भैया ये गाड़ी बिठूर जाएगी?
मैं ट्रेन में चढ़ने लगा वो औरत भी मेरे पीछे चढ़ गयी, मेरी सीट बोगी के पहले हीं कम्पार्टमेंट में थी तो वो सीट तक आ धमकी। मैं कुछ कहता इससे पहले उसने खुद कहा,"हम किसी बड़े स्टेशन पर उतर जायेंगे, क्या तब तक हम आपकी सीट पर बैठ सकते हैं….
फीचर्स डेस्क। रात के ढाई बजे रहे थे, मनकापुर नाम का स्टेशन, पहले से हीं लेट ट्रेन न जाने क्यूँ इस जगह आकर रुक गयी थी, दरवाजे को खोलकर बाहर देखा तो दूर दूर तक प्लेटफॉर्म पे कोई नजर नही आया। कमसे कम आर पी एफ के जवानों को तो होना चाहिये था पर मुझे वहाँ कोई न दिखा। मैं नीचे उतर आया सिग्नल लाल थी , मुझे मालूम था ट्रेन अब यहाँ कुछ देर जरूर रुकेगी मैंने सिगरेट और माचिस निकाल ली। अभी सिगरेट जलाई हीं थी कि अचानक से एक 32-35 साल की महिला अपने साथ एक छोटे लड़के को लेकर मेरे सामने खड़ी हो गयी।"भैया ये गाड़ी बिठूर जाएगी?"
"नही, ये तो उधर से ही आ रही है, अब तो ये पटना जाएगी ।" मैंने जवाब दिया।
"कोई बात नहीं, हम भी पटना चल चलेंगे।"
"क्या मतलब, आपको पता नही आपको कहाँ जाना है? टिकट कहाँ का है आपका?" मुझे उनकी बातें बहुत अजीब सी लगी ।
सिगरेट खत्म होने को आई, सिग्नल अब भी लाल ही था, और दिसम्बर की वो रात अचानक से और भी ज्यादा ठंडी लगने लगी। औरत का चेहरा बिल्कुल भावहीन लग रहा था।
थोड़ा ठहर कर वो औरत बोली,"टिकट घर बन्द है, काउंटर पर कोई नहीं बैठा।"
"पर आपको तो पता होगा न आपको कहाँ जाना है?" मुझे वो घर से भागी हुयी सी लग रही थी।
एक अजीब सी बात थी ट्रेन रुके हुए वक़्त हो गया था पर अभी तक मेरे अलावा मुझे और कोई ट्रेन से उतरता नही दिखा, और अब भी पूरे प्लेटफॉर्म पर कुछ कुत्तों को छोड़ सिर्फ हम तीन जन ही दिख रहे थे।
"हाँ, पता है ?" बिना किसी भाव को दिखाए हुए उसने कहा, नही ये घर से भागी नही हो सकती , भागी होती तो बदहवास सी होती घबराई हुई, पर ये महिला तो बहुत हीं सहेजकर धीमें धीमें बात कर रही थी, पागल भी नही हो सकती थी , अभी तक तो इसने ऐसे कोई लक्षण नही दिखाए जो इसको पागल कह सकूँ, तो फिर ये ऐसी बातें क्यूँ कर रही थी।
अचानक ट्रेन की सिग्नल हरी हो गयी और ट्रेन ने हॉर्न दिया।
मैं ट्रेन में चढ़ने लगा वो औरत भी मेरे पीछे चढ़ गयी, मेरी सीट बोगी के पहले हीं कम्पार्टमेंट में थी तो वो सीट तक आ धमकी ।
मैं कुछ कहता इससे पहले उसने खुद कहा,"हम किसी बड़े स्टेशन पर उतर जायेंगे, क्या तब तक हम आपकी सीट पर बैठ सकते हैं?"
रात का वक़्त , नींद आ रही थी , ऊपर से अनजान महिला जिसकी कोई बात मुझे समझ नही आ रही थी , फिर भी मैंने हाँ में सिर हिला दिया।
रेलवे वालों ने कम्बल दिया था मैंने बच्चे को दे दिया , मैं अपनी सीट पर और वो औरत अपने बच्चे के साथ नीचे सो गयी।
हालांकि रेलवे के ऐसी क्लास में ठंड में हीटर की व्यवस्था होती है फिर भी ठंड बहुत थी , खैर बैग में से चादर निकाल ओढ़ कर सो गया।
पूरी रात वो औरत अपने बच्चे को लोरी सुनाकर सुलाती रही ।
सुबह के 6 बजे
बच्चे के रोने की आवाज से नींद खुल गयी , देखा तो मजमा लगा हुआ था, रात वाला बच्चा नीचे कम्बल पर पड़ा रो रहा था और आस पास के सीट वाले लोग कौतूहल से उसे देख रहे थे, वो औरत कहीँ नजर नही आ रही थी।
चुँकि बच्चा जिस कम्बल पर सो रहा था वो मेरा था तो लोगो ने मुझसे प्रश्न पूछना शुरू कर दिया ।
मेरे पास जो जवाब था , उसमे फँसने के चांस थे तो मैंने बच्चे को जानने से इनकार कर दिया और कम्बल के बारे में पूछने पर कह दिया कि नींद में गिर गया होगा और किसीने बच्चे को उसमे सुला दिया।
काफी बतकही होती रही और ट्रेन हाजीपुर आ गयी , मुझे यहीं उतरना था तो मैं उतरने लगा पर लोगों ने कहा कमसे कम जी आर पी को खबर कर दो लावारिस बच्चे की , सो मैंने कर दी और स्टेशन से बाहर निकल आया ।
बाहर निकल एक चाय की दुकान पर रुका और चाय बोल दी ,जब तक चाय बने तब तक अखबार देख लूँ ये सोच सामने रखा अखबार उठा लिया, पन्ने पलटते हुए अचानक एक तस्वीर पर नजर गड़ गयी , खबर का शीर्षक था, "महिला ने की आत्महत्या" , पूरी खबर इस प्रकार थी 'अपने लापता बच्चे को ढूंढने में असफल महिला ने फांसी लगाकर की आत्महत्या ,खबर गोरखपुर की थी ।' महिला की फ़ोटो वही थी जिससे मैं कल रात मिला था बच्चे के साथ अचानक अखबार की तारीख पर ध्यान पड़ा तो देखा ये तो दो रोज पहले का अखबार है।
ठंड फिर इक दफा बहुत ज्यादा बढ़ने लगी थी।
इनपुट सोर्स : विनीत श्रीवास्तव