गुरु पूजा का पावन पर्व है गुरु पूर्णिमा, कीजिए गुरु को प्रसन्न उनकी आराधना करके

गुरु पूर्णिमा 13 जुलाई को आ रही है। इस दिन गुरु की की जाती है विशेष आराधना। गुरु कृपा से होता है जीवन आलोकित। क्या है गुरु पूजा का विधान बता रहे है एस्ट्रोलॉजर विमल जैन....

गुरु पूजा का पावन पर्व है गुरु पूर्णिमा, कीजिए गुरु को प्रसन्न उनकी आराधना करके

फीचर्स डेस्क।  "गुरुरब्रह्मा,  गुरुरविष्णु गुरुरदेवो महेश्वरा गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः।"
भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वस्व स्थान प्राप्त है । गुरु का स्थान सर्वोपरि है। एस्ट्रोलॉजर विमल जैन ने बताया कि हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है और तिथि विशेष पर गुरु की आराधना करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है, जिससे जीवन अलौकिक होकर सुख समृद्धि ,सौभाग्य के पथ पर अग्रसर होता है।  गुरु पूर्णिमा का पर्व उमंग और हर्ष उल्लास के साथ मनाने की परंपरा चली आ रही है। कब है गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व और कब से कब तक रहेगी इसकी तिथि आइए जानते है।

कब है गुरु पूर्णिमा का विशेष दिन

गुरु पूर्णिमा का पर्व 13 जुलाई बुधवार को मनाया जाएगा। इस बार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 12 जुलाई मंगलवार को अर्धरात्रि के बाद 4:01 पर लग रही है जो कि 13 जुलाई बुधवार को अर्ध रात्रि 12:08 तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व 13 जुलाई बुधवार को मनाया जाएगा। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर कोकिला पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है । इस दिन महर्षि वेदव्यास जी की पूजा अर्चना करने की विशेष महत्व है । पूर्णिमा तिथि के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके गुरु पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

गुरुपूजा का विधान

लकड़ी की नई चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछाएं, उस पर पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण 12-12 दिखाएं बनाकर व्यासपीठ बनाने का विधान है और दसों दिशाओं में अक्षत छोड़कर दिग्बंधन किया जाता है। ब्रह्मा, परावर शक्ति ,व्यास, शुकदेव गौड़पाद, गोविंद स्वामी और शंकराचार्य के नाम मंत्र से आवाहन करके पूजा करते हैं। अपनी दीक्षा गुरु और माता-पिता पितामह, भ्राता आदि की भी पूजा करने का विधान है। इस दिन अपने गुरु को भक्ति भाव से श्रद्धा के साथ नवीन वस्त्र ,नकद द्रव्य, ऋतु फल और मिष्ठान आदि भेंट स्वरूप अर्पित करके चरण स्पर्श करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि गुरु का आशीर्वाद ही जीवन में कर्म करने वाला सौभाग्य में वृद्धि करने वाला माना गया है।

एस्ट्रोलॉजर विमल जैन ने कहते है कि अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुसार आप अपने गुरु की श्रद्धा भक्ति और आस्था के साथ पूजा अर्चना करके उनसे आशीर्वाद लें। गुरु की कृपा से समस्त कष्ट और अनुष्ठानों का निवारण होता है। जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है। पूर्णिमा तिथि के दिन ब्राह्मण और जरूरतमंद को देव दर्शन के पश्चात यथाशक्ति दान पुण्य करके पुण्य लाभ अर्जित करना चाहिए।