Women's Day Special : गोल्ड मेडलिस्ट डॉ तृप्ति सिंह ने अपने खेल से देश और विदेश सबको किया चकित

घर और बच्चे की जिम्मेदारी से बीच एक घरेलु महिला ने कैसे अपने खेल के सपने को कायम रखा और जीता भी सिर्फ नेशनल नहीं इंटरनेशनल गेम को भी , ये सब जानने के लिए पढ़े पूरा आर्टिकल।

Women's Day Special : गोल्ड मेडलिस्ट डॉ तृप्ति सिंह ने अपने खेल से देश और विदेश सबको किया चकित

फीचर्स डेस्क। खेल....एक ऐसी विधा इसमें जब देश का नाम होता है , मेडल्स आते है तब तो सब का सीना गर्व से फूलता है पर जब अपना बच्चा पढाई से ज्यादा खेल को तवज़्ज़ो देता है तो कोई भी मां पिता उसको प्रोत्साहित नहीं करते। उस पर से अगर आप लड़की है और खेलना चाहती है तो आप का संघर्ष दोगुना हो जाता है। पर कुछ ऐसी सख्शियत होती है जो सभी हर्डल्स को धता बताते हुए आगे निकलती है और ऐसी निकलती है कि सभी के लिए मिसाल बन जाती है। उन्ही में से एक हैं डॉ तृप्ति सिंह, इनके माथे एक नहीं कई उपलब्धियां हैं , आइये जानते हैं इनके बारे में हमारी बात चीत के कुछ मुख्य अंशो के साथ  

पारिवारिक परिवेश

डॉ तृप्ति का जन्म एक उच्च शिक्षित परिवार में भोले बाबा की नगरी वाराणसी में हुआ। तृप्ति बचपन से ही प्रखर थी पढाई के साथ साथ खेल कूद में इनका मन बराबरी से लगता था। अपनी इंटरमीडिएट की पढाई पूरी करते करते इन्होने एथलेटिक्स और बास्केटबॉल में राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिताएं जीत ली थी।

करियर में द्वन्द

तृप्ति जहाँ एक ओर खेल में ही अपना करियर बनाना चाहती थी चाहते थे की वो हायर स्टडीज पर फोकस करें। ना चाहते हुए भी तृप्ति ने अपने घर वालों का मान रखा और जी जान लगा कर पढाई में लग गयी। इसी बीच इनकी शादी हुई और एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। 5 साल के अथक प्रयास के बाद इन्होने डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की और अपने बाबू जी का सपना पूरा किया। साथ ही असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी करने लग गयी पर कुछ मिसिंग था। 

ट्रैक पर वापसी

बाबू जी के सपनो को पूरा करने के बाद अब बारी थी अपने सपनो को जीने की, अपने भाई और जीवन साथी के सहयोग से डॉ तृप्ति ने एक बार फिर से ट्रैक पर वापसी की। हालाँकि ये बिलकुल आसान नहीं था पर ट्रैक की मिट्टी को माथे से लगाते हुए फिर उसी जोश, जूनून और समर्पण भाव से वो जुट गयी।  

