हमने अफगान गंवा दिया...

हमने अफगान गंवा दिया...

तापस चतुर्वेदी

अफगान-तालिबान मसले का भारत पर बहुत बुरा असर आना निश्चित है। व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। ड्राई फ्रूट से लेकर प्याज तक परेशानी है। मैं सोच रहा हूं कि भारत ने अमेरिका के जाने की खबर जानकर अपनी तरफ से क्यों कुछ न किया? बहुत समय था।

मेरा विचार बड़ा अजीब और अहमकाना लग सकता है लेकिन अगर वहां लगा हमारा बड़ा पैसा, हमारे लोग और हमें सपोर्ट और पाकिस्तान को दूर रखनेवाली सरकार खतरे में थे, काहे हमारी आर्मी वहां नहीं उतारी? गनी पहले अमेरिका का पिट्ठू था, आगे हमारा हो जाता। नया नारा नरेट होता ~ हिंदुस्तान सबसे प्यारा है, अफगानिस्तान भी हमारा है।

रसिया ने ट्राई किया, अमरीका ने ट्राई किया, हमको भी एकाध साल आजमा लेना था। लगा देते दो-पांच हजार सैनिक। पांच-दस फाइटर प्लेन। एक किलो मौलाना, आधा दर्जन सीधे बाड़ी से लाए पके हुए पादरी और शंकरजी की अंग्रेजी में पूजा करने वाले मुट्ठीभर सद्गुरु। क्या मल्टीडायमेंशनल कब्जा होता!

हम चलाते अफगानिस्तान। पाकिस्तान प्रेशर में। चीन का सिल्क रुट खटाई में। "अमरीका नहीं झेल पाया खर्चा, हम क्या संभालते"- कहना बाद की बात होती। हम वहां भी मोनेटाइजेशन करते। मोदीजी ये गनी घाटे में चल रहा है, क्या करें इसका?

मोदी कहते- इसके अशरफ का मोनेटाइजेशन करो। गनी हमारे पास रहेगा, अशरफ को इन्वेस्टर्स संभालेंगे।

अखंड भारत के नक्शे में अफगानिस्तान आता है। यही मौका था।

मोदीजी ने अफगान संसद के उद्घाटन अवसर पर जंजीर फिल्म के शेर खान का जिक्र करते हुए कहा था, यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी। उधर तालिबान ने शेर खान की दाढ़ी नोच ली, इधर म्हारे मोदीजी दाढ़ी बढ़ाते रहे।

तालिबान भारत की जियो पॉलिटिक्स खराब करेगा। ऊपर से कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद की ताकत बढ़ेगी। देखा नहीं वो मुफ्ती चाची कश्मीर वाली कैसे कह रही थी “हमारे सब्र का इम्तेहान मत लो”। इनडारेक्टली महबूबा चाची बताना चाह रही थी अफगानिस्तान में तालिबान आ गया है अब कश्मीर क्या दूर है? पीओके से तालिबान की मदद करने आतंकी गए थे जिनके लौटने पर बंदूकाना  स्वागत हुआ है। अफगान जलेबी गाने के फिल्मांकन सा। जाहिल कबीलों में जैसा नाच होता है, घटिया मोटरसाइकिलों में वैसी रैली निकल रही थी।

अपन पीओके को अपना कहते हैं और डिफेंस में रहते हैं। वहां से आतंकवादी आएगा तो उसको मारेंगे। तालिबान साला आतंकवादियों की फौज है। वो देर-सबेर इधर उंगली करेगा। हम हाथ नहीं उखाड़ेंगे, उंगली का इंतजार करेंगे। पाकिस्तान-चीन मिलकर अफगानिस्तान चलाने जा रहे हैं। मुसीबत सबसे ज्यादा हम पर आनी है। लेकिन कुछ बहुत अंदर की सूचनाएं कहती हैं तालिबान से बात चल रही है। ये वो तालिबान नहीं है और हम पुराने भारत भी नहीं हैं।

मैं  कहना चाहता हूं - ना मुन्ना ना...हमने अफगानिस्तान गंवा दिया।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)