Tag: educational

फोकस साहित्य

लघु कथा : उदास कृति

मैं तो अपने मन की कह भी नहीं पाया। स्निग्धा अपने सपनों की रंगीन उड़ान भरने चली गई। उसके बाद मैंने भी.....

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लघु कथा: मेरा कुलदीपक

इस मौसम में कौन हो सकता है...सोचते हुए जाकर देखा। एक सुदर्शन युवक रेनकोट में लिपटा खड़ा था। वो उनकी प्रश्नवाचक निगाहें देख कर.....

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लघु कथा: पर उपदेश कुशल बहुतेरे

दूसरों को देने से पहले खुद को दिए गए उपदेश दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सचमुच बदलाव ला सकते हैं। पर उपदेश कुशल बहुतेरे के वाक्य को, उसकी...

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लघु कथा: पर उपदेश कुशल बहुतेरे

आसान बहुत है देना उपदेश जब स्वयं पालन करने का आता समय, दिख जाता है उपदेशी का भेष। दूसरों को उपदेश देने से बहुत लोग, स्वयं को रोक नहीं...

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लघु कथा : वोह आंखें

ऐसे ही डरते, सम्मान करते करते अनिल पंद्रह साल का हो गया। एक दिन मंछाराम फैक्ट्री से घर लौटे, तो उन्हें अपने घर के एक कमरे में से ज़ोर...

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लघु कथा : बारह साल की वह लड़की

सुखवंत सिंह थोड़ा मुस्कुराए, रुकिए, मैं खुलवाता हूँ दरवाजा।’’ वे भागकर सामने वाले घर की छत पर चढ़ गए और वहाँ से चिल्लाकर बोले, ‘‘सतविन्दर,...

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स्वर्णमयी, क्या तुम मेरे साथ चलोगी

क्या तुम मेरे साथ चलोगी.. खुश का पाखंड करोगी तुम आखिर कितना दंड भरोगी तुम क्या दर्द छुपाना जरुरी है तेरा हंसना क्यों मजबूरी है सिर...

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लघुकथा : शक

हमारे समाज ने आज इतनी तरक्की की है फिर भी आज भी बहुत गांव या बहुत परिवार ऐसे हैं जहां लोग इस तरह की मानसिकता के शिकार हैं.....

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World Environment Day : आसरा बूढे पीपल का

उन नन्हीं -नन्हीं चिडियों को जिनके पर कतरने के लिए दुनिया बावली है...

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लघु कथा : गुस्सा, खामोशियाँ बोलती है

तुम्हारी खामोशी ने ही आज मेरा दिल जीत लिया, और देखो तुम्हारी खामोशी बोल पड़ी। आजतक तुमने पलटकर जवाब नही दिया। कई बार मेरे मन मे ये...

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लघु कथा : फेंकी हुई लड़की

जो लोग उस पर छींटाकशी करते हैं उनके सामने रह कर अपने आप को प्रमाणित करे. अपने आप से भाग कर वह कहीं भी जाएगी समस्या का समाधान नहीं...

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लघु कथा : अंतहीन

उसे तो हमेशा अपनी माँ का प्यार- दुलार याद आता. अपने बाबा याद आते, अपनी बहन याद आती. गाँव के लोग याद आते. उसके बाबा जब भी उस से मिलने...

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लघु कथा : पिंजरे में बचपन

प्रकृति को निहारना, तारों के नीचे बैठना, भाई बहनों की आपसी मस्ती, दोस्तों के साथ खेलना !! यह तो सब तो अब पुराने ज़माने की बात हो गई....

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देश पढे़ देश बढ़े

कभी द्रोण को गुरु मानकर एकलव्य ने दे दिया था अंगूठा कभी पेड़ की छाँव में बुद्ध को मिल गया था ज्ञान । युग बदले नियम बदले बदली ज्ञान...

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