ईर्ष्या का जहर

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब आंचल नौकरी के लिए हाथ पैर मार रही थी तो अभिनव ने सुझाव दिया कि उसी के क्लीनिक में साथ वाले कमरे में अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दे। परंतु आंचल को एक छोटे से क्लीनिक में बैठना कतई पसंद नहीं था.....

ईर्ष्या का जहर


फीचर्स डेस्क।आंचल और अभिनव डॉक्टर थे। अभिनव एक मशहूर कुशल डॉक्टर था। उसकी अपने शहर में अच्छी प्रैक्टिस चल रही थी। अभिनव आंचल से विवाह कर बहुत खुश था। परंतु आंचल को नया शहर, नया माहौल कुछ रास नहीं आता था। अंचल को अभिनव की बढ़ती शोहरत से भी ईर्ष्या होती थी।

आंचल ने विवाह के उपरांत पीजी डिप्लोमा में एडमिशन ले लिया। वह अभिनव से भी अच्छी डॉक्टर बनना चाहती थी। अभिनव से वह कैरियर को लेकर अक्सर झगड़ा करती थी। आंचल को अभिनव के साधारण जीवन जीने वाले माता पिता बिल्कुल भी नहीं भाते थे।

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब आंचल नौकरी के लिए हाथ पैर मार रही थी तो अभिनव ने सुझाव दिया कि उसी के क्लीनिक में साथ वाले कमरे में अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दे। परंतु आंचल को एक छोटे से क्लीनिक में बैठना कतई पसंद नहीं था।
     

आकांक्षी होने के साथ-साथ आंचल को पैसे और शोहरत की भी भूख बहुत ज्यादा थी। मैं अभिनव को ताना मारने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देती। अभिनव शिक्षण झगड़ा करते रहते थे। एक बार की बात है अभिनव ने अपने क्लीनिक में कुछ बदलाव किया और 1/2 बेड की व्यवस्था की जिससे इमरजेंसी में पेशेंट को एडमिट किया जा सके।
     

आंचल ने कटाक्ष करते हुए कहा,"दो बेड लगाने से क्या कमा लोगे? जिंदगी में कुछ करना है तो बड़ा अस्पताल बनाओ!"
अपने लिए तो क्लीनिक बना लिया ,मेरे कैरियर के लिए कुछ भी नहीं किया।" अभिनव अपना मन मार कर रह जाता। इतना पैसा कहां से लाए, आता पिता ने बहुत मेहनत से पैसा जोड़कर अभिनव को उच्च शिक्षा दिलवाई थी। उनके पास भी इतना पैसा नहीं था कि वह अभिनव को बहुत बड़ा अस्पताल बनवा कर दे।पति पत्नी में ही कैरियर को लेकर इतना ईर्ष्या भाव!!!!!अपने पति की बढ़ती शोहरत से कभी खुश नहीं होती थी। हमेशा ताना मारती"तुमसे ज्यादा  पैसा तो मैं कमा लूंगी!"

अभिनव एक समझदार व्यक्ति था वह सीढ़ी दर सीढ़ी संतोष पूर्वक आगे बढ़ना चाहता था। अपने पति से ईर्ष्या भाव के कारण आंचल ने कभी भी उसके साथ मिलकर प्रेक्टिस नहीं की। एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी। ड्यूटी होने पर अभिनव पर चिल्लाती "तो अपना अस्पताल है नहीं मुझे तो रात को भी नौकरी करनी पड़ती है।"अभिनव समझ नहीं पाता कि वास्तव में आंचल क्या चाहती है?

दोनों के रिश्ते में खटास रहने लगी। अभिनय वह अपनी तरफ से प्रयास करता है कि उसका वैवाहिक जीवन ठीक से चले। अभिनव का शहर में नाम होने से आंचल बहुत परेशान रहने लगी और धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार होने लगी।

सच में ईर्ष्या ऐसा भाव है जो इंसान को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है। अपने दुख से दुखी नहीं होता अपितु दूसरे के सुख और सफलता से परेशान होता है।  ईर्ष्या के स्वभाव वाला व्यक्ति हमेशा अपना ही नुकसान करता है जो उसके पास है उसको तो देखता ही नहीं है। उसे हमेशा तुलना करनी होती है।

इनपुट सोर्स -रेखा मित्तल
लेखिका