जुबैदा की नजर इंदु के बेटे पर पड़ी

जुबैदा की नजर इंदु के बेटे पर पड़ी

फीचर्स डेस्क। धूल धूसरित धरती का आँचल लहराया। अपने अस्तित्व को रोती नदियां पुनः यौवन पर बलखाने लगी। मेघमलायें घनी से घनी होती रही। किसान मल्हार गाने लगे। तीज बीते ...घर आये बालम फिर परदेश लौटे।

जुबैदा गर्भ से थी। बस्ती थी कई टोले वाली। इस विकराल समय में बस्ती में बसने वाले ने भाई चारा नहीं खोया था। बेमुर्रवती एक घर से दूसरे घर प्रवेश नहीं कर पाई थी। भादो उतर आया था। सावन की वर्षा का सुहानापन भादो में रौद्र रूप ले लेता है। खास कर नदियों के पास का इलाका ..कब मिट्टी का कटाव भारी वर्षा से हो जाए ..सोते में घर की चारपाई तैरने लगे ..भविष्य वाणी कोई नहीं कर सकता??

जुबैदा के बगल के मकान में रहती है इंदुबाला चार साल का बच्चा है। पति परदेश गया दो जून की रोटी परिवार को मयस्सर हो इसी कबायद में।

दोपहर को पशु के चारे के लिए जुबैदा और इंदु बैराज के पास वाले मैदान में हरी घास काटने जाती।साथ मे इंदु का बेटा भी रहता।

अचानक सायरन की आवाज़ गूंजी।बैराज का गेट किसी ने खोला या पानी के दवाब से टूटा कोई नहीं कह सकता।

हाहाकार करता पानी मैदान को जलमग्न कर गया। तीनों मैदान में विशाल पीपल वृक्ष की डालियां थामें रहीं। इंदु का बच्चा गोद में था। तेज बहाव में इंदु की गोद से गिरा। जुबैदा चिल्लाने लगी ...बचाओ बचाओ। जल प्रलय में कौन किसकी सुनता।

इंदु का पता नहीं। जुबैदा की नजर इंदु के बेटे पर पड़ी। वह घास काट कर रखने वाली टोकरी पकड़ बहता वृक्ष पास आया। जुबैदा मध्य रात्रि तक बच्चे को टोकरी में रख सिर पर थामे रही। आशा थी इंदु के लौटने की। आकाश साफ हुआ चाँद निकला। पानी का बहाव स्थिर हुआ।

जुबैदा सिर पर इंदु के बच्चे को लिए जा रही है ।किनारे की खोज में। गर्दन तक पानी का रेला था। गर्भस्थ शिशु पेट में हिलकोरे ले लेता था । जल की ठंड से? या खुशी से? हाँ वह खुश था। पृथ्वी पर आने के पहले एक भाई इस जल सैलाब ने उसे दे दिया था।

इनपुट : मीना दत्ता, मेम्बर फोकस साहित्य।