सौतेली

अनुराधा सौतेली मां जरूर थी पर उसे कान्हा से पूरा लगाव था। बस वह इसी कोशिश में लगी रहती कि कान्हा उसे माँ माने। पर कान्हा तो उसे मां तक नहीं बोलता...

सौतेली

फीचर्स डेस्क। अनुराधा की आंखों से निरंतर आंसू बहे जा रहे थे। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी कोशिश में कहाँ कमी रह जाती है। इतनी कोशिश अगर भगवान को मनाने के लिए करती तो शायद भगवान ही मिल जाते। इतना परेशान तो कभी नहीं हुई जितना इस सात साल के अदने से बच्चे ने परेशान कर रखा है। हालांकि इसमे कुसुर उसका कुछ भी नहीं। बस लोगों की सुनी सुनाई बातों को सच मान बैठा है।

कान्हा, हां यही नाम है उसका। उम्र बस सात साल। हमेशा अपनी दादी के साथ छोटी सी निक्कर पहन कर घूमता रहता है। दादी के साथ रह रह कर पूरा पंचायती हो चुका है। हालांकि दादी कभी भी अनुराधा की बुराई नहीं करती। पर दादी की सखियां है जो कान्हा को अनुराधा के खिलाफ भड़काती रहती है।

अब अनुराधा कौन? अनुराधा कान्हा के पिता रमेश की दूसरी पत्नी है। और कान्हा रमेश की पहली पत्नी का बेटा। दो साल पहले रमेश की पत्नी का बीमारी के चलते देहांत हो गया था। उसके बाद रमेश शादी नहीं करना चाहता था। बस जैसे तैसे बड़ी मुश्किल से रमेश को शादी के लिए मनाया गया। और अभी पिछले महीने ही रमेश का विवाह अनुराधा के साथ हुआ है।

 जब अनुराधा का विवाह रमेश के साथ हुआ, उस समय जो भी मेहमान घर पर आए, उन लोगों ने मजाक मजाक में सही, पर बच्चे के सामने यही बात कही,

" अरे कान्हा, तेरी तो दूसरी मां आने वाली है। थोड़ा संभल कर रहना"

तो कोई कहता,

" कान्हा तेरी तो सौतेली मां आ रही है। बहुत खराब होती है सौतेली माँ"

लोग तो मजाक मजाक में कह कर चले गए, पर उसका असर उस बच्चे पर बहुत ज्यादा हुआ। जब अनुराधा शादी होकर घर में आई, तब से कान्हा का अनुराधा के साथ छत्तीस का आंकड़ा चलता है। कान्हा अनुराधा को परेशान करने का एक भी मौका नहीं छोड़ता। जबकि अनुराधा कान्हा को मनाने की पूरी कोशिश करती।

अनुराधा सौतेली मां जरूर थी पर उसे कान्हा से पूरा लगाव था। बस वह इसी कोशिश में लगी रहती कि कान्हा उसे माँ माने। पर कान्हा तो उसे मां तक नहीं बोलता। उसके लिए तो वो अनुराधा ही है। दादी और रमेश कई बार डांटते, पर इसका कान्हा पर कोई असर ना होता। थोड़ी देर रो धोकर वापस वैसा ही हो जाता। और फिर उसकी वही शरारतें शुरू हो जाती।

अभी पिछले सप्ताह की ही बात है। घर में मेहमान आए हुए थे, जो थोड़े जल्दबाजी में थे। दादी ने अनुराधा को फटाफट चाय बनाने के लिए कहा। घर में रसोई का काम चूल्हे पर ही होता है, तो अनुराधा ने चूल्हा जलाकर चाय चढ़ाई और पानी लेकर मेहमानों को देने आई। इतने में कान्हा ने पानी का जग लाकर चूल्हे में डाल दिया।