गोल्ड मैडल का सफर

 खेल छोड़ने के 20 साल बाद फ़रवरी 2019 में राष्ट्रीय मीट में भाग लेने के लिए डॉ तृप्ति देव भूमि उत्तराखंड पहुंची। रेस में सिर्फ 20 दिन का समय बाकी था पर इन्होने तय किया कि मै हिस्सा लुंगी और गोल्ड मेडल जीतकर आऊंगी। उन्होंने प्रैक्टिस में अपनी पूरी हिम्मत और ताकत झोक दी। आखिर वो दिन आ ही गया  जब डॉ तृप्ति सिंह 20 साल बाद 20 दिन की प्रैक्टिस मात्र करके राष्ट्रीय स्तर के प्रतिभागियों के साथ कॉम्पटेट करने के लिए अपने पैर में कांटो वाली स्पाइक पहनकर खड़ी थी, 100 मीटर बाधा दौड़ 100 मीटर की दूरी में 84 सेंटीमीटर की 10 हर्डल बाधा के रूप में रखी हुई थी।  जिसको डॉ तृप्ति सिंह को दौड़ते हुए  84 सेंटीमीटर ऊपर जंप करके अंत में अपने लक्ष्य तक पहुंचना था। डॉ तृप्ति सिंह ने इस ना मुमकिन से लग रहे लक्ष्य में जी जान से भाग लिया और अपने लक्ष्य को पाया भी। अब नेशनल गोल्ड मेडल उनकी शोभा बढ़ा रहा था और सालो से दिल में दबे अरमान आंखों में आंसू बनकर उनके चेहरे का सहारा लेते हुए बूंद- बूंद रूप में उस गोल्ड मेडल के ऊपर गिर रहे थे मानो कह रहे हो आखिर मैंने तुमको पा ही लिया।    

जीत का जुनून

जीत का ज़नूनू डॉ तृप्ति में बचपन से था फील्ड चाहे कोई भी हो। पढाई ,उच्च स्तरीय शिक्षा, खेल के मैदान और घर हर जगह उन्होंने जीत का परचम लहराया। घर वालों की इच्छा अनुसार पढाई लिखे में मन लगा कर , उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त कर डॉक्ट्रेट की डिग्री तो हासिल की ही साथ में अपनी इच्छाओ के साथ भी पूरा न्याय किया। 100 मीटर की बाधा दौड़ में राष्ट्रीय गोल्ड मेडल जीतने के बाद से राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मेडल्स पाने का सिलसिला लगातार ज़ारी है।

नेशनल ही नहीं इंटरनेशनल गेम में भी झंडे गाड़े

दिसंबर 2019 में मलेशिया के कोचिन शहर में होने वाली एशियाड मीट के लिए डॉ. तृप्ति सिंह का सिलेक्शन हुआ। अब उनका दिल विदेशी धरती पर अपना राष्ट्रगान सुनने के लिए मचल रहा था। प्रतियोगिता के लिए उन्होंने स्वयं को तैयार किया। ना सिर्फ अपना बल्कि देश वासियों का सपना भी पूरा किया। मलेशिया की धरती पर भारत माता के झंडे को डॉ. तृप्ति सिंह ने फहरा  दिया था। सभी को गर्व हो रहा था अपने देश की बेटी पर , भारत वापस आने पर सभी दिल खोल कर उनका स्वागत किया।  पुरुस्कारो और सम्मान का ताँता लग गया। 

सेवा भाव

कोरोना काल में जब पूरा विश्व घर मेंइन बंद पड़ा था उस समय भी डॉ तृप्ति सभी में पॉजिटिव एनर्जी का संचार करती रही।  फेसबुक लाइव के माध्यम से लोगो को योग सिखाया, लाखों की संख्या में लोग रोज़ डॉ तृप्ति के साथ जुड़ कर योग करते थे। डॉ तृप्ति एसिड अटैक से पीड़ित महिलाओं के लिए भी लगातार काम कर रही है। इनका सपना इन्हे मैन स्ट्रीम से जोड़ने का है। 

डॉ तृप्ति - मेरा जन्म ही खेल और खेल की शिक्षा में उपलब्धियां अर्जित करने के लिए हुआ था ऐसा मैं महसूस तब भी करती थी और आज भी करती हूं खेल जरूर छूट गया था लेकिन खेलने का एहसास हमेशा मेरे सीने में धड़कन बनकर धड़कता रहता था। बचपन से ही हमने खेलना शुरू किया था और इंटर में पहुंचते-पहुंचते मैं बास्केटबॉल और एथलेटिक्स में राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बन चुकी थी।

फोकस हर लाइफ - ब्रेक के बाद फिर से शुरुवात करना कितना कठिन रहा ?

