अछूतन
फीचर्स डेस्क। नीता और राकेश की मुलाकात सोनीपत से दिल्ली रोज ऑफिस आते-जाते ट्रेन में हुआ करती थी। नीता जब पहली बार ट्रेन में गई थी तो अत्यधिक भीड़ होने के कारण उसे सीट नहीं मिल पाई और पांव में चोट के कारण खड़े रहना उसके लिए असहनीय होता जा रहा था।उसने आसपास लोगों को याचना भरी दृष्टि से देखा परंतु किसी ने भी उसे सीट नहीं दी। राकेश पिछले स्टेशन से गाड़ी में आता था और उसे कईं बाहर वहां से सीट मिल जाया करती थी। जब उसने नीता को खड़े देखा तो वह तुरंत उठ कर खड़ा हो गया और नीता को बैठने का इशारा किया। राकेश की शालीनता का नीता पर काफी प्रभाव पड़ा और वह पहली नजर में ही राकेश को अपना दिल दे बैठी। वह जब भी ऑफिस के लिए जाते हुए ट्रेन में प्रवेश करती तो उसकी नजरें राकेश को ढूंढने लगती और जैसे ही राकेश से उसकी नजरें मिलती तो वह मुस्कुरा कर अपना सर झुका लेती । गौर वर्ण राकेश के व्यवहार में काफी शालीनता थी।
अपने आकर्षक व्यक्तित्व एवं आचार व्यवहार के कारण वह किसी कुलीन घर का जान पड़ता था। राकेश हमेशा इस प्रयास में रहता कि नीता को उसके पास वाली सीट मिल जाए ताकि वे एक दूसरे के साथ थोड़ा समय बिता सकें हालांकि दोनों के बीच अधिक बात नहीं होती थी तो भी एक दूसरे के साथ मौन बैठे रहना भी दोनों को काफी भाता था। एक दिन नीता को स्टेशन पर पहुंचने में कुछ देरी हो गई। जैसे ही गर्ड ने हरी झंडी दिखायी गाड़ी ने धीरे-धीरे आगे बढ़ना आरंभ कर दिया । राकेश ने देखा नीता प्लेटफार्म पर गाड़ी की और तेजी से दौड़ रही है।। गाड़ी अभी धीमी गति में थी इसलिए नीता आखिरी डिब्बे तक पहुंचने में कामयाब हो गई और भीतर से राकेश ने दरवाजे पर खड़े होकर अपना हाथ नीता की ओर बढ़ा दिया।नीता ने भी लपक कर उसका हाथ थाम लिया और गाड़ी के भीतर प्रवेश कर गई "आपका बहुत-बहुत धन्यवाद वरना आज गाड़ी छूट जाती तो अगली गाड़ी के लिए एक घंटा प्रतीक्षा करनी पड़ती । आज ऑफिस में ऑडिट के कारण मेरा ड्यूटी पर टाइम से पहुंचना बहुत जरूरी था।" नीता ने मुस्कुराते हुए
" लेकिन आपका इस तरह दौड़ कर चलती गाड़ी में चढ़ने की कोशिश करना खतरे से खाली नहीं था। आप गिर भी सकती थी।"राकेश ने उसे समझाते हुए कहा।
" जी आगे से कभी ऐसा नहीं करूंगी।" नीता ने अपने दोनों कान पकड़कर मासूमियत से कहा तो राकेश को हंसी आ गई । इस तरह रोज की मुलाकातों से वे एक दूसरे के करीब आते चले गए। अब तो यह आलम था कि छुट्टी का दिन भी उनके लिए एक दूसरे के बगैर काटना काफी कठिन हो जाता और वह अगले दिन का बेसब्री से इंतजार करने लगते। अक्सर देखा गया है कि रोज एक साथ सफर करने वाले लोगों का आपस में एक मैत्री पूर्ण संबंध बन जाता है और वह अपने सुख दुख, जीवन के अनुभव एवं अपनी व्यक्तिगत बातें तक आपस में एक परिवार की तरह सांझा करने लगते हैं। राकेश और नीता की भी ट्रेन में काफी लोगों से जानकारी हो गई थी और उनके खामोश प्रेम का एहसास भी सब लोगों को होने लगा था। सभी को उन दोनों की जोड़ी बहुत पसंद आने लगी थी। ऐसा लगता था जैसे वे दोनों एक दूसरे के लिए बने हैं।
