महिला दिवस : इंतजार

महिला दिवस : इंतजार

फीचर्स डेस्क। सुबह से इंतज़ार करते करते अब शाम होने को आई थी।सुबह से क्या...बल्कि वो तो रात के बारह बजे से ही इंतजार कर रही थी कि घर पर उसके पति या बच्चे उसको महिला दिवस पर कोई फूल या तोहफा दे कर विश करेंगे। सुबह भी पतिदेव त्यार हो कर दफ्तर चले गए तो सोचा कि पक्का बच्चों के साथ मिल कर कुछ  प्लान किया होगा।तभी चुपचाप चले गए। जरूर कोई न कोई कूरियर या बुके आएगा।

या फिर कुछ ऑनलाइन आर्डर किया होगा। डिनर पर तो आज अवश्य बाहर ही लेकर जाएंगे।

फेस बुक एवम वत्सप्प पर तो महिला दिवस के मैसेज की जैसे बाढ़ ही आ गईथी। सुबह से ले कर शाम तक सारा दिन मैसेज की घण्टी बजती  रही। लेकिन जिनकी विश का इंतज़ार था उनको तो शायद याद भी नही होगा कि उनके घर मे भी एक महिला रहती है जिसने इस घर को बनाने और सवारने में अपना पूरा जीवन ही झोंक दिया।

अपनो के चेहरों पर मुस्कान देखने के लिए न जाने कितनी बार समझौते किये और कितनी बार दूसरों का दिल रखने के लिए अपना मन मारा। सारा दिन नीरजा इन्ही ख्यालों में डूबती उतरती रही और घर के कामो में कब सुबह से शाम हो गयी पता ही नही चला।

घड़ी देखी तो ध्यान आया कि पतिदेव का घर आने का समय होने वाला था ।उठ कर खाने की तैयारी के लिए रसोई में जा ही रही थी कि उसका फोन बज उठा। देखा तो पतिदेव का ही था सोचा अबतो पक्का उनको याद आ गया होगा । यही सोचते हुए खुशी खुशी फोन उठाया तो उधर से पति जी की ही आवाज थी

"सुनो नीरजा.. आज कोई त्योहार है क्या या कुछ और खास बात है ?

"क्या हुआ? उसने पूछा

"वो में घर आ रहा था तो देखा  रास्ते मे फूलों के बुके ओर गिफ्ट की दुकानों पर आज कुछ ज्यादा ही भीड़ है।"इसलिए पूछा

  "सॉरी जी ..मुझे भी नही पता आज क्या है"....कह कर उसने फोन काट दिया और चल पड़ी रसोई की तरफ अपने बचे खुचे कामो को खत्म करने।

इनपुट सोर्स : रीटा मक्कड़, मेम्बर फोकस साहित्य।