इन 9 श्राप के कारण नहीं होती संतान की प्राप्ति, पढ़ें संतान प्राप्ति के श्रेष्ठ फलदायक उपाय

संतान प्राप्ति के अचूक उपाय आप भी जानना चाहतें हैं तो हमारा ये आर्टिकल जरूर पढ़ें ....

इन 9 श्राप के कारण नहीं होती संतान की प्राप्ति, पढ़ें संतान प्राप्ति के श्रेष्ठ फलदायक उपाय

फीचर्स डेस्क। संतान सुख सभी दंपति के लिए जगत का सबसे बड़ा सुख होता है। हम आपको यहां बताने जा रहे हैं संतान प्राप्ति के अचूक उपाय जिन्हें अपनाकर आपकी मनसा पुरी हो जाएगी और आपको संतान सुख प्राप्ति होगा। ज्योतिष मान्यता के अनुसार वैसे तो कई तरह के श्राप या योग बताए गए हैं जिसके चलते पहले तो संतान नहीं होती है, संतान हो जाती है तो संतान को कष्ट होता है या संतान की मृत्यु भी हो सकती है। पराशर संहिता में भी कुछ इसी तरह के श्रापों का वर्णन किया गया है।

1- सर्प श्राप

इस शाप के प्रमुख आठ योग या प्रकार बताए गए हैं। यह योग राहु के कारण बनता है। इसके लिए नाग प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक पूजा की जाए और अंत में हवन कर दान किया जाए तो इस शाप का प्रभाव नष्ट हो जाता है। इससे नागराज प्रसन्न होकर कुल की वृद्धि करते हैं।

2- पितृ श्राप

कहते हैं कि यदि किसी जातक ने गतजन्म में अपने पिता के प्रति कोई अपराध किया है तो उसे इस जन्म संतान कष्ट होता है। यह कुल मिलाकर 11 योग या दोष है। यह दोष या योग सूर्य से संबंधित है। इसके अलावा अष्टम स्थान में राहु या अष्टमेश राहु से पापाक्रांत हो तो इसको पितृ दोष या पितर शाप भी कहा गया है। इसके उपाय हेतु पितृश्राद्ध करना चाहिए।

3- मातृ श्राप

ज्योतिष मान्यता अनुसार पंचमेश और चंद्रमा के संबंधों पर आधारित यह योग बनता है। मंगल, शनि और राहु से बनने वाले ये कुल 13 प्रकार के योग है। गत जन्म में किसी जातक ने यदि माता को किसी भी प्रकार से कष्ट दिया है तो यह योग बनता है। इसके उपाय के लिए माता की सेवा करना जरूरी है। इसके अलावा उक्त ग्रहों की शांति कराएं।

4- भ्रातृ श्राप

यह योग भी कुल 13 प्रकार का है जो कि पंचम भाव, मंगल और राहु के चलते बनता है। यदि किसी जातक ने गतजन्म में अपने भाई के प्रति कोई अपराध किया है तो यह शाप बनता है। इसके उपाय हेतु हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करें, हरिवंश पुराण का श्रवण करें, चान्द्रायण व्रत करें, पवित्र नदियों के किनारे शालिग्राम के सामने पीपल वृक्ष लगाएं तथा पूजन करें।

5- मामा (मातुल) का श्राप

यह योग पंचम भाव में बुध, गुरु, मंगल एवं राहु और लग्न में शनि के चलते बनता है। इस योग में शनि-बुध का विशेष योगदान होता है। कहते हैं कि‍ पिछले जन्म में जातक ने अपने मामा को किसी भी प्रकार से घोर कष्ट दिया होगा तो यह कुंडली में योग बना। इसके उपाय हेतु तालाब, बावड़ी, कुआं आदि बनवाने का विधान है। उसे बनवाकर वहां भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करें।

6- ब्रह्म श्राप

यह योग या दोष कुल 7 प्रकार का होता है। नवें भाव में गुरु, राहु या पाप ग्रहों से यह योग बनता हैं। कहते हैं कि गत जन्म में किसी भी जातक ने यदि किसी ब्राह्मण को घोर कष्ट दिया है तो यह शाप बनता है। इसकी शांति हेतु पितृ शांति करें और फिर प्रायश्चित स्वरूप ब्राह्मणों को भोज कराकर उन्हें दक्षिणा दें।

