अमावस के चांद का चकोर...

अमावस के चांद का चकोर...

" काली माई दियासलाई, बच्चों भागो आंधी आई...काली माई दियासलाई...."

फीचर्स डेस्क। छाया के खेल के मैदान में आते ही मिट्ठू ने हमेशा की तरह उसे देखकर गाना शुरू कर दिया लेकिन आज छाया भी ठान कर आई थी कि वह बुरा नहीं मानेगी और मुंहतोड़ जबाव देगी मिट्ठू को। उसने एक नज़र दूसरे बच्चों पर डाली जिनके चेहरे पर मिट्ठू की गई पंक्तियों के कारण मुस्कुराहट थी और वे भी छाया को चिढ़ाने के लिए मिट्ठू के साथ उन पंक्तियों को दोहरा रहा थे।

" काली माई की ही पूजा हुई है अभी कुछ दिन पहले फिर भी इस तरह बोल रहे हो... देवी मां का रूप हूं मैं जो सिर्फ राक्षसों यानि बुरी आदतों और व्यवहार वाले लोगों के लिए डरने की वजह हैं।", छाया आत्मविश्वास के साथ बोलते हुए उन सभी के बीच आ कर खड़ी हो गई। " चलो, आज कोई नया खेल खेलते हैं, बहुत दिनों से छुपन – छिपाई ही खेल रहे हैं। "

" हां, वैसे भी उसमें तू जीत जाती है क्योंकि तेरे काले रंग और शाम के अंधेरे दोनों आपस में मिल जाते हैं इस कारण ढूंढना मुश्किल हो जाता है। ", मिट्ठू जो कुछ पल के लिए छाया के इस रूप को देखकर चुप रह गया था ,उसने उसे चिढ़ाने के लिए फिर से व्यंग्य बाण चला दिया और जोर से हँसने लगा लेकिन छाया ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और बाकी बच्चों को दूसरे खेलों के नाम सुझाने लगी।

मिट्ठू गोरा चिट्टा, घुंघराले बालों वाला खूबसूरत बच्चा था जिसके परिवार में सभी इतने ही खूबसूरत थे जैसे मोम की सुंदर गुड़िया हों। मिट्ठू यानि भूषण दिल का बुरा नहीं था लेकिन न जाने क्यों छाया को चिढ़ाने में उसे बहुत अच्छा लगता था। ऐसा नहीं कि उसकी इन हरकतों के कारण उसे घर में डांट नहीं पड़ती थी,एक बार तो छाया को रोते देखकर उसके पापा ने मिट्ठू की पिटाई भी कर दी थी लेकिन मिट्ठू तब भी छाया को उसके रंग के कारण परेशान करने का कोई मौका नहीं चूकता था।

वहीं एक सच यह भी था कि मिट्ठू की छाया के अलावा किसी से अच्छी दोस्ती भी नहीं थी। आपस में खूब लड़ाई होने के बाद भी वे अच्छे मित्र थे और अक्सर एक – दूसरे के घर जाकर एक थाली में ही खाना भी खाते थे यहां तक कि... रक्षाबंधन पर मिट्ठू पहली राखी भी छाया से ही बंधवाता था।

लेकिन रंग को लेकर ताना कसने वालों में भी पहला नंबर उसी का था।

छाया बचपन से यही सुनती रही थी कि अगर उसका रंग थोड़ा और साफ होता तो वह काफी सुंदर लगती। जहां उसकी छोटी बहन किसी भी रंग के कपड़े पहन लेती थी, छाया के लिए कपड़ों का रंग चुनना भी उसकी मम्मी के लिए एक बड़ा काम होता था। हर रविवार या छुट्टी के दिन बेसन के उबटन या मलाई लगाकर उसे नहाने की हिदायत होती ताकि धीरे–धीरे उसका रंग साफ हो सके।

ड्रेसिंग टेबल पर रखी गोरा बनाने की क्रीम भी छाया को बेचारगी से देखती हुई लगती थी लेकिन इन सब बातों के बाद भी छाया अलमस्त रहती थी । कहीं जाना होता तो बस मुंह धोकर ही वह तैयार हो जाती थी क्योंकि उसे शीशे की ज़रूरत नहीं थी। उस दिन जन्मदिन की पार्टी में जाते हुए दादी ने उसे टोक दिया था, " अरी छाया, एक बार शीशा देखकर बाल तो सही कर लेती!"

" दादी, शीशा देखकर क्या करना है... वह तो तुम जैसे सुंदर लोगों के लिए है, मैं तो हर तरह से ऐसी ही रहूंगी, कितना ही कुछ कर लो। "

उस दिन छाया की बेपरवाह हँसी उसकी दादी और मम्मी के दिल में ठक्क्क सी लगी थी।

अगले दिन स्कूल से आने के बाद उन्होंने खाना खिलाते हुए छाया को उसके रंग रूप को लेकर कितनी ही बातें समझाने की कोशिश की। " लेकिन मम्मी अगर रंग से कुछ फर्क नहीं पड़ता तो सब मुझे चिढ़ाते क्यों हैं? ...और वह प्रांजकता तो मुझे अपना कोई सामान नहीं छूने देती कि तू काले हाथों से छूकर खराब कर देगी।", छाया के चेहरे पर यह कहते हुए दुःख नहीं हल्का क्रोध था।

दादी का दिल भी यह सुनकर कांप गया और उनका चेहरा भी तमतमा उठा। ऐसा तो उन्होंने भी कभी नहीं सोचा था.. रंग को लेकर इस तरह का भेदभाव उनके मन में नहीं था, वे तो बस लड़की को सुंदर बनाना चाहती थीं।

आखिर लड़की का सुंदर होना ही तो उसका सबसे बड़ा गुण है न...एक आदिम सोच के तहतलड़कियों के लिए सुंदरता अनिवार्य है ताकि वह सृष्टि को लुभा कर सम्पूर्ण कर सकें।

इसी कारण तो हर जतन किया जाता है उसकी सुंदरता बढ़ाने का उसके जन्म के साथ ही और बाद में अनचाहे ही उसे अपनी सुन्दरता बनाए रखने की घुट्टी भी पिला दी जाती है और यही घुट्टी महिलाएं अपनी आने वाली पीढ़ी को परंपरा की तरह हस्तांतरित करती जाती है।

"नहीं बेटा, रंग कुछ नही होता, दुनिया में दो ही तो रंग है या तो गोरा या काला...इसे लेकर शर्मिंदा मत हो। ", उस दिन मम्मी ने देर तक विभिन्न उदाहरण देकर छाया को काले रंग की छाया के ग्रहण से मुक्त कराने का प्रयास किया जिसका परिणाम था छाया द्वारा मिट्ठू को प्रतिउत्तर देना।

मिट्ठू ने उस दिन छाया को चिढ़ाने की जितनी भी कोशिश की सब बेअसर रहीं आखिरकार खीझ कर उसने अपना ध्यान खेल में लगा लेना ज्यादा बेहतर समझा।

(क्या मिट्ठू आसानी से मान जाएगा? छाया का आत्मविश्वास बना रहेगा? जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले अंक का।

इनपुट : मेघा राठी, वरिष्ठ लेखिका।