समझा पाना तुम्हारे बस की नहीं, बगावत मेरे खून में नहीं था !

समझा पाना तुम्हारे बस की नहीं, बगावत मेरे खून में नहीं था !

इलाहाबाद। उसकी याद तो अब भी आती है। मुद्दत गुजर गए उससे विछड़े हुए। लेकिन उसके यादों का कारवां आज भी मेरे साथ है। फुर्सत में जब भी बैठती हूं न चाहते हुए उसकी याद आ ही जाती है। तुम बहुत जिद्दी हो कैसे ससुराल में रहोगी। ये उसकी मुंह से निकली लफ्ज घड़ी की सुई की तरह मेरे दिमाग में टन टन करती रहती हैं। अब मैं उसको कहना चाहती हूं कि आकर देखों में कैसे ससुराल में रहती हूं । हां, मैं जिद्दी थी अब भी हूं लेकिन सिर्फ उसके लिए। उसकी बात कभी कभी भाव विभोर कर देती है। क्लास में जब भी प्रश्न पूछा जाता था तो उसको पता रहता था कि मैं ही बोलने वाली हूं।

ऐसे में वह साथ में बैठे अपने दोस्त के कुहनी में ठोकर मारकर कहता था अब देखना। आज भी उसके बारे में सोचती हूं तो आंख से आंसू टपक पड़ते हैं। सोचती हूं कि वो कितने खूबनसीब पल थे। उसके साथ बिताए खुशी और नाराजगी के एक-एक पल याद है। उसने कभी खुलकर मोहब्बत का इजहार नहीं किया। लेकिन उसकी अपनापन या उसकी हनक वैसी ही थी जैसे प्यार करने के बाद होती है। अपने दोस्तों के बीच हो तो सिर्फ मेरी बातें, अपने घर से लेकर दोस्तों तक की बातें मुझसे शेयर करना ये प्यार नहीं तो और क्या था।

मेरी हर समस्या का समाधान ढूढ़ निकालने में अपनी जिम्मेदारी समझता था। अब आप ही बताओं ये बातें क्या यह गवाही देने के लिए काफी नही हैं कि उसे मुझसे प्यार था। आज कहां हैं, कैसे हैं, कब मिलेगा इस तरह के न जाने कितने सवाल रोजना मेरे लिए दिन में अकेले समय बीताने में अहम रोल निभाते हैं। मैं सिविल की तैयारी कर रही थी और वो पत्रकारिता की कोर्स में व्यस्त था जब हमारी आखिरी मुलाकात हुई। यह मुलाकात भी महज एक संयोग था। हमेशा की तरह दूसरे के लिए जीने वाला इंसान उस दिन भी किताब की दुकान पर मिला तो दूसरे के लिए कुछ बुक खरीदने आया था। मैने उससे कहां कब मिलोगे तो उसने बिना जवाब दिये अपनी कंधे को हिलाकर यह जता दिया कि सच्चा प्यार होगा कि तो मिलते रहेंगे।

अब आप इसे सच्चा प्यार नहीं कहेेंगे या फिर अभी वक्त है उससे मिलने के लिए , मैं समझती हूं कि यह उपर वाले को ही पता होगा। वैसे कम जिद्दी वो भी नहीं था। एक बात पर एक साल तक अपना घर छोड़कर हॉस्टल में रहा और पढ़ाई के खर्च के लिए ट्यूशन बच्चों को देना लगा था। खुद्दारी तो इतना कि मैं पैसे के लिए बोलूं तो बोलता था, कुछ पैसे होने वाले पति के लिए बचा ले काम आएगा और कहकर दूर तक हंसता हुआ निकल जाता था। कभी-कभी मैं सोचती थी कि एक वक्त आएगा। जब मैं उससे मिलकर उसकी उपलब्धियों के बारे में जानूंगी। पर मुझे क्या पता था कि वो मुझसे ऐसे संयोग में बिछड़ा है कि अब हम कभी नहीं मिल पाएंगे। दरअसल, गलती उसकी नहीं है जिस घर में मैं पली बढ़ी थी उस घर के संस्कार ऐसे थे कि प्यार शब्द को समझने में मुझे अपने उम्र की एक लंबी सफर तय करने के बाद पता चला। सच कहूं तो मुझे तो उस नादां उम्र में पता भी नहीं था कि हमारे बीच यह जो कुछ भी है, इसे ही प्यार कहते हैं।

यह एक ऐसा अनबुझा से प्यार था कि हमने एक-दूसरे को कभी स्पर्श तक नही किया था। सिर्फ मन की छुअन हमारे बीच इतना गहरा घाव कर गया था जो आज भी न पाने की चाहत के कारण भर नहीं पा रहा है। आज मैं तुमको याद करती हूं तो दर्द से कराह उठती हूं, शायद तुम्हारी भी यही स्थिति होगी या प्यारी सी पत्नी पाकर भूल गए होगे।

दरअसल, मेरे और उसके बीच मेरा ही परिवार आ गया और यह मैं आज तक नहीं जान पाई कि आखिर क्यो? शायद तुम्हारा पेशा मेरे घर वालो को पसंद न आता। मेरा परिवार रुढि़वादी किस्म का है जहां बेटे की इनकम पर उसकी शादी तय की जाती है। हालांकि हम दोनों मिलकर एक अच्छी गृहस्थी चलाने में कोई कसर न छोड़ते लेकिन इस बात को मेरे घर वालों को समझाने के लिए न तुम में हिम्मत थी न मुझमें यहां के तुगलकी फरमान के सामने नकाब उठाकर बगावत करने की ताकत। बस शायद यही उपर वाले को मंजूर था। जहां भी हो खुश रहना, मंदिर की पहली सिढ़ी चढऩे की शुरुआत से लेकर मंदिर की चौखट छोड़ते हुए हर रोज यही कामना करती हूं। 

                                                                                                                                                                          शिवांगी शर्मा, इलाहाबाद 

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