मायका...

मायका...

फीचर्स डेस्क। मायके की बैठक में बैठ कर 'गुंजन' सोच रही कि क्यों आई? वो भी सरप्राइज दूँगी सोच कर। कुछ सालों पहले तक जो घर उसका था उसमें अब उसके लिए ही जगह नहीं है शायद। पाँच मिनट में पचास बार वापस लौट जाने का खयाल आया उसके मन में। फालतू में दस दिनों के लिए आई, अच्छा होता ऐन शादी के दिन पतिदेव के साथ आती। उफ्फ! कितना अजीब लग रहा है। उसे पता है इसमें किसी की गलती नही है, पर क्या करे वो भी अपने मन से मजबूर है।

शादी के बाद दस साल तक तो मायके में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया था। माँ पापा भी प्रौढ़ थे बूढ़े नहीं और भाई के बच्चे छोटे थे। पर हर बार जाने पर गुंजन को लगता वो थोड़ी सी कट गई, थोड़ा सा कुछ अटक गया, धीमे ज़हर की तरह शायद उसके मन में।पहले उसके कमरे में भतीजी का प्रवेश हुआ तो मायके आने पर वो उसके साथ ही अपने कमरे में रहती। छत पर भतीजे के लिए कमरा बना था। फिर भतीजी बड़ी हो गई तो कभी बोर्ड की परीक्षा कभी कोई प्रवेश परीक्षा तब गुंजन को मायके आने पर बैठक में एडजस्ट करना पड़ता। फिर पापा चल बसे, वो मायके जाती तो माँ के साथ रहती और फिर कुछ सालों बाद माँ भी चल बसीं। माँ की तेरहवीं तक वो उसी कमरे में रही क्योंकि उसका मायका उसी कमरे में सिमट गया था और वो मायके से दूर होती जा रही थी। धीरे-धीरे उसका मायके आना बहुत कम और बहुत कम समय के लिए होने लगा और कुछ सालों बाद धीरे-धीरे वो मन का ज़हर बढ़ कर घाव फिर नासूर बनता गया ऐसा नासूर जो किसी को दिखा भी नही सकती थी। आज अपनी शादी के लगभग सोलह सालों के बाद भतीजी की शादी में दस दिनों के लिए आई है तो भैया को समझ नहीं आ रहा कि उसे कहाँ रोकें, उसे किसी होटल में रुकने को बोल दें। अम्मा वाले कमरे को तो स्टोर बना दिया है, शादी का सामान भरा पड़ा है।

"सुनो गुंजन क्या तुम मेरे कमरे में अपनी भाभी के साथ रह सकती हो? मैं ऊपर सोनू के कमरे में शिफ्ट हो जाता हूँ।"

 "पर भैया शादी का समय है आपको अपने कमरे में भाभी के साथ ही रहना चाहिए।"

तभी भतीजी 'मिली' दौड़ती हुई आई और "बुआआआआ" कह कर गुंजन के गले से लटक गई और बोली "थैंक यू! बुआ इतने दिनों के लिए आने के लिए, कितना प्यारा सरप्राइज है, आपका समय बेस्ट गिफ्ट है मेरे लिए, बुआ प्लीज़! आप मेरे साथ अपने कमरे में रुकिए ना फिलहाल वो कमरा तो हम दोनों का ही है ना हम दोनों खूब मस्ती करेंगे।"

 शायद वो गुंजन से ज्यादा समझदार है या शायद उसको भी अपना भविष्य पता लग गया है। नहीं नहीं! मिली बहुत समझदार है, मेरी तरह कोई पूर्वाग्रह नही है उसके मन में, ये सोचकर गुंजन की आँखे भर आईं। भैया गुंजन का सामान मिली के कमरे में पहुँचा रहे हैं और उनकी आँखे भी नम हैं। गुंजन के मन के घाव भर रहे हैं वो आज एक बार फिर मायके से जुड़ रही है। अपने मायके से।

इनपुट सोर्स : ऋचा उपाध्याय, वरिष्ठ लेखिका।