mother day special 2023 : पढ़िए, यूपी के अलग-अलग शहरों मेँ रहने वाली इन बहदुर सिंगल मदर की अनोखी कहानी
Mother's Day 2023: मदर्स डे के मौके पर आज हम आपको यूपी की उन 5 “माँ” कहानी बताने जा रहे हैं जो पति की अचानक मौत या अलग होने के बाद टूटने की बजाए साहस और दृढ़ संकल्प के साथ उठीं और एक ऐसे रास्ते पर चलने का फैसला किया जो इनके लिए मुश्किल भी था....
फीचर्स डेस्क। कहते हैं कि बच्चे को एक मां ही अच्छी तरह समझती है, लेकिन तब क्या जब उसे अकेले ही सिंगल पैरेंट की भूमिका निभाकर बच्चे की परवरिश करनी पड़ती है। आप ऐसी कितनी मांओं को जानते हैं जो अकेले ही बच्चे का पाल रही हैं। एक मां जब पिता (father) की भूमिका निभाती है तो यह उसके लिए काफी कठिन हो जाता है। समाज का एक मां को हर पल शक की नजरों से देखना, उसका अकेलापन और उपर से बच्चे की जिम्मेदारी। जब सिंगल मदर को कोई आर्थिक रूप से सपोर्ट करने वाला नहीं होता तो जॉब करना उसकी मजबूरी हो जाती है। वहीं कुछ लोग सिंगल मॉम को कमजोर भी समझते हैं और इसका फायदा उठाना चाहते हैं।
उन्हें लगता है इसके आगे-पीछे तो कोई है नहीं, ऐसे में यह हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकती। इस वजह से सिंगल मदर जब हंसता-खेलता, भरा-पूरा परिवार देखती हैं तो उन्हें अपने अंदर एक कमी, एक खोखलापन महसूस होता है। हमारे समाज में शादी से पहले मां बनना सबसे बड़ा गुनाह समझा जाता है। वहीं तलाकशुदा या फिर विधवा महिला अपने अस्तित्व के लिए खुद को हर पल प्रूफ करती रहती है। ऐसे में आज हम आपके लिए लेकर आए है यूपी की 5 ऐसी सिंगल मदर की अनोखी कहानी जो अपने बच्चों को हर वो खुशी देने के लिए खुद की खुशी को नजरंदाज कर चुकी हैं। कोई नौकरी कर रहीं हैं तो कुछ ने बिजनेस शुरू किया और आज एक अच्छे मुकाम पर हैं। तो आइये पढ़ते हैं इन बहादुर माँ के बारें में....
1.बच्चों की पढ़ाई के लिए शुरू किया संघर्ष
मूलतः यूपी के कानपुर की रहने वाली निधि मिश्रा बताती हैं शादी के करीब 16 वर्ष बाद ही मेरे पति कैंसर से निधन हो गया था। उस वक्त मैं 35 साल की थी। तीन मासूम बच्चों को देख मेरी हर पल ममता रोती थी। शायद यही मेरे लिए सबसे बड़ी ताकत भी बनी। इनके पढ़ाई लिखाई व परवरिश को लेकर हमेशा चिंता सताने लगी। क्योंकि जब तक पति जिंदा थे तब तक कभी भी हमें बाहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। कहीं जाकर काम करना तो दूर बाहर जाकर कुछ सामान खरीदने की भी अकेले नौबत पति के रहते नहीं आई थी। उनकी मौत के बाद तो मानो दुनिया उजड़ गई। बुरे वक्त में परिवार ने भी साथ छोड़ दिया। ऐसे में बच्चों को संभालना बड़ा मुश्किल हो रहा था।
