लघुकथा: लॉकडाउन

लघुकथा: लॉकडाउन

फीचर्स डेस्क। बहू पूरे 5 दिनों के लिए अपने मायके गई थी, अभी केवल 3 दिन ही बीते थे लेकिन श्यामा जी की हालत खराब हो रही थी। सभी को समय पर नाश्ता-खाना के साथ-साथ पतिदेव की घड़ी-घड़ी चाय की फरमाइश से श्यामा जी का दिमाग कभी-कभी सातवें आसमान पर चढ़ जाता था। लेकिन किया भी क्या जा सकता था । 

 बहू पिछले दो ढाई सालों से यह सारे काम निपटा रही थी,वह भी बिना श्यामा जी के मदद के। बिना सास-ससुर को एक शब्द कहे,भले ही उनके बेटे से उसे लाख शिकायते हो।

उसने कभी आम बहुओं की तरह मायके जाने की जिद भी नहीं की। पिछले साल बहन के विवाह में गई थी वह भी मात्र 3 दिनों के लिए उसके बाद अब गई है भतीजे के मुंडन में।

वह तो 2 दिन के लिए ही जा रही थी लेकिन बेटे के यह कहने पर कि.. 

"कौन सा तुम रोज-रोज मायके जाती हो,.जा ही रही हो तो 5 दिन रह लेना।"

श्यामा जी को अच्छा लगा था कि बेटा खुद ही उसे कुछ दिन खुद से दूर रहने की सलाह दे रहा है। मतलब बहू का जादू उनके बेटे पर नहीं रहा। श्यामा जी ने भी बेटे की हां में हां मिलाई थी।

"क्यों नहीं!.जा रही हो तो रह लेना कुछ दिन।"

"लेकिन माँजी!.यहां भी तो कोई संभालने वाला नहीं है।" बहू ने चिंता जताई थी। 

"कैसी बातें कर रही हो बहू,..तुम्हारे आने से पहले मैं ही तो यह सब करती थी।" 

श्यामा जी ने बेटे की तरफ देखा आखिर उनकी कर्मठता के सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर तो बेटे ही करना था, बहू तो दूसरे घर से आई थी उसे कहां कुछ पता था। 

"हां बिल्कुल!..मां सही कह रही है,.तुम इन सब बातों से निश्चिंत रहो।" 

बेटे ने मौखिक हस्ताक्षर भी किया था और खुशी-खुशी बहू अपने भाई के साथ मायके के लिए रवाना हुई थी। 

इधर श्यामा जी ने बेटे से सर्टिफिकेट ले तो लिया था लेकिन अब बारी थी फिर से रसोई संभालने की,.. घर के बनते बिगड़ते कामों को देखने की।  महरी तो उन्होंने कभी रखा ही नहीं, छोटा परिवार है कह सारे काम अब बहू पर ही थे।

बहू के मायके जाने के बाद उनकी व्यस्तता का आलम यह था कि स्नान भी अब सुबह नहीं दोपहर में हो रहा था। इन घरेलू कामों की आदत जो छूट गई थी कुछ फटाफट हो ही नहीं पाता था।

इन 3 दिनों में उन्होंने लाख दिक्कतों के बावजूद एक बार भी अपनी कुढ़न  पति और बेटे पर जाहिर नहीं होने दिया।

आज बेटा बहू को उसके मायके से लाने जा रहा था। कुछ घंटों बाद उसकी ट्रेन थी श्यामा जी मन ही मन खुश थी। 

इन 3 दिनों में उनकी सहनशीलता ने बेटे के सामने बहू को ताउम्र पेश करने के लिए एक मिसाल कायम कर दिया था। 

श्यामा जी रोटियों पर घी चुपड़ रही थी।  बेटा और पति हाल में बैठ टीवी पर समाचार  सुन रहे थे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के नाम संदेश जारी कर रहे थे।

"माँ!.खाना देर से लगाना।"

"क्यों?..तेरी ट्रेन का वक्त हो रहा है, कहीं देर ना हो जाए।"

"पूरा भारत कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन हो गया है,.अब 21 दिनों बाद ही किसी की कोई यात्रा हो सकेगी।"

"मतलब?"  श्यामा जी मानो जैसे कुछ समझ ही नहीं पाई।

"मतलब,..कोई भी देशवासी अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा ना ही कोई  गाड़ी-घोड़ा चलेगा।"

श्यामा जी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था,.उन्हें तो रसोई में खड़े खड़े ही चक्कर सा आ रहा था।।

 इनपुट सोर्स : पुष्पा कुमारी "पुष्प",  पुणे (महाराष्ट्र)।