जब तक अनुराधा रसोई में गई, तब तक चूल्हा बुझ चुका था। अब चूल्हे में पानी भर गया था तो दोबारा चाय बन नहीं पाई। बाहर दादी ने सबके सामने अनुराधा को फटकार लगा दी। अनुराधा को डांट पड़ते देखकर कान्हा को बड़ा मजा आया। बेचारे मेहमान बिना चाय पिए ही निकल गए।

दो दिन पहले अनुराधा ने अपने कपड़े छत पर सुखाए और नीचे आकर थोड़ी देर आराम करने लगी। उस दिन ज्यादा थकी हुई थी तो उसे नींद लग गई। जब नींद खुली तो घर के पीछे से कान्हा और उसके दोस्तों की हंसने की आवाज आ रही थी। अनुराधा देखने गई तो देखकर हैरान रह गई। छत पर सुखाई उसकी साड़ी को कान्हा अपनी गायों के सींग पर बांधकर खेल रहा था।अनुराधा को देखकर सारे बच्चे वहां से फरार हो गए अनुराधा ने जैसे-तैसे अपने साड़ी गाय के सींग से निकाली तो देखा कि जगह-जगह से साड़ी फट चुकी थी। पर अनुराधा ने इसकी शिकायत ना दादी से की और ना ही रमेश से।

और आज, अनुराधा ने बड़े मन से सब के लिए खीर पूरी सब्जी बनाई और खाना लगाकर सब को बुलाने के लिए बाहर आई। पर हाय री किस्मत, कान्हा वहाँ पर भी पहुंच गया। और वही पास रखे नमक को लेकर सब्जी में नमक डाल दिया।

जब सब खाना खाने बैठे तो अनुराधा ने कटोरियों में सब्जी निकाली और सब को परोस दी। पहला निवाला मुंह में लेते ही दादी ने निवाला थूक दिया।

"हाय रे! ये क्या बनाया है? कुछ सिखाया नहीं क्या तेरे मां बाप ने? पूरा मूँह खारा कर दिया"

" क्या हुआ माँ? इस तरह क्यों बोल रही हो?"

" सब्जी चखकर देख, कितना नमक डाला है। खाना खाने लायक तो बनाती"

यह सब देख कर कान्हा को बड़ा मजा आ रहा था, जो उसके चेहरे से साफ नजर आ रहा था। रमेश को उसकी तरफ देख पर शक हुआ तो उसने कान्हा से पूछा,

 " कान्हा सच सच बता। तूने क्या हरकत की"

कान्हा एकदम से घबरा गया कि अगर सच पता चल गया तो फिर डांट पड़ जाएगी। इसलिए वह हकलाने लगा,

" वो वो बापू वो...."

" सच बोल, हकला क्यों रहा है? तूने कुछ किया ना"

 रमेश के डर के मारे कान्हा ने सच बोल दिया कि उसने खाने में नमक मिलाया था। रमेश से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने चांटा खींचकर कान्हा के गाल पर दे मारा। कान्हा को चांटा मारते ही अनुराधा का दिल चित्कार उठा,

 " ये क्या कर रहे हैं आप? भला कोई बच्चे को इतनी सी बात के लिए मारता है क्या?"

" तुम इसी का पक्ष ले रही हो। इसकी शरारती देखी, दिन पर दिन बढ़ती जा रही है"

" मैं मां हूं उसकी.."

" तुम मेरी मां नहीं हो। अनुराधा मेरी मां नहीं है"

रोता रोता कान्हा चिल्लाया। और रोता रोता ही वहाँ से भाग गया। बस तब से अनुराधा के आंसू बहे जा रहे थे।सुबह से दोपहर तक कान्हा अपने दोस्तों के साथ ही रहा। घर नहीं आया तो रमेश अनुराधा को लेकर उसके मायके छोड़ने चला गया। इस वादे के साथ ही जब तुम आओगी तो तुम्हें तुम्हारा बेटा मिलेगा, सौतेला बेटा नहीं।

