एक ही बंदा काफी है शायद जिंदगी भर खत्म नहीं होगी
मुंबई। वो एक ट्रेन होती है। मान लो प्रयागराज से चलती है और दिल्ली में आकर रुक जाती है। मतलब दिल्ली आकर उसका सफर खत्म हो जाता है। ऐसे ही कोई फ़िल्म होती है, जो डेढ़ घंटे, 2 घण्टे या 2.5 व 3 घंटे चलकर खत्म हो जाती है। जी5 पर मनोज वाजपेयी द्वारा अभिनीत एक नई फिल्म आई है, जिसका नाम है - "एक ही बंदा काफी है"।
2 घण्टे की यह फ़िल्म शुरू होकर खत्म नहीं होती है। बल्कि खत्म होने के बाद आपके दिमाग मे शुरू होती है और फिर वह शायद जिंदगी भर खत्म नहीं होगी। आज तक अपने कोर्ट में जज को, वकील को और मुजरिम को खड़े देखा होगा। लेकिन यहां के केस का फैसला करने वकील के किरदार में घुसकर खुद भगवान शंकर आते हैं।
क्या कहा? समझ नहीं आया. ठीक से समझिए। यह देश संतों का देश है. संतों पर इस देश के लोगों की अटूट श्रद्धा भी रही है। उन पर एक विश्वास होता है आमजन का कि वह कुछ गलत नहीं करेंगे।
ठीक वैसे ही जैसे अपने परिवार में सगे संबंधियों पर एक विश्वास होता है। फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ के उपसंहार का एक दृश्य है जिसमें वकील सोलंकी अदालत के सामने अपनी जिरह का आखिरी हिस्सा पूरा कर रहे हैं। वह शंकर और पार्वती के संवाद का दृष्टांत देते हुए बताते हैं कि पाप, अति पाप और महापाप क्या है? रावण ने सीता का अपहरण किया, यह अति पाप है। इसका प्रायश्चित हो सकता है. लेकिन, उसने साधु वेश में एक महिला का अपहरण किया, यह महापाप है और शिव पार्वती संवाद के मुताबिक इसके लिए कोई क्षमा नहीं है. यह विश्वास को भंग करने का अपराध है।
समाज या परिवार जिन पर आंख मूंदकर विश्वास करता हो, वे जब इस विश्वास का अनुचित लाभ उठाकर किसी बहू या बेटी पर हाथ डालें, तो उसकी सजा सिर्फ मृत्युदंड है। दरअसल कहानी यह है कि आपको काफी जानी पहचानी लगेगी और हो सकता है कि पुराने सालों के कई घटनाक्रम आपको याद आ जाएं। कहानी है खुद को बाबा कहलाने वाले एक गुरू कि जो कई आश्रम चलाता है। इस बाबा पर इसी के आश्रम के स्कूल में पढ़ने वाली एक नाबालिग लड़की नूह सिंह (अद्रिजा सिन्हा ) ने बलात्कार का केस दर्ज कराया है।
कोर्ट में पहुंचे इस मामले में एक तरफ है बाबा जिससे बचाने के लिए शर्मा जी (विपिन शर्मा) के अलावा एक से एक बड़े वकीलों की पूरी कवायद लगी है और दूसरी तरफ है ये लड़की जिसका केस लड़ा है पीसी सोलंकी (मनोज बाजपेयी) ने. यही है वो पी सी सोलंकी जो ‘एक ही बंदा है और काफी है।’
सोलंकी का ये किरदार परदे पर मनोज बाजपेयी ने निभाया है। अपने तमाम किरदारों का चोला अपनी अदाकारी की रूह से जीवंत कर देने वाले मनोज बाजपेयी फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ की भी रूह हैं।
जोधपुर की स्थानीय बोली में अपनी भाषा को साधते हुए मनोज बाजपेयी यहां एक बुजुर्ग मां के बेटे और एक बेटे के पिता के रूप में हैं। फीस का जिक्र आने पर सोलंकी बस मांगते हैं, ‘गुड़िया की स्माइल’।
फिल्म में इस मामले के दिग्गज वकीलों के असल नाम तो नहीं लिए गए हैं, लेकिन राम जेठमलानी, सुब्रमणियन स्वामी और सलमान खुर्शीद से प्रेरित किरदारों के सामने पूनम चंद सोलंकी की जिरह को मनोज बाजपेयी ने जिस तरह जिया है, वह अदाकारी की पाठ्यपुस्तक के अध्याय बनते दिखते हैं।
बचाव पक्ष के वकील का मेज पर हाथ पटककर जज को प्रभावित करने वाले दृश्य में जब सोलंकी बने मनोज बाजपेयी भी अपना हाथ मेज पर पटकते हैं और बाद में कहते हैं, ‘लग गई यार’ तो ये उनके अभिनय का चरम बिंदु बनता है।
देखते हैं इस फ़िल्म को ऑस्कर मिलता है या नहीं?