मर्दों की बनाई बंदिशों की खुद औरतें पहरेदार हैं !

उन्हें तो शायद मुझसे कोई हमदर्दी थी ही नहीं। वही तो थी जिनके कलेजे को सबसे ठंडक पहुँची थी। क्योंकि वो ही थी जिन्होंने सुजॉय को फोन कर के कहा कि मैं घर के बाहर गई हूं। अचानक मम्मी जी मुझसे बोली, " अब पति से बिना पूछे बाहर जाएगी तो बेचारा हाथ...

मर्दों की बनाई बंदिशों की खुद औरतें पहरेदार हैं !

फीचर्स डेस्क। चटाऽऽऽऽऽऽऽक! जैसे ही वह थप्पड़ मेरे गाल पर आकर लगा मेरे हाथ में जो मेंगो शेक की ट्रे थी वो दूर जाकर गिरी। ट्रे में रखे सभी गिलास के टुकड़े टुकड़े हो चुके थे। हर तरफ फर्श पर टूटे हुए गिलास के टुकड़े बिखरे हुए थे। और मैं भी फर्श पर एक तरफ गिरी पड़ी थी। कुछ होश नहीं था, कुछ पल के लिए मेरा दिमाग सुन्न हो चुका था। शायद थप्पड़ बहुत जोर से पड़ा था या फिर मैं उस थप्पड़ के लिए तैयार नहीं थी।

उस थप्पड़ की गूंज से पूरे हॉल में शांति हो गयी। किसी के भी मुंह से एक लफ्ज़ ना फूटा। मम्मी जी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ गई जैसे यह थप्पड़ मारकर उनके बेटे ने कोई किला या गढ़ जीत लिया हो। मम्मी जी की सारी सहेलियां जो उस किटी पार्टी में मौजूद थी हैरानी से कभी मम्मी जी को, तो कभी उनके बेटे सुजॉय को, तो कभी उनकी बहू यानी कि मुझे सुदिप्ता को देख रही थी। पर किसी ने भी आगे बढ़कर मुझे उठाने की कोशिश नहीं की।

जब थोड़ा दिमाग सही हुआ और धीरे-धीरे अपने होश में आने लगी तो खुद ही खड़ी हो गई। देखा तो धीरे-धीरे मम्मी जी की सहेलियां नदारद हो चुकी थी। क्यों कोई दूसरों के घर के पचड़े में टांग अड़ाए, यही सोच कर सब वहाँ से निकल गई। जैसे ही खड़ी हुई वैसे ही सुजॉय चिल्लाते हुए बोले,

" घर के बाहर किस से पूछ कर गई थी। बहुत ज्यादा मौज मस्ती करने का शौक चढ़ा है तुझे। इज्जत से रहना इस घर में, वरना शौक उतारने अच्छे से आते हैं मुझे"

सच कहूं तो सिर अभी भी घूम रहा था इसलिए कुछ कह नहीं पाई। सुजॉय अपना गुस्सा दिखा कर घर के बाहर निकल गए और मम्मी जी?

उन्हें तो शायद मुझसे कोई हमदर्दी थी ही नहीं। वही तो थी जिनके कलेजे को सबसे ठंडक पहुँची थी। क्योंकि वो ही थी जिन्होंने सुजॉय को फोन कर के कहा कि मैं घर के बाहर गई हूं। अचानक मम्मी जी मुझसे बोली, " अब पति से बिना पूछे बाहर जाएगी तो बेचारा हाथ नहीं उठाएगा तो क्या करेगा? इतना तो पत्नी को भी सोचना चाहिए। अब खड़ी खड़ी देख क्या रही है फटाफट ये बिखरे हुए टुकड़ों को उठा और अपना काम कर"