" यार राकेश।नीता पिछले 2 साल से इस ट्रेन में आती है। काफी अच्छी और संस्कारी लड़की जान पड़ती है। तुम दोनों विवाह क्यों नहीं कर लेते?" रोज साथ सफर करने वाले शिशिर ने राकेश से कहा। अचानक राकेश के मुस्कुराते हुए चेहरे पर एक उदासी सी छा गई लेकिन प्रत्यक्ष में उसने कुछ नहीं कहा। वह जानता था कि नीता भी उसे पसंद करने लगी है लेकिन उसके आगे विवाह प्रस्ताव रखना अभी राकेश को उचित नहीं लगा। जब तक नीता के मन की बात पता न चले तब तक वह कुछ नहीं कह सकता था । और एक दिन उसने देखा नीता गुलाबी रंग की साड़ी पहने ट्रेन में चढ़ रही है। जैसे ही उसने नीता को दिखा तो उसे देखता ही रह गया। नीता के अंदर आते ही राकेश अपनी सीट से उठकर खड़ा हो गया और नीता के पास जाकर कान में बुदबुदाया "आज तो बहुत सुंदर लग रही हो।" नीता यह सुनकर शरमा सी गई ।लेकिन वह राकेश के मुंह से कुछ और ही सुनना चाहती थी जो अभी तक राकेश कह नहीं पाया था। लेकिन आंखों के संदेश आंखें अच्छे से समझ रही थी।
उस रात सोते हुए नीता के कानों में राकेश के शब्द गूंजते रहे और वह नींद में मुस्कुराने लगती। बार-बार करवट करवट बदलते हुए वह राकेश के बारे में यह सोचती रही "कैसा लड़का है ?इतने दिन हो गए हमारी दोस्ती को। लेकिन इसने आज तक अपने प्यार का इजहार नहीं किया । लगता है पहल मुझे ही करनी होगी।" सोचते सोचते न जाने कब नीता की आंख लग गई। अगले दिन अलार्म बजने पर जब उसकी आंख खुली तो उसने निश्चय किया कि आज वह राकेश से बात करके रहेगी। वह फटाफट तैयार हुई। अपना खाना बनाकर टिफिन पैक किया और स्टेशन के लिए निकल गई। जैसे ही गाड़ी प्लेटफार्म पर रुकी तो उसने प्लेटफार्म से ही गाड़ी के भीतर झांककर राकेश को आवाज दी "राकेश जरा बाहर आओ तो। राकेश पिछले वाले स्टेशन से गाड़ी में बैठता था। दोनों आखिरी वाले डिब्बे में बैठते थे । राकेश काफी असमंजस में था लेकिन वह नीता के कहने को टाल नहीं सका और गाड़ी से उतर गया। "क्या आज तुम मेरे लिए ऑफिस थोड़ा लेट नहीं जा सकते?" नीता ने पूछा।
"हां हां क्यों नहीं। मैं ऑफिस फोन करके आधे दिन की छुट्टी ले लेता हूं। हम अगली ट्रेन से चले जाएंगे।" राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा। राकेश ने ऑफिस में फोन करके अपने लेट आने के विषय में बता दिया और फिर दोनों प्लेटफार्म पर बने एक बेंच पर जाकर बैठ गए।
कुछ देर दोनों में खामोशी पसरी रही और फिर नीता ने बोलना शुरू किया "राकेश मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं और कहीं ना कहीं मेरा दिल भी यह मानता है कि तुम भी मुझे पसंद करते हो। हम दोनों ही सरकारी नौकरी में है और मुझे लगता है कि हमें एक दूसरे से अच्छा जीवन साथी नहीं मिल सकता।" नीता ने सिर झुकाए राकेश से कहा। नीता के मुंह से यह सब सुन एक पल के लिए राकेश आश्चर्यचकित हो गया लेकिन अगले ही पल उसका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया।
"नीता तुम मेरे और मेरे परिवार के विषय में कुछ भी नहीं जानती। शादी कोई बच्चों का खेल नही है। यह दो परिवारों का मिलन होता है। ऐसा न हो कल को तुम्हें किसी कारण से अपने फैसले पर पछताना पडे़।
