नवरात्रि स्पेशल: ये कौन शिल्पकार है
सृजन कर्ता मां की छवि को साकार करता शिल्पकार,देता है मां की प्रतिमा को आकार आइए जानते है एक शिल्पकार के मन के उदगार..
फीचर्स डेस्क।चैत्र नवरात्र के समाप्त होते ही मूर्तिकार पुनः शारदीय नवरात्र की मूर्ति तैयार करने में जुट जाते हैं। धीरे धीरे अपने कुशल कारीगरी का परिचय देते हैं और मिट्टी में प्राण भरते हैं।जाने कितनी बार अपनी कला की कसौटी पर , स्वयं द्वारा निर्मित मूर्ति को जांचते / परखते हैं और तब जाकर कहीं संतुष्ट होते हैं।
जन्मदात्री के छवि को साकार रूप – रंग प्रदान करना आसान नहीं है, क्योंकि मां सृजन करती है,सृष्टि का विस्तार करती है।रक्त के एक – एक बूंद से संतान का पोषण करती है , गर्भनाल से शिशु को पोषित करती है।
जब एक मूर्तिकार अपनी कला को जीवंत करने के लिए, अनथक प्रयास करता है, तो हम क्यूं अपने गर्भस्थ कन्या भ्रूण को नष्ट करते हैं ?
जबकि भलीभांति जानते हैं कि बिना शक्ति के शिव भी शव के सदृश हैं। नवरात्र में कन्या पूजते हैं और नौ दिन अलग अलग रूपों की आराधना करते हैं।लेकिन शक्ति के निहितार्थ को नही समझ पाते हैं और सृजन के स्रोत को समाप्त कर देते हैं। एक स्त्री जब गर्भ धारण करती है तो उसकी मनःस्थिति एकदम अलग होती है।वह अपने आस – पास आनंद से परिपूर्ण संसार का निर्माण कर लेती है। परंतु सोचिए ! जब उसके गर्भ में पल रही शक्तिस्वरूपा कन्या को जनमने से पूर्व ही नष्ट कर दिया जाता है, तो उसके रोम –रोम से निकली आह ब्रह्मांड में करुण क्रंदन बन गूंजती है। त्रिलोक में व्याप्त मातृशक्ति उस करुण पुकार पर कालरात्रि का रूप धारण करती है और किसी ना किसी रूप में दंड प्रदान करती हैं।
आज उस सर्वोच्च शक्ति के सामने नतमस्तक हूं। अक्षम्य है अपराध फिर भी क्षमाप्रार्थी हूं। हे मां ! समस्त संसार को मातृ हृदय को समझने की शक्ति प्रदान करें..
मूर्तिकार के अंतर्मन के अथक परिश्रम से निर्मित मूर्ति की तरह कन्या का जन्म सृष्टि की शोभा को बढ़ाए।
तो आइए शक्ति को शिल्पी के दृष्टिकोण से देखें........
"हाथों से कोमल थाप देकर मिट्टी के लौंदे को
मूरत में ढालता है,मूर्तिकार हथेलियों के सांचे
में मां की प्रतिमा गढ़ता है।
माटी की आकृति को मनचाहे रंगों से सजाता है।
संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त वात्सल्य मां के मुखमंडल
पर दर्शाता है।
कालरात्रि की सघन कालिमा का आंजन
मां के नेत्रों में आंजता है।
वह कुशल शिल्पकार ! दिग – दिगंत में व्याप्त
रंग श्रीचरणों में लेपित करता है।
त्रिलोक में झरते अनुराग को आंचल में भरता है।
त्रिदेव की समस्त शक्तियां माता के दिव्यास्त्र
रूप में प्रतिष्ठित करता है।
विभिन्न राग –रागिनियों को मां के नुपुर ध्वनि में झंकृत करता है।
वह निश्छल चित्रकार ! धरती की हरितिमा से
देवी के वस्त्रों को सज्जित करता है।
सृष्टि में कुसुमित पुष्पों का मां को आभूषण पहनाता है। सूरज की लालिमा हथेलियों में उकेरता है।
वह अनुरागी चितेरा ! हृदय के शुभ भावों को मां
की मोहक मुस्कान में भरता है। भक्ति की शक्ति से मां के उर में प्राण फूंकता है।
वह कर्मसाधक! स्वयं को विस्मृत कर जगजननी को आकार देता है।"
इनपुट सोर्स: मंजुला चौधरी