परवरिश...

परवरिश...

फीचर्स डेस्क। अनिता का मन आज सुबह से बहुत ज्यादा उदास था।सुबह से बिटिया की बहुत ज्यादा याद आ रही थी। जब भी उसकी पसंद का कुछ बनता या उसका कोई सामान देखती तो उसकी आंखें बरबस ही छलक जाती।

 आज उसकी शादी को एक महीना हो गया था।

दोपहर बारह बजे का समय था सोचा इस समय तो बिटिया फ्री होगी ।दामाद जी भी ऑफिस गए होंगे।फोन कर लेती हूं।आवाज़ सुन लूंगी तो मन थोड़ा शांत हो जाएगा।ये सोच कर फोन लगाया,"कैसी हो बेटी?

"मम्मा मैं बिल्कुल ठीक हूँ आप कैसे हो?

"बेटा तेरा दिल तो लग गया न वहां? तेरी सासू माँ और दामाद जी तेरा ख्याल तो रखते हैं न..मुझे तो बड़ी फिक्र हो रही तेरी।"

बिटिया,"मम्मा आप मेरी बिल्कुल भी फिक्र मत करें,मैं यहां बिल्कुल ठीक हूँ और बहुत खुश हूं।आपको पता है मेरी सासू मम्मा तो मुझे आप से भी ज्यादा प्यार करती हैं।"

ये सुनकर अनिता आगे से कुछ बोल ही नही पाई। आंखों से आंसू बहने लगे। भरे गले से बस इतना ही बोल पाई,"रखती हूं बेटा फिर बात करूंगी"

अनिता बहुत देर तक ऐसे ही गुमसुम बैठी  रही और आंखों से गंगा यमुना बहती रही।

उसको समझ नही आ रहा था कि ये आंसू बिटिया के लिए खुशी के आंसू थे कि वो अपने ससुराल में बहुत खुश थी या वो इस बात के लिए रो रही थी कि बिटिया की सासू मां का एक महीने का प्यार उसकी पच्चीस साल के प्यार और परवरिश के ऊपर भारी पड़ गया था।

इनपुट सोर्स : रीटा मक्कड़, मेम्बर फोकस साहित्य ग्रुप।