विश्व पुस्तक दिवस विशेष : किताबें

किताबें लेने, देने मांगने के बहाने बहुत से रिश्ते संजोती थी ये किताबें कक्षा से कक्षा का सफर करती थी किताबें बहुत सहेजी‌ हुई पूंजी होती थी किताबें....

विश्व पुस्तक दिवस विशेष : किताबें

फीचर्स डेस्क। अलमारी के बंद शीशों में
बड़ी हसरत से ताकती है किताबें
एक जमाना गुजर गया
पहले तो रोज मुलाकात होती थी
घंटों हाथों में लेकर बैठे रहते
जब तक पूरा मजमून ना जान लेते
अब तो कंप्यूटर के आगे
फीका पड़ गया है‌ इनका जलवा
अलमारी के बंद शीशों में
बड़ी हसरत से ताकती है किताबें

कभी इनकी भी देखरेख हुआ करती थी
जिंल्द चढ़ा इनको सजाया जाता था
अब तो धूल मिट्टी में पड़ी रहती है
बरसों बाद कोई आकर खोलता है
बड़ी बेचैन रहती है यह किताबें
मोहब्बत का पैगाम देती थी ये किताबें
कितने सूखे गुलाब समेटती ये किताबें
कभी सीने में कभी गोद में लिए रहते थे
अलमारी के बंद शीशों में
बड़ी हसरत से ताकती है किताबें

किताबें लेने, देने मांगने के बहाने
बहुत से रिश्ते संजोती थी ये किताबें
कक्षा से कक्षा का सफर करती थी किताबें
बहुत सहेजी‌ हुई पूंजी होती थी किताबें
अब तो एक क्लिक से ही खुल जाते हैं पन्ने
उंगली से सफहे पलटने का मजा था निराला
अलमारी के बंद शीशों में
बड़ी हसरत से ताकती है किताबे


इनपुट सोर्स: रेखा मित्तल (चंडीगढ़)