महालक्ष्मी व्रत के दिन करें हाथी की पूजा, धन की नहीं होगी कोई कमी, पढ़ें क्या कहते हैं ज्योतिष एक्सपर्ट

गांधारी की बात सुन कर श्री वेद व्यास जी कहने लगे कि 'हम आपको एक ऐसे व्रत का पूजन व वर्णन कहते हैं जिससे सदा लक्ष्मीजी का निवास होकर सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। यह श्री महालक्ष्मीजी का व्रत है, इसे गजलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है...

महालक्ष्मी व्रत के दिन करें हाथी की पूजा, धन की नहीं होगी कोई कमी, पढ़ें क्या कहते हैं ज्योतिष एक्सपर्ट

फीचर्स डेस्क। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी व्रत किया जाता है। इस बार गज महालक्ष्मी (हाथी पूजा) 2 अक्टूबर 2023 को है। महालक्ष्मी जी के आठ स्वरूपों का वर्णन शास्त्रों में किया गया है। इस दिन माता लक्ष्मी जी के गजलक्ष्मी स्वरूप (हाथी) की पूजा की जाती है।

महालक्ष्मी या हाथी पूजा केसे करें ?

प्रथम तो प्रात:काल स्नान से पहले हरी दूब (दूर्वा) को अपने पूरे शरीर पर हल्के से घिसें। स्नान से निवृ्त होकर व्रत का संकल्प करें। इस दिन व्रत रखकर संध्या के समय लकड़ी की चौकी पर सफेद रेशमी वस्त्र को बिछाएं। त्तपक्षत देवी लक्ष्मी की सवारी हाथी को स्थापित करें। इसके बाद एक कलश पर अखंड ज्योति स्थापित करें, तथा सोलह प्रकार से पूजा करें। मेवा, मिठाई, सफेद दूध की बर्फी आदि का भोग लगाएं।  पूजन सामग्री में चंदन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल रखें।  नए कच्चे पीले सूत के 16-16 की संख्या में 16 बार सागड़े रखें। पीले कच्चे सूत में 16 गांठे लगाकर लक्ष्मी जी को अर्पित करें। इसके बाद महालक्ष्मी पर सोलह श्रंगार चढ़ाएं। मीठे मोटे रोट का भोग लगाएं। पूजा के समय ध्यान रखें की देवी के हाथी का मुख उत्तर दिशा में हो व सभी व्रतीधारी पश्चिम दिशा की ओर मुंख कर पूजा करें। चंद्रमा के निकलने पर तारों को अर्घ दें व उत्तरमुखी होकर पति-पत्नी एक–दूसरे का हाथ थाम कर देवी महालक्ष्मी को दीपावली पर अपने घर आने के लिए तीन बार बोलते हुये निमंत्रण करें।  इसके बाद देवी पर चढ़ाई 16 वस्तुएं चुनरी, सिंदूर, लिपिस्टिक, रिबन, कंघी, शीशा, बिछिया, नाक की नथ, फल, मिठाई, मेवा, लौंग, इलायची, वस्त्र, रुमाल श्रीफल इत्यादि किसी सुहागन नारी,ब्राहमण की स्त्री (पत्नी) अर्थात ब्राह्मणी को दान कर दें।  पूजा के पश्चात 16 गांठ लगाएं हुए पीले धागे को घर का हर सदस्य ब्राह्मणी द्वारा अपनी कलाई पर बंधवा ले।

महालक्ष्मी (हाथी) पूजा व्रत कथा

एक समय की बात हे महर्षि श्री वेदव्यास जी हस्तिनापुर पधारे। उनका आगमन सुन महाराज धृतराष्ट्र उनको आदर सहित राजमहल में ले गए। स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान कर उनका पूजन किया।  श्री व्यास जी से माता कुंती तथा गांधारी ने हाथ जोड़कर प्रश्न किया- हे महामुने! आप त्रिकालदर्शी हैं आपसे हमारी प्रार्थना है कि आप हमको कोई ऐसा सरल व्रत तथा पूजन बताएं जिससे हमारा राज्यलक्ष्मी, सुख-संपत्ति, पुत्र-पोत्रादि व परिवार सुखी रहें। गांधारी की बात सुन कर श्री वेद व्यास जी कहने लगे कि 'हम आपको एक ऐसे व्रत का पूजन व वर्णन कहते हैं जिससे सदा लक्ष्मीजी का निवास होकर सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। यह श्री महालक्ष्मीजी का व्रत है, इसे गजलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। जिसे प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी को विधिवत किया जाता है।'  इस दिन स्नान करके 16 सूत के धागों का डोरा बनाएं, उसमें 16 गांठ लगाएं, हल्दी से पीला करें। आश्विन (क्वांर) मॉस की कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन उपवास रखकर मिट्टी के हाथी पर श्री महालक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें। इस प्रकार श्रद्धा-भक्ति सहित महालक्ष्मीजी का व्रत, पूजन करने से आप लोगों की राज्यलक्ष्मी में सदा अभिवृद्धि होती रहेगी। इस प्रकार व्रत का विधान बताकर श्री वेदव्यासजी अपने आश्रम को प्रस्थान कर गए। इधर समयानुसार भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से गांधारी तथा कुंती अपने-अपने महलों में नगर की स्त्रियों सहित व्रत का आरंभ करने लगीं। इस प्रकार 15 दिन बीत गए।