7- पत्नी का श्राप

यह कुल 11 प्रकार का दोष या योग है जो सप्तम भाव में पाप ग्रहों के चलते बनता है। कहा जाता हैं कि यदि किसी जातक ने गत जन्म में अपनी पत्नी को मृत्यु तुल्य कष्ट दिया होगा तो ही यह योग बना। इसके उपाय हेतु कन्याओं को भोज कराएं और किसी कन्या का विवाह कराएं।

8- प्रेत श्राप

यह कुल 9 योग बताए गए हैं। खासकर यह दोष सूर्य और नवें भाव से संबंधित हैं। कहते हैं कि जो जातक अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है वह अगले जन्म में निसंतान हो जाता है।

इस दोष की निवृत्ति के लिए पितृश्राद्ध अवश्य करें।

9- ग्रह दोष

यह योग कई प्रकार का होता है। यदि बुध और शुक्र के दोष में संतान हानि हो रही है तो इसके लिए भगवान शंकर का पूजन, गुरु और चंद्र के दोष में संतान गोपाल का पाठ, यंत्र और औषधि का सेवन, राहु के दोष से कन्या दान, सूर्य के दोष से भगवान विष्णु की आराधना, मंगल और शनि के दोष से षडंग शतरुद्रीय जप कराने चाहिए।

संतान में रुकावट के कारण

जब पंचम भाव का स्वामी सप्तम में तथा सप्तमेश सभी क्रूर ग्रह से युक्त हो तो वह स्त्री मां नहीं बन पाती। पंचम भाव यदि बुध से पीड़ित हो या स्त्री का सप्तम भाव में शत्रु राशि या नीच का बुध हो, तो स्त्री संतान उत्पन्न नहीं कर पाती।

पंचम भाव में राहु हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो, सप्तम भाव पर मंगल और केतु की नजर हो, तथा शुक्र अष्टमेश हो तो संतान पैदा करने में समस्या उत्पन्न होती हैं। सप्तम भाव में सूर्य नीच का हो अथवा शनि नीच का हो तो संतानोत्पत्ति में समस्या आती है। कुडंली में पंचम भाव संतान व उससे संबंधित कारक तत्वों को बताता है। पंचम भाव व पंचमेश अर्थार्थ पंचम भाव के स्वामी आपके जीवन में संतान से संबंधित कर्मों कोबताते हैं। इसके साथ ही गुरु यानि बृहस्पति को संतान प्राप्ति का मुख्य कारक माना जाता है। इसके अतिरिक्त संतान प्राप्ति के लिए लग्न कुंडली में नवम भाव व नवम भाव के स्वामी की स्थिति का भी विश्लेषण किया जाता है। नवमांश कुंडली के पंचमेश व पंचम भाव, लग्न का स्वामी व सप्तांश कुंडली के पंचमेश, संतान संबंधी जानकारी को साँझा कर रहें हैं। यदि पंचमेश, पंचम भाव व गुरु क्रूर ग्रहों के दोष से प्रभावित हो जाएं तो कभी-कभी संतान सुख में विमम्ब हो सकता है। शनि के दुष्ट प्रभाव से संतान प्राप्ति में देरी या इसका अभाव भी हो जाता है। मंगल एवं केतु के दुष्प्रभाव से शारीरिक कष्ट हो जाता है। तो वहीं राहु व केतु संतान से संबंधित नकारात्मक कर्मों का संकेत देते हैं। राहु-केतु कालसर्प दोष प्रजनन क्षमता से संबंधित हानि पहुचता है।

राहु गुरु या नवमेश को प्रभावित करके पितृ दोष उत्पन्न करता है जिसके चलते भी संतान सुख प्राप्त करने में कष्ट हो सकता है। वैसे संतान की प्राप्ति में षष्ठेश, अष्टमेश व द्वादेश भी बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। ऐसे में यदि गुरु यानि बृहस्पति नीच का हो या बलहीन हो तो संतान का सुख मिलना लगभग असंभव हो जाता है। क्योंकि पंचम भाव संचित कर्मों को भी बताता है, ऐसे में इस भाव को देख कर भी संतान से संबंधित सुख या कष्ट की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

कुंडली में पंचमेश के प्रभाव को बढ़ाएं

यदि लग्न कुंडली में पंचमेश पीड़ित हैं तो उनकी आराधना करें, ऐसा करने से इसका दुष्प्रभाव कम होगा और सकारात्मक प्रभाव बढ़ेगा।