बोलकर मम्मी जी भी अपने कमरे में चली गई। मैं वही हॉल में खड़ी रह गई। आखिर गलती क्या थी मेरी? यही कि मैं मम्मी जी की किटी पार्टी के लिए बाहर से सामान खरीद कर ले आई और बाहर भी कितना? घर के पास वाली दुकान से ही लेकर आई थी। बस फोन करके सुजॉय को नहीं बताया था पर मम्मी जी को तो बोलकर ही गई थी ना। उसकी इतनी बड़ी सजा दी गई मुझे।

आंखों में आंसू और अपने दिल के टुकड़े लिए मैं उन बिखरे हुए टुकड़ों को समेटने लगी पर बहुत कुछ दरक चुका था मेरे अंदर। सुजाॅय तो मर्द है लेकिन मम्मी जी तो औरत है। और जब भी उनका बेटा ऐसी कोई गलती करता है तो वो हमेशा उसकी पहरेदार बनकर खड़ी हो जाती है। सच ही कहा है कि मर्दों की बनाई बंदिशों की खुद औरतें पहरेदार होती है, जो उनके गलत को सही साबित करती हैं।

मैं सुदिप्ता इस घर की बहू मेरी शादी सुजॉय के साथ आठ महीने पहले हुई थी। मैं एक वर्किंग वुमन हूं। दुनिया की नजरों में आत्मनिर्भर हूं, जो सुबह बन ठन कर अपने जॉब पर जाती है और शाम को घर आकर आराम करती है। और अपना पैसा अपने तरीके से खर्च करती है। घर में नौकर चाकर है तो मुझे कुछ नहीं करना पड़ता। अगर आस-पड़ोस की औरतों की माने तो मुझ पर कोई रोक टोक नहीं है। पर सच्चाई बहुत अलग है।

मेरे ससुराल में मेरी सास की नजरों में मेरी कोई औकात नहीं है क्योंकि वो मेरी पहरेदार बनी बैठी है। वह मेरे पल-पल की पूरी रिपोर्ट मेरे पति को अपने तरीके से देती है। और उनका बेटा? वो अपनी मां की नजरों से अपनी पत्नी को देखता है। इसलिए उसे मुझ पर हाथ उठाने में गुरेज भी नहीं है।

मैं अकेली कहीं आ जा भी नहीं सकती। अगर मुझे थोड़ा सा भी ऑफिस से आने में लेट हो जाए तो मेरा पति वही पहुंच जाता है। और ऑफिस के बाहर जब मैं निकल कर आती हूं तो वही लोगों के सामने मेरी इज्जत का फालूदा कर चुका होता है।

जब शुरू शुरू में मैंने इसके लिए ऑब्जेक्शन उठाया तब भी सुजॉय ने मुझ पर हाथ उठाया था, जिसके बाद अपने मायके चली गई थी। पर वाह री मेरी किस्मत, मेरे माता पिता मेरे ससुराल वालों के पक्ष में ही बोले, मेरे नहीं इसलिए मुझे वापस लौटना पड़ा। बस फिर क्या था? उसके बाद तो इन लोगों की हिम्मत ही बढ़ गई। मेरी सारी सैलरी का हिसाब किताब इनके पास होता है अगर अपनी मर्जी से मैं कुछ खर्च कर दूँ तो उस दिन मेरा खाना दुश्वार हो जाता है।

अभी तक सुजॉय मुझ पर कई बार हाथ उठा चुका है पर हर बार घर में या तो कमरे में या मम्मी जी के सामने, पर आज इतनी औरतों के सामने मुझ पर हाथ उठाया गया।  मुझे सचमुच कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं आज का दिन ऐसे ही निकल गया।दूसरे दिन उठकर मैं तैयार होकर अपने ऑफिस के लिए निकल रही थी कि पड़ोस में दो-तीन आंटियां खड़ी होकर मेरी तरफ देख रही थी। एक ने तो टोक ही दिया,

" बेटा इतनी पढ़ी लिखी हो, क्यों अपने पति को परेशान करती हों कि उसे तुम पर हाथ उठाना पड़े"

