वह गुलाब...

वह गुलाब...

फीचर्स डेस्क। लड़की ने घबराकर उस कैफे को नजर भर कर देख लिया। स्टाफ के कुछ लोगों को छोड़कर कोई बदलाव महसूस नहीं हुआ !  2 साल गुजर चुके थे, हमेशा की तरह लड़का आज भी लेट था  बस कुछ ही मिनटों में आने वाला था ।अपनी वही खास मुस्कान के साथ!!

मन में अजीब संशय था ,नैना के मन में। उत्सुकता भी थी और कुछ असमंजस भी!

अमित के व्यक्तित्व से वह काफी प्रभावित थी ।

नैना यानि मुझे अपने कॉलेज का पहला दिन अभी भी याद है।

  "अरे, यह स्लिम ट्रिम मैडम कौन है ? "

  "आइए  !आप अपना नाम बताइए"लड़कों के झुंड में से एक कड़क सी आवाज आई।

 " नैना", मैंने गुस्से एवं डर  से बोला।

 "गाना सुनाइए", मैं तो अमित को देखते ही रह गई।

लंबी कद काठी, सांँवला सलोना रंग , गहरी आंँखें,घनी पलकें अजीब सी कशिश थी।

" हांँ हांं !"जल्दी करो नहीं तो डांँस भी करना पड़ेगा। "अमित झुंँड का सरगना बनते हुए बोला।

"लड़की बड़ी अंजानी है

सपना है ,सच है कहानी है".....

किसी तरह पसंदीदा गाना गाकर मैंने अपनी जान छुड़ाई। परंतु मैं कहीं न कहीं अमित के व्यक्तित्व से आकर्षित हो गई।

कभी नोट्स ,कभी लाइब्रेरी, कभी कैंटीन घंटों ,साथ बैठे रहते, पढ़ते भी और

बातें करते।

इतने में अमित दिखाई दिया। मैं अतीत से वर्तमान में लौट आई।

"अमित, तुम फिर लेट!! कितना इंतजार कराते हो?"

मैं प्यार भरी गुस्से से बोल रही थी। परंतु अमित पर जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ता था ।

उसका अभी भी वही बेपरवाह अंदाज, जिंदगी को बहुत ही धैर्य से जीना!!

कोई जल्दी नहीं, चेहरे पर शांति!! 

मुझे हर काम समय पर करने की बहुत बुरी आदत थी। अमित मुझे हमेशा बोलता

 "क्यों ,हर समय शताब्दी में सवार रहती हो ?चिल करा करो! "

 "अंदर चले!" अमित के यह बोलने से मैं चौँकी। दिल बहुत बुरी तरह से धड़क रहा था। समझ ही नहीं आ रहा था,अमित से कैसे पूछूंँ? 2 वर्ष बाद उसने मुझे कैसे ढूंँढा? क्यों अचानक गायब हो गया था? कितना रोई थी ।

  कल अचानक, शाम के समय फोन बजा

      " हेलो कौन?

      "मैं ,अमित"

"कौन अमित? मैं तो किसी अमित को नहीं जानती।अपनी जिंदगी का जो चैप्टर में बंद कर चुकी थी मैं उसको दोबारा खोलना नहीं चाहती थी।

परंतु अमित ने बोला ,"पहले मेरी बात सुनो फोन मत रखना। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। "

मैं बहुत परेशान हो गई थी।

इतने में हम एक टेबल पर बैठ चुके थे। वही चिर परिचित टेबल, जहाँ पर हमने पता नहीं ,कितने अनमोल क्षण साथ में गुजारे थे। स्टाफ कुछ-कुछ तो बदला लग रहा था ,परंतु वह स्टाफ का लड़का आज भी वहीं था।

वह जल्दी से दौड़ता हुआ आया ।

 "मैम क्या लेंगे आप?" उसने शायद मुझे और अमित को पहचान लिया था।

 "आपके लिए लैमनेड और सर के लिए स्ट्रांग कॉफी !! ",उसे याद था।

तभी अमित ने, बिना कुछ भूमिका बाँधे सीधे मेरा हाथ पकडा मुझे गुलाब देते हुए बोला,

     "जीवन संगिनी बनोगी मेरी!! "

अब कुछ कहने को बाकी रही नहीं गया था, मन का सारा मैल धुल चुका था ।

मैं हतप्रभ सी अमित को देखती रह गई। मेरा चेहरा स्त्री-सुलभ हया से लाल हो गया। कैफे के अंदर सब तालियांँ बजा रहे थे।

मैंने धीरे से गुलाब पकड़ा और मेरी आंँखों से खुशी के आंँसू बह रहे थे।

रेखा मित्तल, लेखिका, पुरस्कृत, चंडीगढ़ लिटरेरी सोसायटी।