लघु कथा: पर उपदेश कुशल बहुतेरे

आसान बहुत है देना उपदेश जब स्वयं पालन करने का आता समय, दिख जाता है उपदेशी का भेष। दूसरों को उपदेश देने से बहुत लोग, स्वयं को रोक नहीं पाते बहुत व्यक्ति अपने इस स्वभाव के होते है अधीन उनके इस स्वभाव को बदलना है बहुत ही कठिन.....

लघु कथा: पर उपदेश कुशल बहुतेरे

फीचर्स डेस्क। मनोज अपने मामाजी की बहुत इज्जत करता था और करता भी क्यों नहीं। उसके मामा जी काफी विद्वान व्यक्ति है और एक सरकारी विभाग मे वरिष्ठ अधिकारी है। समाज मे उनकी काफी इज्जत है । लोग उन्हे अपना आदर्श मानते है । उनकी बाते लोगों के लिए अनुकरणीय समझी जाती है । मामा जी सभी को हमेशा अपने माँ –पिता की सेवा करने , गरीबों की सहायता करने इत्यादि बाते समझाते है । नौकरी लगने के दो वर्ष बाद मनोज की शादी एक अच्छे परिवार की सुन्दर लड़की मानवी से हुई । मामाजी बहू देखने के लिए मनोज के घर पर आए । उन्होने मनोज को कहा की बेटा शादी के बाद बदल मत जाना और मेरी बहन और बहनोई का ध्यान रखना । चलते समय उन्होने अपने घर पर मनोज को अपनी पत्नी के साथ खाने के लिए आमंत्रित किया। मनोज बचपन से अपने मामाजी जी को  आदर्श मानता था तथा उनके सामने जाने से सकुचाता था। माँ –बाबूजी के बहुत कहने पर वह मानवी के साथ अपने नानी के घर गया। सभी ने काफी स्वागत किया । मनोज की बूढ़ी नानी को आँख से कम दिखता था  और नाना जी के गुजर जाने के बाद से नानी काफी दुखी रहती थी। अपने नाती और उसकी बहू को देखकर  नानी  गद- गद हो गई । मनोज और मानवी को भी नानी से मिलकर  बहुत खुशी हुई । खाने के समय सभी लोग खाना खाने के लिए डिनर टेबल पर बैठे ,लेकिन मनोज को अपनी नानी कहीं नजर नहीं आई । जब उसने मामा जी से पूछा तो वे टाल -मटोल करने लगे । मनोज हाथ धोने के बहाने जब वॉश बेसिन की तरफ गया तो देखा की नानी, नौकर के कमरे मे बिना बिस्तर के खाट पर भूखे ही लेटी है। सबको ज्ञान देने वाले मामाजी का नानी के प्रति यह व्यवहार देखकर मनोज को काफी गुस्सा आया और गुस्से मे उसने बिना खाना खाए मानवी के साथ मामा के घर से चला गया। लेकिन , जाते जाते उसने अपने मामा जी को नीचे  लिखी पंक्तियों को सुनाते हुए कहा “पर उपदेश कुशल बहुतेरे”।

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पर उपदेश कुशल बहुतेरे
आई अपनी बारी तो फिर क्यों मुँह मोड़े
आसान बहुत है देना उपदेश
जब स्वयं पालन करने का आता समय
दिख जाता है उपदेशी का भेष
दूसरों को उपदेश देने से बहुत लोग
स्वयं को रोक नहीं पाते
बहुत  व्यक्ति अपने इस स्वभाव के होते  है अधीन
उनके इस स्वभाव को बदलना है बहुत ही कठिन
अनावश्यक उपदेश और बिना माँगे सुझाव
दूसरों के हृदय को देता है घाव
उपदेश देने वाला
दूसरे की अपेक्षा स्वयं को ज्ञानवान है समझता
स्वयंभू ज्ञानी प्रदर्शित करने करने का
कोई भी अवसर नहीं छोड़ता
दिये गए उपदेशों को
स्वयं अपने जीवन में उतार पाना होता बहुत कठिन
लेकिन अपने दिखावे मे
दूसरों के मन को करते ये स्वयंभू ज्ञानी मलिन
उपदेशक की बातों का होगा आनंदपूर्वक अवश्य अनुसरण
पर
स्वयं भी लाए अपने उपदेशों को उपदेशक अपने आचरण॥

इनपुट सोर्स: राजीव रंजन शुक्ल