पति विनोद जी गाजीपुर में हिंदुस्तान अखबार में ब्यूरो चीफ थे। इसी बीच दिसंबर 2017 में पति मुंह में कैंसर होने की जानकारी हुई। कानपुर से लेकर मुंबई टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल तक इलाज कराया गया लेकिन कोई आराम नहीं हुआ चिकित्सकों ने भी जवाब दे दिया। जिसके बाद 22 फरवरी 2018 को विनोद जी की कैंसर से मौत हो गई। उनके जाने के बाद ऐसा लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया हो, परिवार के मुखिया के चले जाने से आर्थिक दुश्वारियों ने चारों तरफ से घेर लिया। मन में कई बार ख्याल आया कि अब जिंदगी नहीं चल पाएगी, लेकिन बच्चों को देखकर हिम्मत बंधी। उसी हिंदुस्तान अखबार में बनारस में मुझे 7 मई 2018 पति के जगह पर नौकरी मिली। इसके बाद जब मैं पहली बार गाजीपुर छोड़कर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी आई। तब शहर में आने के बाद कुछ दिन मैं भयभीत रही कि, इतना बड़े शहर में सब कुछ कैसे अकेले मैनेज करूंगी। लेकिन बाबा विश्वनाथ जी के आशीर्वाद से सब कुछ ठीक हो गया। इस शहर में आज पांच वर्ष देखते देखते बित गए। अब तो ऐसा लगता है कि मेरा नाता बनारस से जन्मों का है। ऐसे में मैंने अपने निजी जीवन और पेशेवर जीवन में बहुत कुछ सीखा है।
इस समय बड़ी बेटी 17 वर्षीय संस्कृति K I T से B B A करा रही, जबकि 15 वर्षीय छोटी बेटी सुकृति 11th में संस्कार कांवेंट कोइराजपुर व 13 वर्षीय बेटा संस्कार 9th मे संत अतुलानंद कोइराजपुर से पढ़ाई कर रहा है।
आप सभी के बीच अपने काशी पर कुछ दो पंक्तियां कहना चाहूंगी-
"कल तक बेमोल सा पत्थर मन, आज पारस हो गया।
तूने गंगा से छुआ मुझे, दिल बनारस हो गया।। "
मुझे ऊँचाइओं पर देखकर हैरान है बहुत लोग,
पर किसी ने मेरे पैरो के छाले नहीं देखे।
निधि मिश्रा, वाराणसी।
2. प्ले स्कूल ओपन कर बच्चों को खुशी देने की कोशिश कर रहीं हैं रंजना
झाँसी में प्ले स्कूल चलाने वाली रंजना सिंह बुंदेला बताती हैं कि कोरोना के बाद जब हमारे परिवार में एक नया मोड़ आया। क्योंकि कभी ऐसा न सोचा था न देखा था, फिर जब पहला14 नवंबर आया जिसको हम लोग चिल्ड्रेन्स डे के रूप में मनाते हैं। उसी दिन प्ले school बनाने का आईडिया मेरे मन मे आया क्योंकि मैं अपने दोनों बच्चों को देख रही थी न उनको कही भी खिलाने घुमाने नहीं ले जा पा रही थी और सिंगल mother होने के नाते मन ही मन सोच रही थी क्या करूँ कैसे बच्चों के साथ चिल्ड्रेन्स डे सेलिब्रेट करू। बस उसी क्षण प्ले स्कूल बनाने का निर्णय लिया औऱ 1 january 2022 को किड्ज लांचर स्कूल की तैयार किया। 26 january गणतंत्र दिवस के दिन उद्घाटन करके नय दिशा की ओर अग्रसर किया। ईश्वर के आशीर्वाद से आज स्कूल में काफी बच्चे हैं जिनको खेलते और कुछ नया सीखते देख कर मुझमे एक सकारात्मक ऊर्जा रहती है, बहुत ही अच्छा और सुंदर माहौल रहता है। आज किड्ज लांचर का नाम झाँसी के अच्छे स्कूल में गिना जाता है।
रंजना सिंह बुंदेला, झाँसी, यूपी।
3. एक साल के बेटे के साथ जिंदगी का नया सफर शुरू किया
