"नितिन "

"नितिन "

फीचर्स डेस्क। सुनीता बहू! मेरी बीपी- शुगर की दवाई खत्म हो चली है इसलिए नितिन को फोन करके जरा कह दो कि ऑफिस से शाम को लौटते समय मेडिसिन लेते हुए आए । सास गायत्री की बात सुनकर सुनीता अपने कमरे में जाकर फोन पर नितिन से कह रही ...... जब देखो तो तब आप ही बूढ़ा - बूढ़ी का ठेका ढोए जा रहे , दोंनो ( सास -ससुर ) बड़े भइया के पास क्यों नहीं रहने को जाते , बस आपको ही इनकी तीमारदारी करनी होती है , ससुर जी बस बैठे बैठे अखबार पढ़ते रहते हैं और दिनभर सास के साथ कमरे में घुसे रहेंगे मानों नवविवाहित जोड़े हों । हद है इनके खर्चे भी हम ही वहन करें और बड़े भाई साहब अपने परिवार के साथ मजे में रहें , वाह जी वाह ....." काम के ना काज के दुश्मन अनाज के " और तो और इनके चोंचले भी बर्दाश्त करो । अपनी पत्नी की झल्लाहट भरी उलाहना सुन फोन पर.. रखो फोन , अभी एक क्लाइंट आनेवाला है ।

लो माँ तुम्हारी दवाइयाँ । पापा आपकी दवाई है ना , हाँ बेटा अभी 15 दिन तक चलेगी , नितिन के पापा पवन  बोले ।

नितिन के पास उसके माता पिता रहते हैं, अपना मकान है इसलिए नितिन को घर का किराया नहीं देना पड़ता और हर महीने एक लाख पगार पर काम करनेवाला नितिन सॉफ्टवेयर इंजीनियर है , दोंनो बच्चे बेटा और  बेटी शहर के  प्रतिष्ठित स्कूल  में पढ़ रहे हैं। नितिन अपने माँ-बाप को हृदय से पूजता है , एकदम श्रवण कुमार की भाँति और वो एक पैसा उनसे नहीं लेता । उनके सारे खर्चे खुद उठाता है , उनकी हर छोटी- बड़ी  एक - एक जरूरतों की पूर्ति करता है ।

नितिन के पापा की पेंशन जमा रहता है , लगभग बैंक बैलेंस लाखों का है शायद चालीस लाख पार कर गया होगा ।

एक दिन नितिन के बड़े भाई का फोन पवन जी के पास  आता है ..... सादर प्रणाम पापा ! आपलोग कैसे हैं? मिश्री घुली आवाज सुन पवन जी को दाल में काल लगा ,  हाँ बेटा बोलो ! कैसे कैसे आज बूढ़े माँ-बाप को याद किए हो । पवनजी जानते थे कि उनका बड़ा बेटा आत्मकेंद्रित (  Self- Centered) और स्वार्थी है , बहुत लोभी भी है। बिना स्वार्थ के फोन नहीं करेगा इसलिए सतर्क हो पूछ रहे ।

वो पापा , शशांक को अमेरिका भेजना है करीब 20 - 25 लाख की जरूरत है और आपके पास है ही , इसलिए अपने पोते के लिए आर्शीवाद स्वरूप दे देते तो आगे की पढ़ाई में मदद हो जाती । सीधे तौर पर बिना लाग लपेट के बोल रहा , इतना सुनना था कि पवन जी के तन में आग लग गई है।

जोर से चिल्लाकर बोले ... कैसा पैसा , कौन हो तुम और किस हक से बोल रहे हो कि तुम्हें अपनी मेहनत की कमाई दे दूँ । तुम जैसा दोगला नमकहराम खच्चड़ बेटा किसी को ना हो । मेरे पैसे पर सिर्फ नितिन का हक है और अब से ----' आज से ----- अभी से तू मेरे लिए मर गया । कभी भी हमदोंनो को पूछा नहीं ? कि हम कैसे हैं ....  जीवित भी हैं या मर गए , पैसे की बात आई तो फोन घुमा बैठा है ।

कहकर गुस्साए पवन जी फोन को काट दिए।

ड्राइंगरूम में बैठा नितिन सब सुन रहा , अपने बड़े भाई के कुचाल को समझ कर व्यथित है कि खुद वो सरकारी एसक्युटिभ ( Excutive Engineer) इंजीनियर हैं , अच्छी खासी तनख्वाह है फिरभी माता पिता के पैसे पर गिद्ध जैसा नजर गड़ाए बैठे हैं । छीः कैसी निर्लज्जता है ये , अपने बेटे को इंडिया में भी तो पढ़ा सकते हैं , विदेश क्यों भेजना भई!

 किचन में काम कर रही सुनीता भी ससुर जी की कहासुनी से लज्जित हुई होगी या नहीं , लेकिन मन ही मन खुश हो रही कि सास ससुर का सारा पैसा नितिन को ही मिलेगा ।

लेकिन उसका हृदय यह सोच से वंचित है कि नितिन जैसा संत पति उसको मिला है क्यों ?????

या तो पिछले जन्म का पुण्य रहा होगा या गंगा में  डूबकी लगाई होगी तभी तो ऐसा पति पाई है , नहीं हरदम वो प्रयासरत तो रही कि नितिन को उसके माँ-बाप के विरुद्ध कर सके लेकिन वो कभी कामयाब नहीं हुई।

इनपुट सोर्स : अंजू ओझा, वरिष्ठ लेखिका, पटना।