मेरा आदर्श नारी चरित्र : राधा बोस

मेरा आदर्श नारी चरित्र : राधा बोस

फीचर्स डेस्क। वैसे तो हमारे आस - पास बहुत से किरदार होते हैं , पर उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं , जो हमें अंतर्मन की गहराई तक प्रभावित कर जाते हैं और हम चाहे उन्हें जितना भी भुलाना चाहें , नहीं भूलते।

मैडम राधा बोस , वैसे तो हमारे स्कूल की प्रधानाचार्या थीं, परन्तु एक अध्यापिका होने पर भी , मुझे उनसे इतना अटूट - स्नेह मिला कि मैं कभी भी भूल नहीं सकती । मुझसे बहुत प्यार - से बोलना , बड़ी - से - बड़ी जिम्मेदारी का काम मुझे सौंपकर , बेफिक्र हो जाना , फिर कार्य की सफलता पर मुझे बहुत प्यार से बुलाकर आशीर्वचन कहना यह सब एक अनूठा अनुभव है।

एक बार स्कूल में अधिकारी वर्ग को आमंत्रित कर , वार्षिक समारोह में मैडम ने मुझे बुलाकर कहा - " कार्यक्रम की तैय्यारियाँ तो सभी अध्यापक बड़ी लगन से करा रहे हैं , पर मैं कुछ नयापन लाने की सोच रही हूँ कि ,अन्य विद्यालयों की तुलना में , हमारा कार्य श्रेष्ठ हो । इसके लिए कुछ बताओ "------ कुछ सोचकर मैंने कहा ------" मैडम यदि अबकी बार प्रोग्राम का संचालन कोई अध्यापक न करके कोई विद्यार्थी करे , तो नयापन लगेगा ।" वह मेरे विचार से पूर्णतया सहमत हो गईं । अब सवाल था कि उस समय वह संस्थान केवल " प्राईमरी स्कूल " था । 5 वीं क्लास का एक होनहार बच्चा चुनकर मैंने पूरे कार्यक्रम की एक लिस्ट बनाकर , उसकी रूप -रेखा तैय्यार करके रोज उसकी प्रैक्टिस उस बच्चे से कराने लगी । वार्षिक समारोह के 2-3 दिन पूर्व उन्हें सुनवाकर , जब वह संतुष्ट हुईं तो मैंने भी राहत की साँस ली । अधिकारी - वर्ग के द्वारा उस बालक का संचालन - कार्य बेहद सराहा गया ।

मैडम भी अति प्रसन्न हुईं । यह तो विद्यालयीन - गतिविधियाँ हुईं 

व्यक्तिगत तौर पर भी मैडम राधा बोस बहुत ही ऊर्जावान , असीम धैर्यवान एवं कर्मठ नारी थीं।

मुझे तो उस दिन आश्चर्य हुआ , जब उन्होंने एक सुबह मुझे फोन करके कहा -----" आज शाम को आप दोनों कुछ समय के लिए हमारे घर आ जाओ ।" उनकी आज्ञानुसार घर जाकर देखा तो उन्होंने हमारे लिए डोसा - साँभर बना रखा था ।

मेरे यह कहने पर कि वह क्यों इतनी परेशान हुईं,उनका कथन था कि ----"मैं जीवन के आखिरी समय तक " कर्मठ " बनी रहना चाहती हूँ । किसी पर अवलम्बित ना होना पड़े।"

बातों के दौरान पता चला कि उस उनकी उम्र  82 वर्ष की थी। मुझे अंतर्मन में यह भी लग रहा था कि इस उम्र में उन्होंने यह सब क्यों किया। इतनी प्यारी , स्नेह -सिक्त - हृदया मेरी मैडम विगत दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में , हम सबको छोड़कर , " गो- लोक "को प्रस्थान कर गईं। जाने से पूर्व वाले सप्ताह में , अपने पैरों की तकलीफ की चर्चा करते हुए, दिल्ली से मुझे फोन भी किया था। स्मृति - शेष मैडम राधा बोस, जीवन- भर मेरे लिए प्रेरणा- स्रोत रही हैं। उनको मैं अश्रुपूरित ,सजल नेत्रों से नमन करती हूँ !!!!

इनपुट सोर्स : माधुरी मिश्र, मेम्बर फोकस साहित्य ग्रुप।