संस्मरण:बारिश का मौसम 

नौकरी की मजबूरी थी इसलिए  जाना  पड़ा । यहाँ आए हुए एक हफ्ता ही हुआ था ।क्वार्टर ना मिलने के कारण रोज बस से आना -जाना करती थी। बारिश का मौसम था। चार -पाँच दिनो से मुसलाधार बारिश हो रही थी। 8जुलाई की सुबह जब मैं स्कूल आई तो .......

संस्मरण:बारिश का मौसम 

फीचर्स डेस्क। बारिश का मौसम आते ही न  जाने कितनी खट्टी-मीठी यादें  ताजी हो जाती हैं।बारिश के मौसम का एक ऐसा ही संस्मरण आप सब के साथ साझा कर रही

यह घटना जुलाई 2001की है।30 जून को जब मैं अपनी कक्षा में पढ़ा रही थी तो प्रधानाचार्य ने मुझे ऑफ़िस मे बुलवाया और कहा कि डी ए वी क्षेत्रिय निर्देशक का फ़ोन आया है आप कल सुबह समलेश्वरी डी ए वी जाकर वहाँ नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर करें क्योंकि आपका तबादला वहाँ हो गया है। मैं आश्चर्य हो गई कि यह क्या । परन्तु नौकरी की मजबूरी थी इसलिए  जाना  पड़ा । यहाँ आए हुए एक हफ्ता ही हुआ था ।क्वार्टर ना मिलने के कारण रोज बस से आना -जाना करती थी। बारिश का मौसम था। चार -पाँच दिनो से मुसलाधार बारिश हो रही थी। 8जुलाई की सुबह जब मैं स्कूल आई तो सब कुछ सामान्य था। बारिश हो रही थी। रास्ते में पड़ने वाली नदी में पानी भरा था।जब दो बजे मैं स्कूल से घर वापस जाने के लिये निकली तो बस स्टैंड में पता चला झारसुगुड़ा की तरफ जाने के सारे रास्ते बन्द हैं। नदी में बाढ आ गाई थी।पुल पर रेल की पटरी पर पानी भर गया था।मैं इधर- उधर भटकती रही कि किसी तरह घर पहुंच जाऊँ। एक गाड़ी वाला मुश्किल से राजी  हुआ पर पुल के पास बाढ का भयानक रूप देख हमें वहीं छोड़ कर भाग गया।एम सी एल के कुछ आफीसर निरिक्षण के लिये आए थे। उनकी मदद से वापस ब्रजराज्णगर आई।शाम के साढ़े सात बज गए थे।भूखी प्यासी बारिश मे भीगते हुए।फिर पापा के एक मुवक्किल का ध्यान आया। उनकी पत्नी और बेटे भी घर आते थे।उनकी दुकान गई । मेरी हालत देख भैया घर ले गए । उनकी पत्नी ने सूखे कपड़े दिये और गरम चाय दी। चाची ने लैंडलाइन पे माँ को मेरे सुरक्षित होने की सूचना दी। तब मोबाईल भी नहीं होते थे पास में 3/4दिन बाद जब पानी उतरा तब घर पहुंची। मेरा 4 साल का बेटा कहता मम्मी बाढ मे फँस गई। आज भी बारिश के मौसम मे वो दिन याद आता है तो काँप उठती हुँ उस बाढ की भयानकता को याद कर।

इनपुट सोर्स - सावित्री मिश्रा,मेंबर फोकस साहित्य