झारसुगड़ा (ओड़िशा) की मूलतः रहने वाली सावित्री मिश्रा ने बताया कि मैं 1996 से एक एकल अभिभावक यानि सिंगल मदर हूँ। दहेज की प्रताड़ना से परेशान होकर मैंने पति और ससुराल का घर छोड़ सम्बलपुर विश्वविद्यालय से अपने एक साल के बेटे के साथ जिंदगी का नया सफर शुरू किया। संघर्ष तो बहुत था पर मैंने हार नहीं मानी। मैंने सम्बलपुर विश्वविद्यालय से एम ए,बी एड, एलएलबी किया है। संघर्ष करती रही और 1998 में मुझे डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल झारसुगड़ा (ओड़िशा) में शिक्षिका की नौकरी मिली। तब से फरवरी 2001 तक झारसुगुडा तथा 2001 से 2021 तक मैं डी ए वी पब्लिक स्कूल हिल टाॅप काॅलोनी में शिक्षिका रही। फरवरी 2021 में डी ए वी से अवकाश के पश्चात मैं अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 तक केंद्रीय विद्यालय में पी जी टी हिन्दी के पद पर कार्य की। वर्तमान अप्रैल 2023 से मैं सीतामढ़ी , बिहार में स्प्रिंग डेल इन्टरनेशनल गर्ल्स स्कूल मे शिक्षिका के पद पर कार्यरत हूँ ।
मेरे बेटे ने डी ए वी से प्रथम श्रेणी मे बारहवीं उत्तीर्ण किया ।फिर लवली प्रोफेशनल काॅलेज जलंधर से साइकलोजो में डिस्टिक्सन के साथ बी ए किया। वहीं से उसने सोशियालोजी मे एम ए किया। उसने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। उसने जिला स्तर एवं राज्य स्तर के खेल कूद मे कई पदक प्राप्त किया। वर्तमान वह पाइन ग्रोभ स्कूल हिमांचल मे पी जी टी सोशियोलोजी है और पी एच डी कर रहा। सिर्फ इतना ही कहना है कठिनाइयां तो जिन्दगी का एक हिस्सा है पर जीवन मे कभी हार नही मानना चाहिए। आज मैने समाज मेँ अपना मुकाम अपने दम पर हासिल किया।
सावित्री मिश्रा, झारसुगड़ा (ओड़िशा)।
छोटी-छोटी बात पर मार-पीट से तंग आकर अलग रह रहीं हैं सदफ़
लखनऊ की रहने वालीं सदफ़ जफ़र ऐसी ही सिंगल मदर हैं, जो दो बच्चों की मां हैं। उनकी शादी में काफ़ी परेशानी थी। अपना अनुभव साझा करते हुए 48 साल की सदफ़ कहती हैं, "शादी के बाद हम किराए के मकान में रहते थे। वो शुरू से ही छोटी-छोटी बात पर मार-पीट करते थे। हमारी शादी आठ साल चली। इन आठ सालों में वो हमेशा ही मार-पीट करते रहे।"
सदफ़ कहती हैं, ''एक दिन उन्होंने रात भर मुझे मारा और इससे तंग आकर मैंने आत्महत्या तक करने की कोशिश की। मैंने ग़ुस्से में नींद की गोलियां खा लीं, लेकिन ग़लती से वो गोलियां नींद की नहीं थीं, वो डिप्रेशन की थीं।''
''इस तरह मैं बच तो गई लेकिन दवाओं का साइड-इफेक्ट होना शुरू हो गया। उससे मैं बहुत ही चिड़चिड़ी और छोटी-छोटी बातों पर ग़ुस्सा करने लगी। मेरे इस बर्ताव से उन्हें मारने के और बहाने मिलने लगे और मारपीट बढ़ती गई।''
इतना होने के बाद भी रिश्ता तोड़ने की मैं हिम्मत नहीं जुटा पाई। एक दिन मेरे पति ख़ुद ही हम सब को अकेला छोड़ कर अपनी मां के पास चले गए। उनका अचानक जाना पहले तो बहुत ख़ला और मुझे मारपीट की आदत-सी भी पड़ गई थी, लेकिन धीरे धीरे मैंने जीना सीख लिया।
