नसीब, घर या प्रेम...

नसीब, घर या प्रेम...

फीचर्स डेस्क। लाल बत्ती पर जैसे ही ड्राइवर ने गाड़ी रोकी तो पीछे बैठी नीता ने खिड़की से बाहर झांककर देखा। अचानक ताली बजाती हुई एक किन्नर उसकी गाड़ी की खिड़की के पास आ गई। "बहन तेरा सुहाग बना रहे। दस रुपये देती जा! हिजड़े की दुआ तुझे लगेगी।" कहते हुए उसने दोबारा ताली बजाई। नीता  ने देखा एक 34 या 35 साल की किन्नर उसके सामने  खड़ी थी। नीता ने उसको देखकर अनदेखा किया तो वह भजन गाने लगी। नीता ने महसूस किया कि उसकी आवाज में एक कशिश थी। लाल बत्ती काफी लंबे समय के लिए थी। नीता ने पर्स से दस रुपये का नोट निकाला और उसकी और बढ़ा दिया। उसने देखा वह बहुत खूबसूरत थी गोरा रंग घुंघराले बाल। देखने में वह एक सामान्य महिला की तरह ही दिखती थी। "नाम क्या है तुम्हारा?" नीता ने पूछा।

   "राधा।" उसने मुस्कुराते हुए बोला। तभी अचानक हरी बत्ती होने पर ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी और नीता गाड़ी का शीशा चढ़ाकर अखबार पढ़ने लगी। आज अखबार में एक सुर्खी ट्रांसजेंडर लोगों को समान अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष की भी थी। किसी समाजसेवी का कहना था कि भले ही शारीरिक तौर पर यह लोग हमसे भिन्न है लेकिन सोचने समझने और कार्य करने की क्षमता इनकी हमारे बराबर ही होती है। इसलिए इनको हमारे जैसे समान अधिकार मिलने चाहिए ताकि यह सम्मान से अपना जीवन यापन कर सकें। नीता को अचानक राधा का चेहरा याद हो आया। कितनी सुंदर आवाज थी उसकी। वह एक अच्छी गायिका बन सकती है। नीता ने मन ही मन में सोचा। थोड़ी देर में नीता यह बात भूल गयी और ऑफिस जाकर अपने काम में व्यस्त हो गयी।

   नीता अक्सर इस रास्ते से आया जाया करती थी और वहां पर ट्रैफिक ज्यादा होने के कारण अक्सर उसकी गाड़ी लाल बत्ती पर रुक जाती। राधा उसको पिछले दो-तीन दिन से ही दिखाई देने लगी थी। इससे पहले वह यहां पर नहीं थी। अब अक्सर लाल बत्ती पर राधा उसको मिल जाती और नीता उसे भजन सुनाने को कहती। दो मिनट में वह जितना सुन पाती तो बदले में दस का नोट निकालकर राधा को दे देती। दोनों में  एक दोस्ताना सा रिश्ता हो गया था। अब राधा को भी नीता की गाड़ी का इंतजार रहता। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा। कई बार हरी बत्ती के कारण  गाड़ी ना रुकने पर भी नीता गाड़ी से राधा को हाथ हिला देती। कुछ दिन ऐसा सिलसिला चलता रहा लेकिन फिर एक रोज जब लाल बत्ती पर गाड़ी रुकी  तो नीता को राधा कहीं दिखाई नहीं दी। उसने इधर उधर देखा लेकिन राधा कहीं नहीं थी। दो-तीन दिन बाद राधा दोबारा उसको वहां मिली तो नीता ने पूछा "अरे राधा कहां थी तुम?"