डॉ तृप्ति - ब्रेक के बाद फिर से शुरुआत करना बहुत ही कठिन था एक तरफ 20 साल का गैप, लेकिन बचपन की खेलने की तड़प अपने खेल के प्रति समर्पण और कुछ पाने का पागल पन इस ज़ज्बे ने सारी कठिनाइयों से दूर कर दिया।

फोकस हर लाइफ - सिर्फ २० दिन की प्रैक्टिस से गोल्ड मैडल के लिए कम्पेटेट करते हुए मन में क्या चल रहा था ?

डॉ तृप्ति - खेल की प्रैक्टिस मेरी करीब 23 साल की थी,सीने में खेलने की आग अभी बुझी नहीं थी जुनून और जज्बा वहीं था।  इसलिए 20 दिन में मैंने सारी तयारी पूरे जोश के साथ पूरी की , मेडल जीतने की तड़प ही मन में सुलग रही थी।

फोकस हर लाइफ - नेशनल गेम को ज्यादा टफ मानती है या इंटरनेशनल को ?

डॉ तृप्ति - देखिए गेम नेशनल हो या इंटरनेशनल गेम तो सारे ही टफ  होते हैं लेकिन यदि प्रैक्टिस दिल लगाकर की गई है, पूरे समर्पण भाव से तो कोई भी कंपटीशन टफ नहीं होता चाहे वह खेल का मैदान हो या चाहे जिंदगी का मैदान।

फोकस हर लाइफ - आपको कितनी उम्मीद थी की आप इंटरनेशनल मैडल जीत पाएंगी ?

डॉ तृप्ति - उम्मीद नहीं अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा था। खेल के मैदान पर मैं पूरे भरोसे के साथ उतरी थी क्योंकि मेरी प्रैक्टिस कंप्लीट थी और मुझे पूरा भरोसा था कि गोल्ड मेडल ही जीतूंगी साथ ही देशवासियों की दुआओं और ऊपर वाले के आशीर्वाद से मै देशवासियों के भरोसे पर मैं खड़ी उतरी और गोल्ड मेडल जीता,मलेशिया की धरती पर गोल्ड मेडल जीतने के बाद जब भारत का तिरंगा विदेशों की धरती पर लहराया तो आंखों से खुशी के आंसू छलक आए। 

फोकस हर लाइफ -  अपनी सफलता का श्रेय किसे देती हैं ?

डॉ तृप्ति - अपनी सफलता का श्रेय मैं 130 करोड़ देशवासियों की दुआओं को देती हूं जिनकी दुआओं और आशीर्वाद से मैंने यह उपलब्धि अर्जित की।

फोकस हर लाइफ -  अपनी बेटी को क्या बनाना चाहती है ?

डॉ तृप्ति - अपनी बेटी को जिंदगी में एक सफल संस्कारित एक इंसान बनाना चाहती हूं

फोकस हर लाइफ - विमेंस डे पर महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी ?

डॉ तृप्ति - महिलाओं से यही कहना चाहूंगी कि अपना सम्मान और स्वाभिमान को जिंदा रखते हुए अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करें। किसी भी चीज की कोई उम्र नहीं होती उम्र से अनुभवों का क्या संबंध , सिर्फ इतना जानो खुद पर यकीन रखने वाले लोग अपने हाथ से सूरत तोड़कर जमीन पर गिराने का दम रखते हैं। 

फोकस हर लाइफ - अब  आप के आगे और क्या गोल्स हैं ?

डॉ तृप्ति - आगे का गोल मेरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतना है और वहां से आने के बाद झुग्गी झोपड़ी में निवास करने वाले गरीब बच्चों को इंटरनेशनल प्लेटफार्म पर पहुंचाने का प्रयास करूंगी, और एसिड अटैक की शिकार महिलाएं बहन बेटियों को योग प्राणायाम एक्सरसाइज के माध्यम से शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाना है ताकि वह समाज में अपने आप को स्थापित कर सकें।

डॉ तृप्ति फोकस हर लाइफ से बात करने के लिए आप का बहुत बहुत ध्यानवाद , हम आशा करते हैं आप नित नए कीर्तिमान गढ़ती रहे।