व्यंग : बेवफाई और समाज सेवा !

व्यंग : बेवफाई और समाज सेवा !

फीचर्स डेस्क। बेवफाई बहुत बड़ा गुण है। किसी आम इंसान के वश की बात नहीं। ये एक प्रकार का वो हथियार है जो ऊपरवाला सबके नसीब में नहीं लिखता। हालांकि इस तरह की समाज सेवा करने की रूचि लगभग हर कलियुगी पुरुष / स्त्री  की रहती है। मतलब साफ है ज़ब खुद सफल नहीं हो पाते तो दूसरों को जो उस क्षेत्र में ऊँचे से ऊँचा मुकाम पा चुके हैं को गरियाते दिख सकते हैं। चलिए फिर आते हैं ये समाज सेवा से कैसे जुड़ा हैं। अरे भई ज़ब कोई पुरुष / स्त्री किसी दूसरे पुरुष / स्त्री को अत्यधिक पीड़ा में देखता है तो उससे रहा नहीं जाता और फिर अपना घर परिवार बच्चे सभी की चिंता किये बिना इस समाज सेवा नामक आग में कूद पड़ता / पड़ती  है और फिर हर तरह की जिल्ल्त बदनामी सब ढोता हुआ यह धर्म निभाता / निभाती रहता है ! इस कर्तव्य पथ पर कई अड़चने आती हैं.... कई बार घर जमीन तक बिकने की नौबत आ जाती हैं पर इस तरह की समाज सेवा का संकल्प लिए पुरुष / स्त्री को कोई भी अड़चन डिगा नहीं पाती और वह अनवरत अपने कर्म में निष्ठा पूर्वक लगा / लगी ही रहता है।

बेवफाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य में अक्सर अड़चन बनती / बनता है उस कर्मपथ पर अग्रसर महिला /पुरुष का / की पति या पत्नी... पर वो पति /  पत्नी इस संवेदना को तनिक भी समझने का अगर प्रयास करे तो कभी अड़चन न बन मार्ग प्रसश्त ही करेगा क्योंकि तब वो अपने पति / पत्नी के कार्य का महत्व समझ सकेगा।

बेवफाई जैसे कृत्य की महत्ता ऐसे भी समझी जा सकती है की माननीय उच्चतम न्यायालय को भी हस्तक्षेप करना पड़ा और नियमों में संशोधन करके प्रस्तुत करना पड़ा। माननीय न्यायालय ने साफ कह दिया है की अगर कोई पुरुष / स्त्री किसी के प्रेम की पीड़ा को समझते हुए उसको उसके प्रेम में सहयोग देते हैं। तो उस पुरुष / स्त्री के पति या पत्नी को विरोध नहीं करना चाहिए ये न्याय संगत हैं और पीड़ित व्यक्ति न्यायालय की शरण ले सकता है और न्यायालय भी ईश्वर द्वारा प्रदत्त पर पीड़ा उद्धारक संघ में बाधा न ही बनेगा और न ही बनने देगा और स्त्री पक्ष को ये अनुमति देता है कि ज़ब भी उसका उद्धारक मुकरने का प्रयास करे या फिर उसकी पीड़ा समाप्त होने पर किसी अन्य की पीड़ा के बारे में रूचि लेने लगे उस वक़्त वो उसे मी टू नामक चल रहे अभियान के तहत न्यायालय तक ला सकती है और उसका न्याय किया जायगा।

सच इस प्रकार की समाज सेवा की सपथ खाने वाले सेवक में त्याग की भावना कूट कूट कर भरी ही होनी चाहिए बिना त्याग अपनी पत्नी और बच्चे की चिंता में डूबे रहने वाले प्राणी के लिए ये पथ बहुत ही कठिन है। परिवार के प्रति विरक्ति रखने वाला व्यक्ति ही इस प्रकार की सेवा कर सकता है। अतः मात्र दूसरों को देखकर ही इस आग में नहीं कूदना चाहिए क्योंकि ऐसा करने वाला व्यक्ति न घर का रहता है न घाट का।

इनपुट सोर्स : सीमा "मधुरिमा", लखनऊ।