    "क्या बताऊँ दीदी। दो-तीन दिन से बुखार है। समझ ही नहीं आ रहा क्या करूँ। दवाई भी ली लेकिन फिर से हो जाता है।" राधा ने कांपती आवाज में नीता से कहा।

    " ओह तो चलो मेरी गाड़ी में बैठ जाओ मैं तुम्हें डॉक्टर के पास लिए चलती हूँ।" नीता ने कहा तो राधा पहले थोड़ा सकुचाई लेकिन फिर नीता के जोर देने पर गाड़ी में बैठ गई। नीता ने ऑफिस में फोन करके छुट्टी ले ली थी वह राधा को डॉक्टर के पास ले गई। कुछ टेस्ट इत्यादि करने के बाद  पता चला कि राधा को मलेरिया हो गया था। दवाई इत्यादि लेने के बाद नीता ने राधा से कहा" चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ देती हूं। तुम्हारे घर में कौन-कौन है?" नीता के इस तरह पूछने पर राधा उदास  होकर कहने लगी "दीदी हम लोगों के रिश्ते नहीं होते। हमारा समुदाय होता है जिसमें हम जैसे लोग रहते हैं। यही पास में एक खोली में हम सात लोग रहते हैं।"

   "ठीक है! मैं तुम्हें तुम्हारी खोली तक छोड़ देती हूं। मैं तुम्हें देखने आया करूंगी और जब तक तुम पूरी तरह ठीक ना हो जाओ आराम करना खाने-पीने की चिंता बिल्कुल भी मत करना मैं ले आया करूंगी।" नीता ने राधा को तसल्ली देते हुए कहा। थोड़ी देर में ही गाड़ी राधा के घर के आगे थी नीता ने राधा को गाड़ी से निकालकर सहारा दिया और उसे उसकी खोली तक छोड़ आई।

    "बाकी सब लोग कहां है? नीता ने चारों तरफ दृष्टि घुमाकर देखा।

     "सभी लोग अपने काम पर गए हैं।" राधा ने हँसते हुए कहा।

    "क्या काम करते हैं। नीता ने पूछा

    "यह शहर की लाल बत्तियाँ ही हमारा ऑफिस है हम यहीं पर भीख मांगने का काम करते हैं। "भीख शब्द पर जोर देते हुए राधा ने कहा। पहले लोगों के बच्चों के जन्म पर हमें बुलाया जाता था लेकिन अब लोगों के एक या दो बच्चे होते हैं और उनका जन्मदिन बड़े बड़े होटलों में मनाया जाता है इसलिए हमारे नाच गाने की प्रथा तो लगभग विलुप्त हो गई है और हमें पेट भरने के लिए सड़कों पर माँगना पड़ता है।" कहते हुए राधा कुछ उदास सी हो गई। नीता को अखबार की वह सुर्खियाँ याद आने लगी और वह सोचने लगी कि सच में इन लोगों को आगे बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है। यह लोग और काम क्यों नहीं कर सकते। वह छुट्टी तो ले चुकी थी इसलिए उसने कुछ समय राधा के साथ बिताने की सोची।  "राधा तुम अपने विषय में कुछ बताओ। तुम्हारे माता-पिता कौन थे कहां हैं और तुम कैसे पली-बढ़ी।" नीता राधा के जीवन के विषय में जानने के लिए उत्सुक हो उठी

  नीता की बात सुनकर राधा बहुत उदास हो गई। "क्या बताऊं दीदी  हमारा जीवन भी कोई जीवन है क्या? हम लोग  पिछले जन्म का कोई पाप फल भोगने के लिए धरती पर आते हैं जिस कारण हमको ऐसा शरीर मिलता है। हमारे पास भी भावनाएं होती हैं दिल होता है दिमाग होता है लेकिन फिर भी हमारे जीवन का अधूरापन कभी समाप्त नहीं होता। कभी कभी हमें भी मोहब्बत हो जाती है शारीरिक ना सही रूह से ही सही। "कहते-कहते राधा अपने अतीत में खो गयी।