"नहीं राकेश। अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। मेरे माता पिता नहीं है और दूर के रिश्तेदारों का मेरे निजी फैसलों से कुछ लेना-देना नहीं। मैं अब तुमसे विवाह करके एक परिवार चाहती हूं।" कहते हुए नीता ने अपना हाथ राकेश के हाथ पर रख दिया। इसके बाद राकेश कुछ न कह पाया। कुछ दिन बाद दोनों ने अपने मित्रों की सहायता से कोर्ट में विवाह कर लिया। नीता को तो मानो जैसे दो जहान की खुशियां मिल गई। कोर्ट से वे लोग राकेश के घर आए तो राकेश की मां ने नीता का बहुत जोरदार स्वागत किया। नीता ने देखा राकेश का घर एक साधारण सी बस्ती में था लेकिन इस बात से उसको कोई फर्क नहीं पड़ता था। कुछ दिनों के लिए नीता और राकेश ने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी। विवाह से अगले दिन जब नीता सो कर उठी तो उसने देखा उसकी सास कहीं जाने के लिए तैयार हो रही थी।
"मां जी। आप कहीं जा रही है क्या?" नीता ने पांव छूते हुए पूछा।
" हां बहू मैं अपने काम पर जा रही हूं।" सास ने मुस्कुरा कर नीता के सर पर हाथ रखते हुए कहा।
"अच्छा तो आप भी कामकाजी महिला हैं। फिर तो हमारी खूब जमेगी।" नीता ने खुश होते हुए कहा। प्रत्युत्तर में नीता की सास मोन रही। लेकिन अगले ही पल नीता के ऊपर हजारों बिजलियां एक साथ गिर पड़ी जब उसने अपनी सास को एक लंबी बांस से बंधा हुआ झाड़ू ले जाते हुए देखा। उसे समझते देर न लगी कि उसकी सास एक सफाई कर्मचारी है।इस बात का पता चलते ही नीता की आंखों में आंसू आ गए। वह एक उच्चजातिय परिवार की बेटी थी । उसने कमरे के भीतर जाकर सोए हुए राकेश को झिंझोड़ना शुरु कर दिया" उठो राकेश।" नीता ने बेहद क्रोध भरे स्वर में कहा
" क्या हुआ नीता।" अचानक इस तरह नीता को बोलते देख राकेश घबराकर उठ बैठा।
" तुमने आज तक यह क्यों नहीं बताया कि तुम्हारी मां एक सफाई कर्मचारी है और तुम अनुसूचित जाति से संबंध रखते हो ?" नीता ने लगभग चीखते हुए कहा।
"नीता मैंने तुम्हें कई बार समझाया कि पहले मेरे परिवार के बारे में जान लो लेकिन तुमने हमेशा यह कहकर मना कर दिया कि मेरे लिए तुम्हें जानना ही काफी है। उसके बाद मेरी कुछ कहने कि हिम्मत ही नहीं हुई और तुम्हारा प्यार देखकर मुझे यह सब बताने की कभी जरूरत भी महसूस नहीं हुई। प्यार एक ऐसा जज्बा है जो जाति पाति, ऊंच-नीच और अमीरी गरीबी सबसे ऊपर है।"
" राकेश प्यार चाहे कुछ भी हो लेकिन शादी के समय कम से कम कुछ तो देखा जाता है। कल को मेरे सगे संबंधी सुनेंगे तो क्या कहेंगे। मैं तो अपनी रिश्तेदारों में मुंह दिखाने लायक भी ना रहूंगी। सब यही कहेंगे कि माता-पिता नहीं थे तो इस लड़की ने खानदान की इज्जत का भी ख्याल नहीं किय।" नीता ने अपनी हथेलियों से मुंह छुपा लिया।
"मेरी मां के काम से तुम्हारे खानदान की इज्जत का क्या ताल्लुक?" राकेश ने गुस्से में कहा।
" ताल्लुक क्यों नहीं? एक सफाई कर्मचारी की बहू होना कौन से सम्मान की बात है?" नीता ने रोते हुए कहा। काफी कहासुनी के बाद राकेश और नीता के बीच एक मौन सा पसर गया और फिर धीरे धीरे उनके संबंधों में एक दूरी बननी आरंभ हो गई। जिस नीता को राकेश ने प्यार की देवी समझा था वही आज समाज और दुनियादारी की बातें करने वाली एक साधारण महिला नजर आ रही थी ।नीता ने राकेश और उसकी मां से बिल्कुल बातचीत बंद कर दी।न ही वह घर पर खाना खाती और न ही कोई काम करती। सुबह उठकर चुपचाप ऑफिस के लिए निकल जाती और वही कैंटीन में ही कुछ खा लेती। वापसी में भी वह रास्ते से कुछ खाने का ले लेती। यह सब देख कर राकेश को काफी धक्का लगा। अब धीरे धीरे राकेश के लिए नीता का यह नफरत भरा लहजा सहन करना मुश्किल होता जा रहा था।