गुरु को कैसे करें प्रसन्न

बृहस्पति की आराधना करना संतान प्राप्ति का सरल उपाय है। क्योंकि गुरु के बलहीन होने से भी कई बार संतान का सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। ऐसे में संतान प्राप्ति का मुख्य कारक गुरु यानि बृहस्पति ग्रह के प्रभाव को मज़बूत करने व बढ़ाने के लिए उसका पूजन करें। वैसे गुरुवार के दिन गुड़ दान करने से भी संतान सुख प्राप्त होता है। इसके साथ ही गुरुवार के दिन गरीबों में गुड़ बाँटें। गुरु ग्रह को शक्तिशाली बनाने के लिए इन 2 मंत्रों का जाप करें-

1- देवानां च ऋषिणां च गुरुं काञ्चनसन्निभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।

2- ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः। ह्रीं गुरवे नमः। बृं बृहस्पतये नमः।

इन पूजा अनुष्ठान के तरीकों को अपनाकर भी आपको संतान की प्राप्ति हो सकती हैः

संतान गोपाल (बाल गोपाल) पूजा

संतान प्राप्ति के उपाय में यह श्रेष्ठ उपाय है। बाल गोपाल भगवान श्री कृष्ण के बचपन का रूप है। उनकी पूजा करने से आपकी सभी समस्याएं व बाधाएँ दूर हो जाएंगी व आपकी गोद जल्द भर जाएगी। संतान गोपाल पूजा विवाहित जोड़ों यानि पति-पत्नी दोनों व उनके परिवार के सदस्यों को करनी चाहिए।

संतान गोपाल मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।

स्कन्द माता पूजा

मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक रूप स्कन्द माता का है। शेर पर सवार व गोद में भगवान कार्तिक को बिठाए स्कन्द माता अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं। इनके पूजन से मातृत्व सुख प्राप्त होता है। स्कन्द माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस मंत्र का जाप करें-

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

षष्ठी पूजा

स्कन्द माता के साथ-साथ भगवान सुब्रमण्यम अर्थार्त कार्तिकेय की षष्ठी पूजा करने से भी संतान से संबंधित नकारात्मक प्रभाव ख़त्म होते हैं और संतान प्राप्ति के रास्ते में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। षष्ठी पूजा मंत्र का प्रतिदिन जाप करें

ॐ कार्तिकेय विद्महे: शक्ति हस्ताय धीमहि तन्नो स्कंद प्रचोदयात्

पितृ दोष का करें उपाय

अनेक परिवारों में उनके पूर्वजों के अंतिम संस्कार के दौरान कुछ अनुष्ठान ठीक से न करने पर भी संतान संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। इस पितृ दोष को मिटाने के लिए पूर्वजों का विधि पूर्वक श्राद्ध करें। इन अनुष्ठानों को करने से बच्चों के जन्म से संबंधित रुकावटें व बाधाएं दूर होंगी। पितृ दोष का पूजन करना संतान प्राप्ति का श्रेष्ठ उपाय है।

गर्भ गौरी रुद्राक्ष

मां गौरी व उनके पुत्र श्री गणेश को दर्शाता है। गौरी शंकर रुद्राक्ष की तरह ही गर्भ गौरी रुद्राक्ष के भी दो भाग होते हैं। पहला भाग दूसरे के मुकाबले छोटा होता है। बड़े आकार वाला रुद्राक्ष माता गौरा यानि पार्वती को दर्शाता है जबकि छोटे आकार वाला रुद्राक्ष भगवान गणेश को इंगित करता है।

ये उन महिलाओं के लिए बहुत लाभकारी है जिन्हें गर्भपात का भय है और जो मातृत्व सुख को प्राप्त करने के लिए विचलित हैं। जीवन में प्रसन्नता एवं संतुष्टि प्राप्त करने के लिए गर्भ गौरी रुद्राक्ष को गले में धारण कर सकती हैं। इससे महिलाओं को ममता का सुख अवश्य प्राप्त होगा। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार गर्भ गौरी रुद्राक्ष बहुत शुद्ध होता है और इसके प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। वो महिलाएं जो गर्भ धारण नहीं कर पा रहीं या जिन्हें गर्भपात का डर है वे गर्भ गौरी रुद्राक्ष धारण कर सकती हैं। ये मां और सन्तान के बीच के संबंधों को भी गहरा करता है। संतान प्राप्ति के उपाय में गर्भ गौरी रुद्राक्ष धारण करना अच्छा माना गया है।

अपने पूजा स्थल पर गर्भ गौरी रुद्राक्ष को स्थापित करके 108 बार

ॐ नमः शिवाय

का जाप करने से भी लाभ प्राप्त होता है।

इनपुट सोर्स : ज्योतिषाचार्य एवं हस्तरेखार्विंद, विनोद सोनी पोद्दार, भोपाल सिटी।