 राधा के पैदा होने से पहले उसके माता-पिता कितने खुश थे। राधा उनकी पहली संतान जो थी। बच्चे की सलामती के लिए कई तरह के नेग और शगुन किए गए। आखिर वह दिन भी आ पहुंचा जब राधा ने जन्म लिया। घर पर ही दाई को बुलाया गया था। थोड़ी से प्रसव-पीड़ा के बाद जब राधा का जन्म हुआ तो उसे देख दाई रमा कौर के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया। जब राधा की मां ने दाई से पूछा कि बेटा हुआ है या बेटी तो रमा की आंखों से आंसू बह निकले। राधा की मां को जब इस बात का पता चला तो उसे गहरा आघात लगा और वह तब की  बेहोश हुई फिर कभी ना उठी। राधा के पिता बाबूलाल ने काफी पैसा देकर दाई का मुंह बंद करवा दिया "देखो रमा यह मेरी पहली संतान है। इसकी माता का भी देहांत हो चुका है। कारण किसी को भी पता ना  चलने पाए। रमा कौर एक समझदार महिला थी और उसने इस राज को राज ही रखा।

देखने में राधा एक सामान्य बच्ची ही दिखती थी। राधा के पिता ने अकेले ही उसका लालन-पालन किया और पढ़ने के लिए पास के स्कूल में दाखिला भी करवा दिया। धीरे-धीरे राधा बड़ी होने लगी। कभी-कभी उसकी करीबी सहेलियों को थोड़ा अजीब लगता था लेकिन वह इसे मन का वहम समझकर दरकिनार कर देती।

एक बार किसी विवाह में राधा की मुलाकात गौतम नाम के युवक से हो गई। गौतम को राधा पहली नजर में ही भा गई। राधा का खानदान किसी पहचान का मोहताज नहीं था उनसे रिश्ता जुड़ना किसी के लिए भी सौभाग्य की बात थी। गौतम के माता-पिता को जब पता चला तो वह गौतम का रिश्ता लेकर राधा के पिता के पास गए। यह सुनकर बाबूलाल काफी उदास हो गए लेकिन वह अपने बेटी की सच्चाई के बारे में बताकर उसे किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहते थे। फिलहाल उन्होंने गौतम के माता-पिता को टालना ही उचित समझा। लेकिन गौतम राधा से मिलने को बेचैन रहने लगा और एक दिन मौका पाकर वह राधा से मिलने उसके घर चला गया। बाबूलाल उस समय घर पर नहीं थे। गौतम ने राधा के आगे विवाह प्रस्ताव रखते हुए उसका हाथ पकड़ लिया। राधा ने तुरंत हाथ छुड़ाते हुए गौतम को वहां से जाने के लिए बोला। "क्यों राधा, क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूं? तुम मुझसे दूर दूर क्यों रहती हो?" गौतम ने दर्द भरी आवाज में राधा से पूछा।

"गौतम मेरी क्या औकात कि मैं तुम्हें नापसंद करूं लेकिन जब तुम्हें मेरे विषय में सच्चाई का पता चलेगा तो तुम एक पल के लिए भी यहां नहीं रुक पाओगे।"राधा ने रोते हुए कहा। और उसने अपने विषय में सारी सच्चाई गौतम से कह डाली। गौतम पर मानो हजारों बिजलियाँ एक साथ गिर गई। बोझिल कदमों से वह घर की और लौट गया। लेकिन राधा का चेहरा पूरी रात उसकी आंखों के आगे घूमता रहा। दिखने में वह कितनी सामान्य लगती थी। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए परंतु गौतम राधा को भूल नहीं पा रहा था। वह जान चुका था उसका प्रेम शारीरिक प्रेम से बहुत ऊपर है वह राधा के जिस्म से नहीं बल्कि रुह से जुड़ गया है। एक दिन वह राधा के पिता से मिलने उनके घर पहुँच गया।