"नीता तुम पढी़ लिखी हो कर किस तरह की हरकतें कर रही हो तुम्हें मेरे घर का या मेरी मां के हाथ का बना खाना भी अच्छा नहीं लगता तो फिर यहां क्या कर रही हो?" राकेश ने गुस्से में कहा।
" हां सही कह रहे हो तुम।मुझे भी यहां नहीं रहना। मैं कल सुबह ही तुम्हारा घर छोड़ कर चली जाऊंगी।"नीता ने चिल्लाते हुए कहा। जब यह बात राकेश की मां के कानों तक पहुंची तो उन्हें गहरा सदमा लगा। अगले दिन जब नीता अपना सामान बांध रही थी तो नीता की सास ने आकर उसे रोकना चाहा। लेकिन लाख समझाने पर भी जब नीता तैयार नहीं हुई तो राकेश की मां ने कहना शुरू किया। "नीता बेटा तुम जाना चाहती हो तो जा सकती हो लेकिन जाने से पहले आज एक सच्चाई सुनती जाओ। राकेश मेरा सगा बेटा नहीं है। वह जन्म से एक उच्च जाति से संबंध रखता है। आज से 26 साल पहले मैं नगर निगम की ओर से एक पोश कॉलोनी में सड़क की सफाई का काम करती थी। वहां ऊंची सोसाइटी के लोग रहते थे। वहां की लड़कियां देर रात तक अपने पुरुष मित्रों के साथ क्लबों एवं पार्टियों में जाया करती थी।
एक दिन जब सुबह मैं वहां सफाई करने गई तो मैंने देखा कि वहीं एक शानदार मकान में रहने वाली एक आधुनिक लड़की गोद में एक नवजात शिशु को लिए अपनी मां के साथ बाहर आई और चुपके से उस बच्चे को डस्टबिन के पास फेंक गई। मुझे समझते देर न लगी कि अविवाहित होने के कारण समाज के डर से वह बच्चे को लावारिस की तरह सड़क के किनारे छोड़ गई। मैं जवानी में ही विधवा हो गई थी और मुझे मेरे पति की जगह यह नौकरी मिली थी लेकिन मेरी कोई अपनी औलाद नहीं थी। बच्चे को देखते ही कुछ कुत्ते आसपास मंडराने लगे। मैं बेहद डर गई। मुझे लगा कुछ ही देर में यह इस बच्चे को अपना ग्रास बना डालेंगे। मैंने तुरंत अपने झाड़ू से उन कुत्तों को खदेड़ा और बच्चे को गोद में ले लिया।
बच्चे को देखते ही मेरे मन में ममता उमड़ पड़ी और मैंने निश्चय किया कि मैं इस बच्चे को पालपोस कर समाज में सम्मान दिलवाऊंगी लेकिन मैं यह भूल गई कि मेरी जाति एक दिन इस बच्चे के लिए अपमान का कारण बनेगी। लेकिन नीता मैं तुमसे यह पूछती हूं कि दलित या अछूत कौन होता है? समाज में आधुनिकता के नाम पर व्यभिचार करके गंदगी फैलाने वाले लोग या सम्मान से अपनी जीविका कमाकर समाज की उस गंदगी को साफ करने वाले लोग? लोग बच्चों को अवैध कहते हैं लेकिन बच्चे अवैध नहीं होते। अवैध होते हैं मां बाप और उनके संबंध। अब फैसला तुम्हारे हाथ है।"कहकर नीता की सास जैसे ही कमरे से बाहर जाने लगी तो नीता ने उनके पैर पकड़ लिए।
"मुझे माफ कर दीजिए मां जी ।आपसे ऊंची जाति का शायद ही कोई होगा। ऊंच-नीच इंसान के कर्मों से मापी जाती है ना कि जाति से। राम तो भीलनी के झूठे बेर भी खा गए थे और मैंने अपनी मां के हाथों से बनी रोटी खाने से कैसे इंकार कर दिया।" नीता सास का हाथ पकड़ कर रोने लगी राकेश की मां ने नीता को गले से लगा लिया। कोरोना काल में जब नीता की सास को कोरोना योद्धा के सम्मान से सम्मानित किया गया तो नीता का मन गर्वित हो उठा और अपने सास के प्रति उसकी श्रद्धा और बढ़ गई।