बच्चे जब स्कूल-कोचिंग से आयें तो संवाद क्यो ज़रूरी, जानें मनोचिकित्सक डॉक्टर रश्मि मोघे से

डॉक्टर रश्मि मोघे हिरवे कहती हैं कि टीवी, इंटरनेट, मोबाइल के युग में बच्चे सोशल मीडिया की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं। वह टीवी के कार्टून कैरेक्टर्स को ही अपना आदर्श मानने लगे हैं और सिनचैन की तरह ही बात करते हैं, उनके बर्ताव में सामाजिक मान्यताएं खत्म होती जा रही हैं। ऐसे में अभिभावकों....

बच्चे जब स्कूल-कोचिंग से आयें तो संवाद क्यो ज़रूरी, जानें मनोचिकित्सक डॉक्टर रश्मि मोघे से

हेल्थ  डेस्क। बच्चों को समझने के लिए उनके साथ संवाद जरूरी है। संवादहीनता किसी भी रिश्ते में दूरियां बढ़ा सकती है। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चे से संवाद स्थापित रखें। दरअसल, बच्चों से बात करने के लिए उनके मन को समझना सबसे ज्यादा जरूरी है। बच्चों के साथ संवाद किसी भी उम्र में स्थापित नहीं किया जा सकता है, इसके लिए जरूरी है कि बच्चे से पहली मुलाकात से ही संवाद स्थापित करें। यह सही है कि छोटा बच्चा आपकी बात को हाव-भाव से समझेगा तो बड़ा होकर आपसे बात करेगा।

स्कूल से आने पर उनसे बात कीजिये

माता पिता बच्चों को खुद से कटने ना दें। आज की तारीख में रेगुलर बातचीत ही वो खिड़की है जिससे हम बच्चों के जीवन और मन में झांक सकते हैं। बच्चे जब स्कूल से आते हैं तो उनसे बात कीजिये, अगर उस वक्त थके हों तो बाद में शाम को उनसे बात कीजिये, हल्के फुल्के ढंग से उनसे अलग अलग विषयों पर बात कीजिये (बात करने की जबरदस्ती न करें और न ही नकारात्मक टिप्पणियां करें) उनसे बातचीत का एक रास्ता सदैव खुला रखें और ये आदत बचपन से ही डालें तो आप अपने बच्चे की दुनिया से कटेंगे नही और उनके जीवन मे क्या चल रहा है उसका अंदाज़ आपको रहेगा। वहीं कभी किसी मुद्दे या कैरियर चॉइस आदि हेतु काउंसलिंग या परेशानी हेतु इलाज की ज़रूरत भी पड़ी तो भी आप मनोचिकित्सक और काउंसलर को ठीक ठीक जानकारी दे पाएंगे।

बच्चों से दोस्ती तो करें पर दायरे में

डॉक्टर रश्मि मोघे हिरवे कहती हैं कि टीवी, इंटरनेट, मोबाइल के युग में बच्चे सोशल मीडिया की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं। वह टीवी के कार्टून कैरेक्टर्स को ही अपना आदर्श मानने लगे हैं और सिनचैन की तरह ही बात करते हैं, उनके बर्ताव में सामाजिक मान्यताएं खत्म होती जा रही हैं। ऐसे में अभिभावकों का काम ज्यादा मुश्किल हो गया है। बच्चों से दोस्ती तो करें पर उसके दायरे तय होने चाहिए। दोस्ती में आदर भाव होना बहुत जरूरी है। अभिभावक और बच्चों के बीच दोस्ती में अभिभावक को इंचार्ज होना जरूरी है। क्योंकि, इस रिश्ते में अभिभावक एक दोस्त के साथ ही मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाएंगे। वह बच्चों की गलती पर उन्हें सजा भी देंगे, पर वह इसके बावजूद उनके साथ खड़े होंगे।

बच्चे के स्कूल कोचिंग से आने के बाद ऐसे प्रश्न पूछें

  1. आज कौन आपके साथ बैठा था?
  2. क्या आज कोई टेस्ट लिया गया था स्कूल में?
  3. आज क्या क्या पढ़ाया गया?
  4. क्या खेल खेले? क्या नया सीखा?
  5. टिफिन में बाकी बच्चे क्या लाए थे?
  6. क्या किसी को कोई सजा मिली आज?
  7. आज सबसे ज्यादा मज़ा किस चीज में आया?
  8. क्या कोई बात बुरी लगी आज तुम्हे।

क्या कहती हैं डॉ रश्मि मोघे हिरवे

बच्चे के कौन मित्र हैं, उनके क्या शौक हैं? उनके माता पिता क्या करते हैं? दोस्त कहां रहते हैं?  शिक्षकों, बस ड्राइवर, कंडक्टर आदि का व्यवहार कैसा है इस पर भी बात करें। आपके बच्चे और आप अलग अलग विश्व में ना जिएं। दोनो के बीच एक पुल अवश्य होना चाहिए।