इस मंदिर के बल पर टिके है माउंट आबू के पहाड़,पूजा जाता है जहां शिवजी का अंगूठा जानिए ऐसे मंदिर के रहस्य को

पूरे भारत में शिव जी के ऐसे अनेक मंदिर है जो आज भी अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए है। आज हम बताएंगे आपको माउंट आबू के एक ऐसे मंदिर के बारे में जहां होती है शिव की अंगूठे के रूप में पूजा….

इस मंदिर के बल पर टिके है माउंट आबू के पहाड़,पूजा जाता है जहां शिवजी का अंगूठा जानिए ऐसे मंदिर के रहस्य को

फीचर्स डेस्क। सावन का पवित्र माह शुरू हो चुका है। भोलेनाथ की कृपा दृष्टि पाने के लिए पूरे माह भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है। भोलेनाथ को ये माह बहुत प्रिय है। सावन माह में हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताएंगे जहां भोलेनाथ न मूर्ति रूप में विराजमान है न ही लिंग रूप में। यहां भोलेनाथ का अंगूठा स्वरूप है। बेहद रोचक और रहस्यमई ये मंदिर बहुत मान्यता वाला है। यहां आकर भक्तों की दर्शन मात्र से ही सभी मनोकामना पूरी होती है।

अचलेश्वर महादेव मंदिर

ये मंदिर धौलपुर राजस्थान माउंट आबू में स्थित है। यहां शिवजी का जो रूप आपको देखने को मिलेगा वो कहीं नहीं मिलेगा। यहां शिव जी अंगूठे के रूप में विराजमान है। शिव जी के पैर के अंगूठे की यहां पूजा होती है। जब आप मंदिर में प्रवेश करेंगे तो आपको यहां पांच धातुओं की बनी नंदी की प्रतिमा जिसका भार 4 टन है के दर्शन होंगे। मंदिर के अंदर गर्भगृह में शिवलिंग है जो पाताल खंड के रूप में दिखता है। इसके ऊपर आपको अंगूठे का उभार दिखेगा। ये शिवजी के दाहिने पैर का अंगूठा है। ऐसा माना जाता है कि इसी अंगूठे ने माउंट आबू के पहाड़ों को पकड़े रखा है। जिस दिन ये निशान अदृश्य हो जायेगा इस दिन समझिए ये पहाड़ भी नष्ट हो जाएंगे। अचलेश्वर यानि की अचल है ये मंदिर। यहां अचलेश्वर मंदिर धौलपुर में दिन में तीन बार शिवलिंग अपना रंग बदलता है। सावन के माह और शिवरात्रि में इस मंदिर में भक्तों की बहुत भीड़ रहती है। स्कंदपुराण में माउंट आबू को शिव जी की उपनगरी कहा जाता है। क्योंकि यहां शिवजी के पुरातन कई मंदिर उपस्थित है।

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मंदिर से जुड़ी कहानी

आज जहां आपको आबू पहाड़ दिखता है वहां कभी विराट ब्रह्म खाई थी। जिसके तट पर वरिष्ठ मुनि रहते थे। एक बार इस खाई में उनकी कामधेनु गाय गिर गई जिसे बचाने के लिए मुनि ने देवी सरस्वती और माता गंगा को पुकारा। ब्रह्म खाई पानी से पूरी भर गई और कामधेनु गाय बाहर आ गई। ऐसी घटना भविष्य में फिर कभी ना हो इसके लिए मुनि हिमालय गए और ब्रह्म खाई को पाटने की प्रार्थना की। हिमालय ने अपने पुत्र नंदी वद्र्धन को वहां भेज दिया। अरबुद नाग की मदद से नंदी वद्रधन ब्रह्म खाई के पास आया। वशिष्ठ आश्रम आकर नंदी ने ये वर मांगा कि ये पहाड़ सबसे खूबसूरत सभी तरह की वनस्पतियों से सुशोभित होना चाहिए। साथ ही इसी पहाड़ में सभी सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए।अरबूद नाग ने भी ये प्राथना की कि इस पहाड़ का नाम उसके नाम से जाना जाए तो वशिष्ठ ऋषि ने ये आशीर्वाद दे दिया दोनों को। वरदान पाकर नंदी वद्रधन खाई के नीचे उतरा और धंसता चला गया। बस उसकी नाक और ऊपर का हिस्सा ही धरती के ऊपर शेष बचा। ये हिस्सा ही अब आबू पर्वत कहलाता है। इसके बाद भी ये पर्वत स्थिर नहीं था तब वशिष्ठ मुनि शिव जी के पास गए। तब उन्होंने अपने दांए पैर के अंगूठे को फैलाकर इस पहाड़ को स्थिर किया। इस अंगूठे के नीचे जो प्राकृतिक खड्डा है जिसे पाताल खड्डा कहते है वो भी एक रहस्य है। इसमें चाहे कितना भी जल डालो गायब हो जाता है। इसका पानी कहां जाता है किसी को कुछ पता नहीं।

तो ऐसे रहस्यों से भरा है ये मंदिर। मौका मिले तो दर्शन लाभ जरूर उठाए।

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