देह व्यापार में लिप्त महिलाओ की मजबूरी या स्वयं की इच्छा...

देह व्यापार में लिप्त महिलाओ की मजबूरी या स्वयं की इच्छा...

फीचर्स डेस्क। मैं नहीं मनाती कि उनकी कोई मजबूरी होती होगी मेरी नजर में निकम्मी होती हैं ऐसी स्त्रियां जो जीवन में संघर्ष से जी चुराकर पैसे कमाने के लिय अपनी शर्म, इज्जत और हया को एक घूंटी पर टांगकर बेशर्मी का रोज खेल खेलती हैं.... मजबूर औरतों को पैसा कमाना का एकमात्र जरिया देह हैं तो फिर क्यूँ औरतें घरों में जाकर किसी और के झूठे बरतन, कपड़े और झाड़ू पोंछा करती हैं अपने मालिक की कीर कीर सुनती हैं और खुद को कई अय्याश मालिकों की नजर से बचाती हुई साड़ी को सम्भालती हुई डरी सहमी सी अपना काम करती हैं.... क्या वो ये शॉर्ट रास्ता नहीं अपना सकती????

पर वो अपनाती हैं मेहनत और इज़्ज़त की रोटी का रास्ता... बच्चे शायद उसके भी होते हैं, मजबूरी भी बराबरी की होती हैं.....

अक्सर बहुत सी स्त्रियों के हिस्से में मजबूरी या कभी न कभी ख़राब समय आता हैं बस उसे उस समय संयम और धैर्य से काम लेना चाहिए......

कहते हैं पुरुष न हो तो वेश्याएं नहीं होगी अगर यहीं बात औरतों पर लागू कर दे तो कि जब औरत ही वेश्या न हो तो पुरुष खरीदार कहाँ से होगा?

सब कहने सुनने की बात हैं महिलाओ के लिय वेश्यावृत्ति कोई मजबूरी नहीं स्वयं की रजामंदी से उठाया गया और अपनाया गया धन्धा हैं...... पुरुषों की कोई गलती नहीं ये बुलाएगी नहीं तो जाएगा कौन इनके पास...?

पर ऐसी स्त्रियों को लत हैं नंगपने की, निकम्मेपन की जिनको कुछ नहीं करना। नहीं चलाने होते हाथ पैर, देह को कष्ट बस बिछा देती हैं देह को, बस पाती हैं बिना कष्ट के देह सुख और पैसा।

फिर कहूँगी निकम्मी होती हैं ऐसी महिलाये। क्योंकि आसान होता हैं देह को बिछाना और झूठा आलिंगन करना...

इनपुट सोर्स : ऋतु चौधरी