" दूज का चाँद" ,जोकि 100 रंग बिरंगे फूलों का गुलदस्ता है

" दूज का चाँद" ,जोकि 100 रंग बिरंगे फूलों का गुलदस्ता है

 रेखा जी को उनके काव्य संग्रह "दूज का चाँद” के लिए बहुत-बहुत बधाई!!

रेखा मित्तल जी का साहित्य से जुड़ाव तो कॉलेज के समय से ही था। जब यह हिंदी में एम. ए.,एम.फिल.कर रही थी, तभी लेखन का शौक हो गया ।लेकिन जब गृहस्थी में फँसी तो सब भूल गई  ।करोना काल से रेखा जी का शौक अपने परवान चढ़ा और गढ डाला" दूज का चांँद"!!

ज़िन्दगी के पहलू से कुछ अनमोल, मनमोहक पलों को चुराकर निकल पड़ी, एक लम्बे सफर पर! मांँ वीणा वादिनी की पूजा-अर्चना कर समेट लिया वरदान में" दूज का चांँद" ,जोकि 100 रंग बिरंगे फूलों का गुलदस्ता है ।

 "प्यार के अहसास" के साथ ...

 अपनी "अस्मिता "की तलाश में .....

 बारिश की टप टप बूंदों से 'अंतर्मन' को भिगोती रेखा जी.... आहिस्ता-आहिस्ता अपने पाँव आगे बढ़ाती रही । अपनी एक कविता के माध्यम से रेखा जी कहती है,

    "मैं स्याही हूंँ"

     मिले कलम का साथ

     तो खाली सफ़हे पर

     अल्फाज़ बन बिखर जाऊँ

तो दूसरी तरफ, रेखा जी समय की बात करती हैं, दुनिया के रंगमंच पर "कठपुतली" बन अपने अस्तित्व को तलाशती ,"नश्वर जगत" के स्वरूप को समझाते हुए कहती हैं ,जीवन है ,तो मृत्यु से क्या घबराना!!

 रेखा जी ने अपनी इस पुस्तक में अनेकानेक जिंदगी के लम्हों को सँजोने की 'कोशिश' की है तथा "तन्हाई "को अपनी सहेली बना कर असत्य का पर्दाफाश कर, "शक्ति स्वरूपा नारी" को चित्रित किया है। गुरु गोविंद सिंह के "चार साहिबजादे" लौह पुरुष सरदार पटेल ,मातृभाषा ,माटी पूछे देश की पुकार आदि रचनाओं के माध्यम से देश के प्रति अपना राष्ट्रप्रेम भी दर्शाया है। चंद पंक्तियों में रेखा जी के मन की बात कहना चाहूँगी...

जी चाहता है तोड़ के बंधन

खुले गगन में पंख  फैलाऊंँ

चांँद की छत पर अरमानों का

सुंदर सा एक महल बनाऊंँ

उड़ती जाऊंँ, उड़ती जाऊंँ, उड़ती जाऊंँ

अंत में मैं यही कहूंँगी कि रेखा जी का हृदय एक आज़ाद  परिंदा बन ,उन्मुक्त गगन में स्वच्छंद उड़ने के ख्वाब बुनता रहता है। मेरी शुभकामनाएँ है कि रेखा जी साहित्य के क्षेत्र में अपनी उड़ान भरें, हम सदा आपके साथ हैं ।

डॉ० प्रतिभा गुप्ता 'माही' ,पंँचकूला (ग़ज़लकार / गीतकार /सूफ़ी कवयित्री/ लेखिका