 इधर जब कान्हा घर वापस आया तो अनुराधा घर पर नहीं थी। उसने हर कमरे में जाकर देखा। यहाँ तक की ऊपर छत पर भी ढूँढ आया। दादी बाहर खाट पर बैठी कान्हा को गौर से देख रही थी।

" किसे ढूंढ रहा है रे तू"

" नहीं नहीं, मैं तो........... मैं तो किसी को नहीं ढूंढ रहा"

 "अच्छा जिसे ढूंढ रहा है, बता दूँ कि वो तो गई यहाँ से।अब नहीं आएगी"

" हां, तो क्या फर्क पड़ता है? अब तो मैं चैन से रह लूंगा। मेरी सौतेली मां गई"

उसकी बात सुनकर दादी मंद मंद मुस्कुराई। जिसे देखकर एक बार तो कान्हा हड़बड़ा गया। फिर चुपचाप अंदर कमरे में चला गया।

धीरे-धीरे रात भी हो गई। पर आज कान्हा का घर में मन नहीं लग रहा था। उसे तो अनुराधा को परेशान करने में मजा आता था। पर आज तो अनुराधा घर पर नहीं थी। उसका मन भी किसी काम में नहीं लग रहा था। रात को रमेश घर आया है तो कान्हा आकर रमेश के पास ही खड़ा हो गया। उसे लगा कि रमेश अनुराधा के बारे में कोई बात कहेगा। पर रमेश ने तो कुछ भी नहीं कहा। उल्टा उसे मिठाई निकाल कर दे दी,

"अरे बेटा मिठाई खा। तू चाहता था ना कि तेरी सौतेली मां चली जाए। ले, आज वह चली गई" 

कहकर रमेश ने चुपचाप अपना खाना खाया और अपने कमरे में जाकर सो गया। कान्हा से मिठाई खाते ना बना। जैसे तैसे एक दो निवाले निगले और चुपचाप उठकर कमरे में चला गया। रात को सोते समय बाहर दादी के पास खाट पर लेटा लेटा रोने लगा।

" अरे क्या हुआ कान्हा, तू रो क्यों रहा है? कोई परेशानी है क्या तुझे"

पर कान्हा ने कुछ नहीं कहा, बस रोए जा रहा था। आवाज सुनकर रमेश बाहर आ गया

" क्या हुआ मां"

" देखना कान्हा रोए जा रहा है। बता भी नहीं रहा क्या हुआ"

" क्या बात है कान्हा? रो क्यों रहा है? आज तो तेरे लिए खुशी का दिन है। तेरी सौतेली मां चली गई। तू तो यही चाहता था ना"

" मैंने कब कहा कि वो यहां से चली जाए? मेरा तो अनुराधा के बगैर मन ही नहीं लग रहा"

उसकी बात सुनकर दादी और रमेश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

" पर वो तो नहीं आएगी। फिर तु उसकी बेइज्जती करेगा। उसे परेशान करेगा"

" नहीं, मैं बिल्कुल परेशान नहीं करूंगा। अनुराधा को ले आओ ना बाबू"

"ठीक है, कल ले आऊंगा। अभी सो जा"

जब रमेश ने वादा किया तब जाकर कान्हा सोया। दादी अभी भी मंद मंद मुस्कुरा रही थी,

" क्या हुआ मां? ऐसे क्यों मुस्कुरा रही हो"

" तुझे कैसे पता चला कि अनुराधा को उसके मायके भेज देने से कान्हा उसे ढूंढेगा"

" क्योंकि मां, कभी-कभी नजदीकियाँ बढ़ाने के लिए दूरी होना जरूरी है। तुमने कभी ध्यान नहीं दिया मां। कान्हा हमेशा अनुराधा के आस-पास ही मंडराता रहता है। बस दोनों को अपनी नजदीकियों का एहसास नहीं था। तो वह एहसास कराना जरूरी था"...।।

इनपुट सोर्स : लक्ष्मी कुमावत