पत्नी से बहस, जिन्दगी तहस-नहस...

पत्नी से बहस, जिन्दगी तहस-नहस...

फीचर्स डेस्क। वैसे तो इस संसार में हर बात का कुछ कारण अवश्य होता है। परन्तु पति और पत्नी नामक प्राणी कुछ बातों के लिए किसी कारण के होने पर निर्भर नहीं है । ये ऐसे  जीव है जो  निःस्वार्थ भाव से एक-दूसरे से  लड़ सकते हैं।  एक बार पत्नियों से त्रस्त पतियों  ने मिलकर एक संगठन बनाया। चूंकि ये सभी  पति बन चुके थे, इसलिए अपनी-अपनी पत्नी से डरते भी बहुत थे। बड़ी मुश्किल से खन्ना जी के गैरेज में ओवरटाइम का बहाना बना कर, एक गुप्त बैठक रखी गई। सभी पीड़ित पति छुप-छुपाकर एकत्र हुए। सबकी एक ही व्यथा, एक सी कथा। सभी का यही रोना था कि ये जब तक लड़कियां होती हैं कितनी प्यारी होती हैं, एकदम भोली भाली, बाबू- शोना टाइप।

पिज्जा खिला दो, फिल्म दिखा दो, घर छोड़ दो, बस इतने में ही बलिहारी हुई जाती हैं। उस समय दिन भर इनसे बातें करने का मन करता है, निहारने का मन करता है, घुमाने का मन करता है, पर  जैसे ही शादी हुई नहीं कि इनके अंदर हिटलर की आत्मा का प्रवेश हो जाता है। ये क्या है ? वो क्या है? ये यहां क्यों रखा ? ये क्यों खाया ? वो क्यों नहीं खाया ? ये किया तो क्यों किया ? किया भी तो पूछा क्यों नहीं ? मतलब जिन्दगी अनसाल्वड पेपर जैसी हो जाती है, जिसके उत्तर आते हों या ना आते हों, फेल होना तय है। पत्नी पीड़ित संघ को मात्र भगवान का ही सहारा था। मीटिंग में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि ये सभी समस्याएं लेकर भगवान के पास ही चला जाए। अंततः 'हमरी उलझन सुलझाओ भगवन! तुम्हरे बिन हमरा कउनो नाई ' वाला गाना सुर में गाने का असफल प्रयास किया गया।

अविश्वसनीय सूत्रों की मानें तो इस टॉर्चर से त्रस्त होकर देवी जी ने भगवान  की ओर देखा। भगवान को भी तो शांति चाहिए। आखिरकार इस गुप्त पत्नी पीड़ित पति संघ से मिलने के लिए भगवान के प्रतिनिधि पहुँच ही गए। एक दिन नियत किया गया और मीटिंग आरंभ हुई।  पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष रौबदार पुलिस अधिकारी चौहान साहब ने प्रभु के प्रतिनिधि देवदूत का स्वागत किया। चौहान साहब  स्वागत करते ही चौंके, 'आप तो विदेश सेवा के अधिकारी मिश्रा जी जैसे दिख रहे हैं जो एक साल पहले भगवान को प्यारे हो गए थे।' देवदूत भड़क गए और बोले, 'क्या मतलब कि लग रहे है ? हम वहीं हैं। आप लोगों को क्या लगा कि जिनकी कोई नहीं सुनता उनकी सुनने भगवान आयेंगे ? वो तो देवीजी को कर्कश आवाज चुभ रही थी सो भगवान ने हमको भेजा है। बताइए क्या कहना है ?' सब समझ गए कि गई भैंस पानी में। जिस अधिकारी ने कई देशों के राजनयिकों को पानी पिला दिया उससे हम कैसे पार पायेंगे।

