रॉकी और रानी की प्रेम कहानी

बात करती हूं रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की। यह फिल्म 10 दिन पहले रिलीज हुई है और सौ करोड़ी बन चुकी है। मैं पहले हफ्ते तबीयत की वजह से देख नहीं पाई। अब देखा तो लिखना लाजिम है...

रॉकी और रानी की प्रेम कहानी

मुंबई। सबसे पहली बात, करण जौहर की फिल्म की तारीफ में कई उंगलियां उठेंगी। पर मैं उनमें हूं, जिन्हें मसाला मुंबइया फिल्मों से खूब खूब प्यार है। मैटिनी शो से भी और पॉपकार्न से भी। जब तक भिलाई में थी, तो सिंगल स्क्रीन में सिगरेट, पसीने और यूरिन (जी, उस समय सब अलाउड था पिक्चर हॉल में) तो इंटरवेल में कागज में लिपटे गर्मागर्म समोसों का क्रेज था। जब तक वो ना मिलता, लगता ही नहीं मैटिनी देखी है। अब कुछ सालों से पॉपकॉर्न ने समोसों की जगह ले ली है।

सो, बात करती हूं रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की। यह फिल्म 10 दिन पहले रिलीज हुई है और सौ करोड़ी बन चुकी है। मैं पहले हफ्ते तबीयत की वजह से देख नहीं पाई। अब देखा तो लिखना लाजिम है।

दूसरी बात, करण जौहर की हर फिल्म मुझे अच्छी लगी हो, जरूरी नहीं है। पहली फिल्म कुछ कुछ होता है देख कर मजा तो आया था, पर जब फिल्म पचाने का मौका आया तो उसी रात लग गया कि कहानी में लोचा है। हीरो कहता रहता है जिंदगी में एक ही बार प्यार होता है और खुद जनाब को दो बार हो गया। फिर यह क्लीशे कि हीरोइन जब टॉम बॉय के लुक में रहती है तो हीरो को उससे मोहब्बत नहीं होती और जब वो सजने-संवरने लगती है तो दिल आ जाता है। लेकिन फिल्म की पैकेजिंग इतनी मजेदार थी कि देखते समय इन बातों पर ध्यान नहीं जाता था।

तो रॉकी और रानी में पहले उन बातों की तरफ ध्यान दिला दूं, जो अखर गया

1 दिल्ली के रिचीरिच पंजाबी परिवार का लड़का है तो किसी अच्छे स्कूल में ही पढ़ा होगा। फिर उसकी अंग्रेजी इतनी पैदल क्यों है?

2 लड्डू का बिजनेस करके कोई मिलियनेयर कैसे बन सकता है?

तीन-चार ऐसे छोटे-मोटे पाइंट हो सकते हैं जो अखरे हों। पर कुल जमा यहां भी पैकेजिंग इतनी शानदार है कि तीन घंटे पलक झपकते बीत जाते हैं। इस बार करण ने इश्क के कैनवास में कुछ और भी मुद्दे उठाए हैं, जेंडर सेंसिटिविटी, परिवारों के भीतर पसरी जड़ संस्कृति और स्त्री विमर्श भी। मैं फिल्म की कहानी में क्या ही जाऊं, हर कहीं है यह तो। पर धर्मेंद्र और शबाना की कैमिस्ट्री का जरूर जिक्र करूंगी। बेहद महीन सा रिश्ता, कोमल सा इश्क और नोस्टालजिक करने वाली अनुभूति। इन दोनों के अलावा कमल और जामिनी की भूमिका और कोई नहीं निभा सकता था। शबाना आजमी इतनी ग्रेसफुल लगी हैं कि उनके सामने जया बच्चन बेहद बौनी और हास्यास्पद सी उभरी हैं। शबाना को देख कर लगा कि यही वो नायिका थीं, जिनकी अर्थ और मासूम जैसी फिल्म ने मुझे इतना प्रभावित किया था कि जाने-अनजाने वो मेरा स्टाइल स्टेटमेंट बनता चला गया। शबाना आजमी एक बंगाली परिवार की दादी बनी हैं, कितना प्यारा बांग्ला बोलती हैं, आंखों से बात करती हैं और अदाओं से समझाती हैं।

फिल्म के नायक-नायिका आलिया भट्ट और रनवीर सिंह के बीच की समझ खूबसूरत है, इश्क  दिखता है और महसूस भी होता है।

जो अच्छा है बस इतना ही

इससे ज्यादा गंभीरता, काले-खुपच्चे कोने, बेबात की बात और हताशा तलाशने जाएंगे तो शायद निराश होंगे।

कभी-कभी बिना तर्क के, सीट पर पीछे सिर टिका कर एंजॉय करना भी आना चाहिए...

धीरे धीरे गुनगुनाना भी चाहिए, अभी ना जाओ छोड़ कर ये दिल अभी भरा नहीं।