सुनकर बड़ा अजीब लगा पर क्या कह सकते हैं मेरा पति मुझ पर हाथ उठाकर भी बेचारा बन चुका था। सच है कमी औरतों की ही निकाली जाती है और वो कमी निकालने वाली भी औरत ही होती है। हम आज के सो काॅल्ड माॅडर्न लोग बेवजह फेमिनिजम का रोना रोते है। असल लड़ाई मर्दों से नहीं बल्कि औरतों से ही तो है।

मन में ख्याल आ रहे थे कि काश भगवान अगले जन्म में औरत ना बनाए।  पर यह तो हार मानने जैसा था। जब इस जन्म को जीना है तो मुझे निर्णय तो लेना ही था। यूं अपनी पूरी जिंदगी मार खा खा कर तो नहीं रह सकती। और मां-बाप उनके पास तो जाना ही बेकार था क्योंकि उन्हें साथ देना होता तो पहली बार ही दे चुके होते।

सबसे पहले अपने ऑफिस पहुंची, छुट्टी के लिए अप्लाई कर बैंक गई। जहां पर मैंने अपने सारे अकाउंट के पासवर्ड डिटेल सब बदले और अपने अकाउंट को अपने अंडर में लिया।

इसके बाद निकलकर सीधे महिला पुलिस थाने पहुंची और अपने पति और सास के खिलाफ कंप्लेन की। मेरी कंप्लेन पर तत्काल ही सुनवाई हुई और तीन महिला कॉन्स्टेबल के साथ मुझे मेरे ससुराल भेजा गया। जहां उन्हें देखकर दोनों के हाथ पैर फूल गए।और उन दोनों ने हाथ जोड़कर मुझसे माफी मांगी।

हालांकि जिस तरीके से वो लोग मुझे देख रहे थे मुझे पता था कि वो दोनों मुझ पर बाद में हाथ उठाएंगे। फिर भी मैंने उन्हें माफ किया लेकिन साथ ही साथ मेरी जान को जोखिम है ये थाने में जरूर लिखवा दिया जिसके बाद दोनों को वार्निंग देकर छोड़ दिया गया।

कांस्टेबल के जाने के बाद मेरे पति ने मुझ पर हाथ उठाने की कोशिश की पर इस बार मैंने भी पलट कर दो तीन चाँटे उन्हें रसीद कर दिये। देखकर मम्मी जी चिल्लाई,

" अरे पति पर हाथ उठाती है, शर्म नहीं आती तुझे। अगर घर की इज्जत ऐसे ही उछालने का शौक है तो यहां क्यों पड़ी हुई है? तलाक क्यों नहीं दे देती"

" नहीं मम्मी जी, तलाक तो मैं दूंगी नहीं, आखिर इतनी आसानी से आप लोगों को कैसे रहने दूँ। तलाक के बाद आपका बेटा दूसरी शादी कर लेगा और किसी और लड़की की जिंदगी बर्बाद करेगा, वह मैं होने नहीं दूंगी। आपने जो मेरी जिंदगी बर्बाद की है उसका खामियाजा तो आपको भी भुगतना ही पड़ेगा, मैं अकेले क्यों भुगतूँ। चाहती तो जेल भेज सकती थी पर फिर भी नहीं भेजा क्योंकि शायद उससे मुझे सुकून नहीं मिलता"

बस आज के दिन जो कुछ भी मैंने किया उसके बाद मेरा आत्मविश्वास बढ़ चुका था। मैं उन्हीं लोगों के नाक के नीचे रहती हूं अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जीती हूं, पर वो लोग बढ़बढ़ाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। उन लोगों ने मेरे माता-पिता को भी बुलाया था पर मैंने हाथ जोड़कर उन्हें मना कर दिया कि आप लोगों को अब कुछ बोलने की जरूरत नहीं। आप लोग अपनी लोक लाज संभालो और मैं अपना घर।

इनपुट सोर्स : लक्ष्मी कुमावत