फिर भी  खन्ना साहब ने हिम्मत बटोरकर कहा, 'आप प्रभु के यहां से आए हैं तो हम आपको प्रभु ही कहेंगे। हे प्रभु! कहते है जोड़ियां ऊपर बनती हैं, पर इतनी गड़बड़ी ना किया कीजिए कि सारे पति दुखी ही रहें।' अल्पकालिक प्रभु उर्फ मिश्रा जी ने खन्ना जी को इग्नोर करके खैनी पीट रहे गया बाबू को बड़े प्रेम से देखा और बोले, 'जरा लाइये तो जुबां केसरी किए जमाना बीत गया।' फिर खन्ना जी की तरफ मुड़कर कहने लगे, 'वो शादी वाला लड्डू खा के पछता रहे प्राणियों !  भगवान ने कहा है कि तुम लोग अपनी समस्या के लिए खुदै जिम्मेदार हो।' सब कोरस में बोल पड़े,'वो कैसे ?' कातिलाना डिप्लोमैटिक मुसकान के साथ मिश्रा जी बोले,'भगवान का फंडा क्लियर है कि 'हम केवल लड़कियां बनाते हैं, पत्नी उन्हें तुम बनाते हो, तो तुम्हीं भुगतो। जोड़ियां भले ही हम बनाते हों, पर उसमें सारी गड़बड़ियां तुम ही करते हो। जब देखो, बेवजह बहस करते हो।कभी देखे हो हमको देवी से उलझते।' एक साथ सब  दुखी आत्माएं बोली, 'हम कैसे देख सकते है भगवान को ?' जवाब लाजवाब करने वाला मिला,'सीरियल नहीं देखते क्या ?कभी किसी देवता को देवियों से बहस करते देखा है ? देवियां एकदम चकाचक रेशमी साड़ी और गहनों से लदी-फंदी दिखती है ना ,फिर भी कुछ नहीं सीखा। अरे ! यहीं मूलमंत्र है। अपनी घरैतिन को ऐसे ही रक्खो।'  सन्नाटे को भंग कर मिश्रा जी ने आगे कहा, 'देखो पति लोगों ! पत्नियों की हर बात समझदारी वाली होती है। वे जब वे कहतीं है कि 'क्या कहा ?' तो उसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने सुना नहीं। बल्कि वह आपको अपना वाक्य बदलनें के लियें एक अवसर  देंना चाहतीं हैं।' तभी कोने में  दबे गुप्ता जी निकले और बोले, 'हे प्रभु ! ये तो सब ठीक है, परसों मुझसे भूल से एक गिलास टूट गया तो खूब हंगामा हुआ।

कल उनसे टूटा तो एकदम शांति, इसका क्या राज है ?' मिश्रा जी मुसकाए और बोले, 'एक बात याद रखो 'जी एस टी'। शर्मा जी कहे, 'ये क्या है प्रभु ?' उत्तर मिला,  'जी एस टी' यानी गलती सिर्फ तुम्हारी। गांठ बांध लो। गलती कभी पत्नी की नहीं होती। गुप्ता जी, आपके केस में  स्पष्ट है कि परसों गलती आपकी थी और कल गिलास की। ये गोल्डन रुल याद रखने  से सुखी रहोगे।' सभी को शांत देख पुचकारते हुए देवदूत जी आगे बोले,'अरे! भाई जो एक साड़ी पसंद करने को पूरी दुकान की ऐसी-तैसी  कर देती है, सोचो  उसने आप जैसों को चुना है। इसका एहसान मानो। और हां भारतीय पत्नी पति को सब कुछ मानती है। बस कहना ही नहीं मानती। ये शाश्वत सत्य है कि किसी की नहीं मानती है। एक वाक्य में कहें तो 'पत्नी से बहस, जिंदगी तहस-नहस' और हां एक और ज्ञान की बात। एक मूर्ख पति अपनी पत्नी से कहता है कि कभी कभी चुप भी रहा करो। किन्तु एक बुद्धिमान पति कहता है कि तुम्हारे होंठ जब खामोश रहते हैं, तो तुम बेहद खूबसूरत लगती

हो। ' इसके बाद वो मुस्काते हुए निकल गए। सब इस शाॅक से उबरे भी न थे कि तभी खन्ना जी का ड्राइवर कम टेम्परेरी चौकीदार भागता हुआ आया और बोला, 'साहेब ! मेमसाहब, गुप्ताइन और शर्माइन  भाभी के साथ इधर ही आ रही हैं।' ये सुनते ही सबकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।  सबके सब मीटिंग-वीटिंग छोड़  सर पे पैर रख के भागे। क्योंकि

'घर जाना मजबूरी है ,

डरना बहुत  जरुरी है।'

इनपुट सोर्स : आकांक्षा दीक्षित, वरिष्ठ लेखिका, लखनऊ यूपी।