"बाबूजी मैं राधा से विवाह करना चाहता हूं। "राधा के पिता के पांव छूते हुए कहा। बाबू लाल के चेहरे पर परेशानी के भाव देख कर  वह समझ गया कि वह राधा को सच्चाई को लेकर परेशान है। गौतम ने बाबूराम के कंधे पर हाथ रखते हुए बात को जारी रखा "मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूं और मुझे राधा के विषय में सब कुछ पता चल चुका है लेकिन बाबूजी हमारा प्रेम शरीर से नहीं आत्मा से जुड़ा हुआ है। मैं हर हाल में राधा को  अपनाने के लिए तैयार हूँ बस आप अपना हाथ हमारे सिर पर रख दीजिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि राधा की सच्चाई के विषय में मैं अपने माता पिता को भी नहीं बताऊंगा राधा को कभी भी मेरे या मेरे परिवार के कारण किसी मानसिक प्रताड़ना का शिकार नहीं होना पड़ेगा। "गौतम की बात सुनकर बाबूलाल की आंखों से आंसू बह निकले और उन्होंने गौतम को गले से लगा लिया।

विवाह के बाद गौतम और राधा का जीवन हँसी खुशी बीतने लगा। वह लोग एक दूसरे के सुख दुख से जुड़े हुए थे। राधा गौतम और उसके माता पिता की सेवा में कोई कोर कसर ना छोड़ती। सभी लोग उससे बहुत खुश रहते। धीरे-धीरे समय बीतने लगा और गौतम के माता पिता पोती पोते का मुंह देखने के लिए बेचैन रहने लगे। उनकी यह परेशानी देखकर राधा की चिंता बढ़ती जा रही थी। एक समय ऐसा भी आया कि उसको बात बात कर ताने दिए जाने लगे। धीरे धीरे घर के लोगों के तानो से राधा का जीना दुश्वार होता चला गया। और मजबूर राधा ने गौतम के माता-पिता को सब सच कह डाला। राधा के बारे में सुनते ही घर में मानो कोहराम सा मच गया। गौतम पर दूसरे विवाह का दबाव  बनाया  जाने लगा। "सच ही तो कहते हैं मां बाबूजी। आप दूसरी शादी कर लीजिए।आपका और मेरा रिश्ता कुछ ऐसा है जो आप के विवाह के आड़े नहीं आएगा।" एक रात राधा ने गौतम से कहा। हालांकि गौतम के माता-पिता ने बदनामी के डर से  राधा के इस राज को अपने सीने में ही दफन कर लिया था लेकिन अब वे गौतम के दूसरे विवाह के लिए लड़की देखना चाहते थे।

"कैसी बातें कर रही हो राधा मैं तुम्हारे अलावा किसी के विषय में सोच भी नहीं सकता। "गौतम ने कहा

 " गौतम मैं तुम्हें ना तो शारीरिक सुख दे सकती हूं ना ही संतान का और यह दोनों सुख इंसान के जीवन में बहुत आवश्यक हैं। तुम्हारा मेरा प्रेम बहुत ऊंचा है। वह कभी समाप्त नहीं होगा लेकिन हमें समाज और परिवार के साथ भी चलना है। मैं कहीं नहीं जा रही। तुम दूसरा विवाह करो। तुम्हारे बच्चों को मैं बड़े चाव से रखूंगी। आधी अधूरी ही सही आखिर हूं तो एक औरत। ममता मेरे अंदर भी ठाठें मारती है। मैं तुम से विनती करती हूं कि तुम मेरी ममता की प्यास बुझा दो।" कहते हुए राधा  गौतम के कदमों में झुक गयी। गौतम में झुककर राधा को उठाया और अपने सीने से लगा लिया। अगले दिन गौतम ने अपने माता-पिता को दूसरे विवाह की सहमति दे दी। लेकिन उसकी एक ही शर्त थी कि दूसरी पत्नी को राधा की सच्चाई के बारे में ना बताया जाए। कुछ ही दिनों में गौतम की शादी हो गई। राधा ने नई नवेली बनी दुल्हन रीना का बड़े जोर शोर से स्वागत किया और स्वयं ही उसको गौतम के कमरे तक छोड़ आई। लेकिन रीना के मन में पहले दिन से ही राधा को लेकर द्वैत भाव पनपने लगा था।कई बार गौतम रीना को छोड़कर राधा के कमरे में चला जाता तो ना जाने रीना क्या क्या सोचने लगती। इस वजह से रीना के मन में राधा के लिए दिन प्रतिदिन जहर बढ़ता चला जा रहा था।