जब मेरे पति गए उस दिन से मैं अपने बच्चों के लिए अचानक बाप बन गई जो बाहर के काम करे और सारी ज़रूरतें पूरी करे। इसी बीच मेरी छह साल की बेटी कब मेरे ढ़ाई साल के बेटे की मां बन गई मुझे पता ही नहीं चला। पहले दोनों कमाते थे। ख़ुशियां तो नहीं थीं, लेकिन घर-परिवार सही चल रहा था। उनके जाने के बाद जीवन में इस तरह की परेशानी आने लगी कि कई बार बच्चों को भूखा सोना पड़ा। '' बिना रुके सदफ़ एक सांस में अपनी कहानी सुनाना शुरू करती हैं।
''ऑफिस से आने के बाद अगर बच्चे सोते हुए मिलते थे तो लगता था, शुक्र हैं सो रहे हैं। कम से कम अभी खाना तो नहीं मांगेंगे। मैं केवल नौ हज़ार ही कमाती थी और उसमें घर का किराया ही छह हज़ार था। ऐसे में घर का राशन, स्कूल की फीस, दवा और दूसरे खर्चे कहां से पूरे करती।''
सदफ़ के लिए ज़िंदगी इसलिए भी ज़्यादा कठिन थी, क्योंकि मायके में भी उनका साथ देने वाला कोई नहीं था। उनके पिता नहीं थे। मां अकेले रहती थीं। भाई कभी-कभार पैसे से मदद कर देता था. लेकिन उनका भी अपना परिवार था। पति जब सदफ़ और बच्चों को अकेला छोड़ गया तो उस समय बेटा हुमैद अली केवल ढ़ाई साल का था। बेटी कोनेन फ़ातिमा छह साल की थी। दोनों को अलग हुए 13 साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक तलाक़ नहीं हुआ।
सदफ़ जफ़र, लखनऊ सिटी।
5. कठिन परिस्थियों से लड़कर पास किया पीसीएस 2021 का परीक्षा
पूनम चौधरी कहती हैं हम बेशक 21वीं सदी में हैं लेकिन अब भी सिंगल मदर के लिए जिंदगी की राह उतनी आसान नहीं है। पूनम चौधरी 3 साल से बुलंदशहर के राजकीय इंटर कॉलेज में टीचर के तौर पर काम किया। अब यूपी पीसीएस 2021 परीक्षा पास करके वह राजकीय इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल बन गई हैं। पूनम चौधरी हर उस महिला के लिए मिसाल बन गई हैं, जो ज़िंदगी में आ रही किसी भी परेशानी से जूझ रही है।
पूनम चौधरी मूल रूप से बुलंदशहर की रहने वाली हैं। बीते 11 साल से वह मेरठ में रह रही हैं। शादी के 8 साल बाद पति से अलग होकर उन्होंने सिंगल मदर के तौर पर अपनी बेटी की परवरिश की है। पूनम चौधरी की बेटी रुशाली चौधरी दयावती मोदी एकेडमी में कक्षा 10वीं की स्टूडेंट हैं। पूनम के इस कठिन सफर में उन्हें अपनी बेटी, मां-बाप और भाइयों का पूरा साथ मिला। पति से अलग होने के बाद स्कूल में पढ़ाने और बेटी की परवरिश करने से जो भी समय मिलता था, उसमें वह पीसीएस परीक्षा की तैयारी करती थीं।
पूनम के लिए यह सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। वह पीसीएस प्री परीक्षा में पहले भी 3 बार शामिल हो चुकी थीं लेकिन मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू तक पहली बार पहुंची थीं। बीच में दो साल तबियत खराब होने की वजह से उनकी तैयारी पर ब्रेक लग गया था। फिर उन्होंने दोबारा तैयारी शुरू की और यूपी-पीसीएस 2021 में सफल होकर जीआईसी, बुलंदशहर की प्रिंसिपल बन गईं।
पूनम चौधरी, प्रिन्सिपल, मेरठ सिटी।
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