16वें दिन आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन गांधारी ने नगर की सभी प्रतिष्ठित महिलाओं को पूजन के लिए अपने महल में बुलवा लिया। माता कुंती के घर कोई भी महिला पूजन के लिए नहीं आई। माता कुंती को भी गांधारी ने नहीं बुलाया। ऐसा करने से माता कुंती ने अपना बड़ा अपमान समझा। उन्होंने पूजन की कोई तैयारी नहीं की एवं उदास होकर बैठ गईं। जब पांचों पांडव युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव महल में आए तो कुंती को उदास देखकर पूछा- हे माता! आप इस प्रकार उदास क्यों हैं? आपने पूजन की तैयारी क्यों नहीं की?'

तब माता कुंती ने कहा- 'हे पुत्र! आज महालक्ष्मीजी के व्रत का उत्सव गांधारी के महल में मनाया जा रहा है।

उन्होंने नगर की समस्त महिलाओं को बुला लिया और उसके 100 पुत्रों ने मिट्टी का एक विशाल हाथी बनाया जिस कारण सभी महिलाएं उस बड़े हाथी का पूजन करने के लिए गांधारी के यहां चली गईं, लेकिन मेरे यहां नहीं आईं।  यह सुनकर अर्जुन ने कहा- 'हे माता! आप पूजन की तैयारी करें और नगर में बुलावा लगवा दें कि हमारे यहां स्वर्ग के ऐरावत हाथी की पूजन होगी।'

इधर माता कुंती ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और पूजा की विशाल तैयारी होने लगी। उधर अर्जुन ने अपने बाण से स्वर्ग से ऐरावत हाथी को बुला लिया। इधर सारे नगर में शोर मच गया कि कुंती के महल में स्वर्ग से इन्द्र का ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतारकर पूजा जाएगा।

समाचार को सुनकर नगर के सभी नर-नारी, बालक एवं वृद्धों की भीड़ एकत्र होने लगी। उधर गांधारी के महल में हलचल मच गई। वहां एकत्र हुईं सभी महिलाएं अपनी-अपनी थालियां लेकर कुंती के महल की ओर जाने लगीं। देखते ही देखते कुंती का सारा महल ठसाठस भर गया।

माता कुंती ने ऐरावत को खड़ा करने हेतु अनेक रंगों के चौक पुरवाकर नवीन रेशमी वस्त्र बिछवा दिए। नगरवासी स्वागत की तैयारी में फूलमाला, अबीर, गुलाल, केशर हाथों में लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे। जब स्वर्ग से ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतरने लगा तो उसके आभूषणों की ध्वनि गूंजने लगी। ऐरावत के दर्शन होते ही जय-जयकार के नारे लगने लगे। सायंकाल के समय इन्द्र का भेजा हुआ हाथी ऐरावत माता कुंती के भवन के चौक में उतर आया, तब सब नर-नारियों ने पुष्प-माला, अबीर, गुलाल, केशर आदि सुगंधित पदार्थ चढ़ाकर उसका स्वागत किया।  राज पुरोहित द्वारा ऐरावत पर महालक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करके वेद मंत्रोच्चारण द्वारा पूजन किया गया। नगरवासियों ने भी महालक्ष्मी पूजन किया। फिर अनेक प्रकार के पकवान लेकर ऐरावत को खिलाए और यमुना का जल उसे पिलाया गया। राज्य पुरोहित द्वारा स्वस्ति वाचन करके महिलाओं द्वारा महालक्ष्मी का पूजन कराया गया।

16 गांठों वाला डोरा लक्ष्मीजी को चढ़ाकर अपने-अपने हाथों में बांध लिया। ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। दक्षिणा के रूप में स्वर्ण आभूषण, वस्त्र आदि दिया गया। तत्पश्चात महिलाओं ने मिलकर मधुर संगीत के साथ भजन कीर्तन कर संपूर्ण रात्रि महालक्ष्मी व्रत का जागरण किया।  दूसरे दिन प्रात: राज पुरोहित द्वारा वेद मंत्रोच्चार के साथ जलाशय में महालक्ष्मीजी की मूर्ति का विसर्जन किया गया। फिर ऐरावत को बिदाकर इन्द्रलोक को भेज दिया। इस प्रकार जो भी स्त्री श्री महालक्ष्मीजी का विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करती हैं, उनके घर धन-धान्य से पूर्ण रहते हैं तथा उनके घर में महालक्ष्मीजी सदा निवास करती हैं।

महालक्ष्मीजी की यह स्तुति अवश्य बोलें-

'महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।

हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे।।'

और इस दिन सभी इस मन्त्र का जप करें|

मंत्र:

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गजलक्ष्म्यै नमः॥

इनपुट सोर्स : ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखार्विंद विनोद सोनी, भोपाल सिटी।