 "मां जी। अगर इनको राधा के साथ ही रहना था तो मेरे से विवाह क्यों किया? "रीना ने रोते हुए अपनी सास से कहा।

 "अरे बहु राधा किस्मत की मारी है। उससे तुम  द्वेष मत रखो। वह शारीरिक रूप से पूर्ण नहीं है। वह एक किन्नर है। गौतम और उसका तो सिर्फ मन से लगाव है और कुछ नहीं।" गौतम की मां ने रीना के क्रोध को शांत करने के उद्देश्य से  राधा की सच्चाई  बता डाली। यह सुनकर रीना बहुत हैरान हो गई। ऐसा अनोखा प्रेम उसने कभी ना सुना था लेकिन एक पत्नी की इच्छा होती है कि उसका पति तन के साथ-साथ मन से भी केवल उसके साथ रहे। राधा की सच्चाई जानने के बाद भी रीना की उसके प्रति नफरत कम ना हुई। उसका केवल एक ही मकसद था राधा को किसी भी तरह गौतम की जिंदगी और घर से निकालना। कुछ समय बाद परिवार वालों को पता चला कि रीना मां बनने वाली है। सब की खुशी का कोई ठिकाना ना रहा और ज्यादा खुशी तो राधा को हो रही थी। वह रीना का बहुत ध्यान रखने लगी। उसको कोई भी काम ना करने देती।

एक रात गौतम कमरे में आया तो  राधा ने बोला" देखो  गौतम। अब रीना मां बनने वाली है। उसको तुम्हारी जरूरत है। इसलिए तुम वही रहा करो।" थोड़ी सी बहस के बाद गौतम राधा की बात मान गया। लेकिन  रीना  तो रात दिन एक ही उधेड़बुन में रहती थी कि राधा को कैसे घर से निकाला जाए। आखिर वह दिन भी आ गया जब रीना ने एक बेटे को जन्म दिया। सभी लोग बहुत खुश थे। आज राधा को ऐसा लग रहा था जैसे एक संपूर्ण नारी बन गई है। रीना के पूरी तरह स्वस्थ होने तक उसमें जच्चा और बच्चा दोनों का खूब  ख्याल रखा। कुछ दिन बाद घर में नाच गाने के लिए किन्नरों को बुलाया गया। रीना को एक तरकीब सूझी। उसने मौका पाकर एक किन्नर को राधा के विषय में बता दिया। यह पता चलते ही किन्नरों  ने हंगामा शुरू कर दिया और राधा को अपने साथ ले जाने की जिद करने लगे। घरवालों के हाथ पैर जोड़ने पर भी उन्होंने एक ना सुनी। राधा यह सब देखकर एकदम टूट गई। उसने घर के भीतर जाकर अपना सामान बांधा। गौतम शहर से बाहर गया हुआ था। राधा ने एक पल के लिए उसकी तस्वीर को निहारा और फिर उसके साथ अपनी तस्वीर हटाकर रीना की तस्वीर रख दी। फिर वह अपना सामान लेकर बाहर आ गई और उन किन्नरों के साथ जाने के लिए तैयार हो गई। पास पड़ोस के लोगों की आंखें भर आई और सभी ने रीना को खूब भला बुरा कहा।

