तेरा हंसना क्यों मजबूरी है
सिर का बोझा अभी उतारो
अपना जीवन स्वयं संवारो

स्वर्णमयी!!
क्या तुम मेरे साथ चलोगी.. 
ये कलम तुम्हारी ताकत है
छू ले जो तेरी हसरत है
शिक्षा पाना तेरा हक़ है
तुझ में कस्तूरी-सी महक है
थोड़ी हिम्मत थोड़ी चाहत
मुठ्ठी में कर ले किस्मत

अयि स्वर्णमयी!! 
क्या तुम मेरे साथ चलोगी..


इनपुट सोर्स : डॉ शिप्रा मिश्रा