शाम को जब गौतम वापस लौटा तो राधा को ना पाकर वह काफी परेशान हो गया। अपनी मां से जब उसको सच्चाई का पता चला तो उसकी आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा। वह सर पकड़कर सोफे पर धम्म से बैठ गया। उसका मन रीना के लिए नफरत से भर गया। गौतम की राधा को ढूंढने की सभी कोशिशें भी नाकाम हो गई। दिन प्रतिदिन वह टूटता चला गया और एक दिन जब राधा का वियोग सहन करना उसके वश से बाहर हो गया तो उसने अपना जीवन ही समाप्त करने की सोच डाली।  वह  रात को उठा और चुपके से रीना के कमरे में जाकर अपने बच्चे का माथा चूमा और फिर रीना के पास सुला दिया। फिर रीना की ओर देखकर वह होले से बुदबुदाया 'रीना तुम्हारा और मेरा रिश्ता राधा की ही देन थी लेकिन उससे पहले मेरा रिश्ता उसके साथ था। कितना मुश्किल होता है अपने प्यार को किसी और के साथ बांटना जो राधा ने किया लेकिन तुम हार गई। मेरा तुम्हारा साथ भी रिश्ता तब तक था जब तक राधा इस घर में थी। मैं राधा के बिना नहीं जी  सकता। अपना और इस मासूम  का ख्याल रखना।" कहकर गौतम उस कमरे में चला गया जहां उसने राधा के साथ समय गुजारा था। उसने दरवाजा अंदर से बंद किया और नींद की गोलियां खाकर हमेशा के लिए सो गया।

 अतीत को याद करते करते राधा जोर जोर से रोने लगी। नीता भी उसकी कहानी में खो गई थी उसे जब होश आया तो देखा उसका चेहरा आंसुओं से तर था।

   "राधा फिर तुम्हारा क्या हुआ?" नीता ने राधा के सिर को सहलाते हुए कहा।

" दीदी वह किन्नर मुझे दूसरे शहर में अम्मा के पास ले गए क्योंकि उन्हें मालूम था कि गौतम मुझे ढूंढने की कोशिश करेगा। अम्मा इन किन्नरों की सरदार थी। अम्मा एक बहुत  बड़े दिल वाली और बहुत ही दयालु किन्नर थी। मुझे उदास देखकर वह मेरे पास आ गयी और कहने लगी "राधा  बेटा हम लोगों के  नसीब  में  घर या  प्रेम नहीं होता। लेकिन पुत्री इसके अलावा भी जीवन में और बहुत कुछ करने को होता है। अच्छा किया तुम आ गई। अगर तुम गौतम से सच्चा प्रेम करती हो तो  तुम्हारा उसके जीवन से दूर रहना ही बेहतर है । कम से कम वह एक सामान्य जिंदगी जी पाएगा। हम किन्नर जरूर हैं लेकिन इंसान भी हैं। हम भी लोगों के काम आ सकते हैं। तुम यहां रहकर समाज के उस वर्ग की सेवा करो जिन्हें  सहायता की बहुत जरूरत है। मानवता के कार्य करो और खुशी खुशी अपना जीवन जियो।" अम्मा की बात याद करके राधा मुस्कुराने लगी फिर वह बोली लेकिन नीता दीदी अच्छे इंसानों को यहां कोई नहीं जीने देता। अम्मा अनाथ बच्चों को सहारा देती थी और लाचार अपाहिज लोगों के लिए भी काम करती थी परंतु कबीले की एक किन्नर अम्मा का सम्मान देखकर उसकी गद्दी हथिया लेना चाहती थी और एक दिन उसने अम्मा को जहर दे दिया। दूसरी और मुझे गौतम के चले जाने की भी खबर मिल चुकी थी। अम्मा की  मौत से मैं और  मेरे कुछ साथी इतने आहत हुए कि हमने वह जगह छोड़ दी और अब यहां इस शहर में आकर लाल बत्ती पर भीख मांगते हैं। गौतम की मृत्यु के कुछ दिन बाद मेरे पिताजी की भी मृत्यु हो गई थी। मेरा कोई नहीं।" कहकर राधा जोर-जोर से  रोने लगी।

     "ऐसा ना कहो। आज से मैं तुम्हारी बहन हूं।" नीता ने राधा को बोला।"तुम्हें भी एक सम्मानित जिंदगी जीने का पूरा हक है। तुम पढ़ी लिखी हो और मैं तुम्हारे लिए नौकरी का प्रबंध करूंगी तब तक तुम मेरे साथ मेरे घर चलो।" नीता का सहारा पाकर राधा को एक सुख की अनुभूति हुई और वह नीता के गले लग गई।